नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाढ़ (Flood) की वजह से हर साल औसतन 5,649 करोड़ रुपए का नुकसान होता है. साथ ही औसतन 1654 लोग हर साल बाढ़ के चलते मारे जाते हैं.
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नई दिल्लीः मानसून का हम भारतीयों के जीवन में अहम स्थान है. देश में जून से सितंबर तक चलने वाला मानसून (Monsoon) का मौसम अपने साथ खुशियां लाता है और इसकी वजह ये है कि भारतीय जीवन का शायद ही कोई पहलू हो जो इससे अछूता हो. हमारा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन, सब कुछ मानसून से प्रभावित होता है. यही वजह है कि हम भारतीयों को मानसून का बेसब्री से इंतजार होता है. हालांकि बीते कुछ सालों से देखा गया है कि मानसूनी बारिश (Heavy Rain) अब अपने साथ आफत लाती है!
बरसात के इस मौसम में देश के अलग-अलग स्थानों पर बाढ़ (MP Flood), भूस्खलन (Land slide) की घटनाएं कई घटनाएं सुनने को मिलती हैं और हर साल इनकी संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है. नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाढ़ की वजह से हर साल औसतन 5,649 करोड़ रुपए का नुकसान होता है. साथ ही औसतन 1654 लोग हर साल बाढ़ के चलते मारे जाते हैं.
बदल रहा मौसम का पैटर्न
हमारे देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर में ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) के चलते मौसम के पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है. भारत में भी ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान बढ़ रहा है और इसके चलते कहीं बहुत ज्यादा बारिश हो रही है तो कहीं सूखे के हालात बन रहे हैं. अब ग्लोबल वॉर्मिंग कैसे मानसून को प्रभावित करती है इसे समझने के लिए पहले हमें यह समझना होगा कि मानसून के मौसम में बारिश कैसे होती है?
ऐसे होती है बारिश
दरअसल गर्मियों के मौसम में तेज धूप के चलते हमारी धरती का तापमान बढ़ जाता है. इसके चलते जमीन के ऊपर कम दाब का क्षेत्र बन जाता है. वहीं इसके उलट समुद्र में उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है. क्योंकि हवा का रुख हमेशा उच्च दाब क्षेत्र से कम दाब क्षेत्र की तरफ होता है. इसलिए जब हवाएं समुद्र से धरती की तरफ चलती हैं तो वह अपने साथ समुद्र से नमी भी लेकर चलती हैं.
कम दाब वाले क्षेत्र में पहुंचने के बाद हवाएं ऊपर उठ जाती हैं और इसी के चलते हवा की मौजूद नमी ठंडे वातावरण के कारण बादल बन जाती हैं. इन्हीं बादलों के कारण बारिश होती है.
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) से कैसे बढ़ रही भारी बारिश की समस्या
मौसम विशेषज्ञ जीडी मिश्रा बताते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों के बहुत ज्यादा उत्सर्जन से, खासकर कार्बन डाइ-आक्साइड से धरती का तापमान बढ़ रहा है. हरियाली भी कम हो रही है. बीती शताब्दी के मुकाबले धरती का तापमान एक डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है. वहीं समुद्र का तापमान 0.6-0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. हिंद महासागर में तो यह बढ़ोत्तरी और भी ज्यादा हुई है. इसकी वजह से हवा में नमी बढ़ गई है. जिससे असामान्य बारिश देखने को मिल रही है. चूंकि समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है. जिसके कारण समुद्र में चक्रवाती तूफानों (Cyclone) की संख्या भी बढ़ रही है.
मौसम विशेषज्ञ जीडी मिश्रा बताते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ये होने लगा है कि जो बारिश पहले मानसून के चार महीनों में होती थी, अब उतनी ही बारिश एक महीने में ही खासकर अगस्त के महीने में ही हो जाती है. पहले मानसून के एक महीने में औसतन 15-20 दिन बारिश वाले दिन होते थे. जिनमें हर दिन 2.5 मिमी बारिश होती थी लेकिन अब एक माह में बारिश वाले दिनों की संख्या घटकर 10 के करीब हो गई है. इन 10 दिनों में भी बारिश में काफी असंतुलन होता है. मौसम विज्ञानियों के अनुसार, मानसून के भारी वर्षा दिवस की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. भारी वर्षा दिवस (Heavy Rain Day) में एक दिन में ही 6.5 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. इसी के चलते बाढ़, भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं.
भ्रष्टाचार, अनियोजित विकास भी एक कारण
आजादी के बाद देश में विकास पूर्ण रूप से नियोजित तरीके से नहीं हुआ. इसके चलते ये हुआ कि नदी-तालाबों की जगह में सड़कें, इमारतें बना दी गई हैं. जिससे जब बारिश होती है तो पानी को निकासी के लिए रास्ता नहीं मिलता और वह जलभराव का कारण बनता है. यही जलभराव आफत की वजह बन जाता है.
इसके साथ ही हमारे सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार भी बारिश से होने वाले नुकसान की वजह बनता है. दरअसल बारिश से पहले निगम द्वारा नालों आदि की सफाई नहीं कराई जाती या फिर पानी की निकासी को दुरुस्त नहीं रखा जाता. जिसके चलते भारी बारिश होने पर सड़कों पर जलभराव की समस्या आम हो गई है. यहां तक कि बड़े बड़े महानगरों में भी सड़कें पानी में डूबी दिखाई देती हैं.