Web film 'शादीस्थान' के डायरेक्टर से सुनिए रोचक किस्से: ''पहले ही दिन फंसी गाड़ी, फिर फंसा ट्रैक्टर, फिर फंसी जेसीबी...
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Web film 'शादीस्थान' के डायरेक्टर से सुनिए रोचक किस्से: ''पहले ही दिन फंसी गाड़ी, फिर फंसा ट्रैक्टर, फिर फंसी जेसीबी...

11 जून को Disney+Hotstar पर रिलीज़ हुई फिल्म शादीस्थान, रिलीज होने के बाद से ही चर्चा में आ गई है.

फिल्म शादीस्थान

शिखर नेगी/नई दिल्ली: हम फिल्म की कहानी की बात करें उससे पहले सुनिए, दो बेहतरीन किस्से 

किस्सा नंबर-1
शूटिंग की गाड़ी कच्चे में उतरते-उतरते बची..!!
फिल्म के डायरेक्टर राज सिंह चौधरी बताते है कि इस फिल्म को शूट करने के लिए मेरे पास सिर्फ 18 दिन थे, क्योंकि बजट कम था और सीमित संसाधन था. शूटिंग के पहले ही दिन जब हम एक सीन कर रहे थे, जिसमें बैंड की गाड़ी विजयनगर (राजस्थान) में मिट्टी में फंस जाती है. गाड़ी निकालने के लिए हमने ट्रैक्टर को बुलाया तो वो भी फंस गया, फिर जेसीबी मंगवाई तो वो भी फंस गया. तो हमारा पहला दिन गाड़ियां निकालने में ही चला गया. शूटिंग के पहले ही फिल्म फंसते हुए बची.

किस्सा नंबर-2
हर बात पाकिस्तान पर खत्म होती है..!!
इस फिल्म का दूसरा सबसे मजेदार किस्सा बताते हुए राज सिंह कहते है कि एक फिल्म का सीन राजस्‍थानी ढाबे पर करना होता है तो मैंने गांव से अपने चाचा को ही बुला लिया, इसके पहले उन्होंने कभी एक्टिंग नहीं की थी, वो इस फिल्म में ढाबे के मालिक बनते है, जो एक ही सवाल बार-बार दोहराता है. हर शहर हर जगह उनके लिए पाकिस्तान के पास होती है. सब पिनक में होते हैं तो सभी बातचीत के बाद चाचा जी फिर से दोहराते हैं `` सूं कठे से आयो` इस पूरे सीन के एक्सप्रेशन देखने लायक हैं. यहां तक कि मंजे हुए कलाकारों के बीच चाचा जी के इंप्रोवाइजेशन ने मजा खींच दिया.

11 जून को Disney+Hotstar पर रिलीज़ हुई फिल्म शादीस्थान, रिलीज होने के बाद से ही चर्चा में आ गई है. ''हम जैसी औरतें लड़ाई करती हैं ताकि आप जैसी औरतों को अपनी दुनिया में लड़ाई ना करनी पड़े'' ये फिल्म का प्रमुख संवाद है. दरअसल, शादीस्थान फिल्म ''महिलाओं की दो पीढ़ियों'' और प्रत्येक पीढ़ी के वक्त पितृसत्तात्मक समाज की सोच को लेकर तीन अलग-अलग संघर्षों की कहानी को बयां करती है.  

शादीस्थान भारतीय समाज की सोच के इर्द-गिर्द बनी हुई है. लड़कियों की आजादी को छीनने वाले समाज के वो शब्द कि 'लोग क्या सोचेंगे, हमारा समाज क्या कहेगा' इस डर से पिता द्वारा ही लड़की की शादी को उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य मानने वाली सोच पर सीधा प्रहार करती है. गुलाल फिल्म से फेमस हुए एक्टर और राइटर राज सिंह चौधरी की लिखी हुई कहानी और निर्देशक के रूप में उनकी यह पहली फीचर फिल्म है. इसकी कहानी मुंबई हाईवे पर तेज रफ्तार में भागती गाड़ी से दिखाई जाती है. तो आइये उन्हीं से जानते है कि उनका ये सफर कैसा रहा?. 

आपकी इस फिल्म का नाम थोड़ा अजीब है शादीस्थान, ये नाम क्यों रखा?
ये राजस्थान के परिदृश्य पर बनी हुई फिल्म है. राजस्थान में मैं बचपन से देखते हुए आया हूं कि राजस्थान में या तो किसी की शादी करवा रहे होते हैं या शादी की बात चल रही होती है. यहां डेस्टिनेशन वेडिंग भी बहुत होते हैं. यहां शादियों का अक्सर माहौल बना रहता है, तो मैंने इसी को देखते हुए राजस्थान को शादीस्थान कर दिया.

इस फिल्म की कहानी क्या है?
दरअसल राजस्थान की एक फैमिली हैं, जो 20 साल से मुंबई में रह रही है. उनकी सोच और विचार समाज की रूढ़िवादी सोच जैसी है. उनकी 18 साल की एक बेटी है अर्शी. उसकी सोच माता-पिता से अलग है. वो आजाद रहना चाहती है. अपने दोस्तों के साथ मस्ती करना और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती है. अब अर्शी के परिवार वाले भांजे की शादी में जा रहे होते हैं और उसी शादी में अर्शी की सगाई तय कर देते हैं. ये बात सुनकर अर्शी घर से भाग जाती है और मुबंई से राजस्थान की फ्लाइट मिस हो जाती है. संयोग से जिस शादी में शामिल होने अर्शी का परिवार राजस्थान जा रहा होता है, उस शादी में मुंबई से एक बैंड परफॉर्म करने जा रही होती है. भांजा ये बात मामा से कहता है कि आप उनके साथ आ जाओ. अब ये बैंड वाले और अर्शी के परिवार के साथ मुंबई से अजमेर जा रहे होते हैं तभी सफर में बैंड वालों को ये बात पता चलती है कि लड़की को क्यों ले जा रहे है. तो पूरी कहानी यहीं से शुरू होती है.

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 Photo: फिल्म डायरेक्टर राज सिंह चौधरी के साथ अर्शी की भूमिका निभाते हुए दिखाई देने वाली मेधा शंकर..

ये फिल्म लड़कियों के लिए है या उनके पेरेंट्स के लिए है?
इसके जवाब में राज सिंह कहते हैं कि अपने बच्चों को इतनी आजादी देनी चाहिए कि वो खुद के लिए सोच सकें. मेरे विचार में 18 साल की उम्र में लड़कियों की शादी करना गलत बात है. अंग्रेजी में एक कहावत है कि "do not talk to strangers" (अजनबी से बात न करें) फिर इसी अजनबी से पेरेंट्स या समाज शादी करवा देता है.  कई लड़कियां आगे पढ़ना चाहती हैं. आजाद रहना चाहती हैं. लेकिन हमारा समाज उन्हें कह देता है शादी के बाद पढ़ाई कर लेना. इस तरह लड़कियों को उड़ने से पहले ही बांध दिया जाता है. तो ये फिल्म सभी के लिए ज्यादातर उनके लिए जो लड़कियों की जल्दी शादी करवा देते हैं.

मुंबई से अजमेर तक के सफर में बैंड वाले नशा भी करते है? इसे कहानी में क्यों दिखाया गया?
देखिए क्या होता है ना कि आप चाहे नशा करते हैं, दारू पीते हैं या जो करते हैं. मैं इस फिल्म में नजरिया दिखाना चाहता हूं कि किसी को उसके काम से जज नहीं करना चाहिए कि वो नशा करता है तो खराब है या गलत कपड़े पहने हैं तो खराब हो गया. किसी के अंदर झांक कर तो देखिए कि वो क्या है. ऐसा ही घर पर काम करने वाली महिलाओं के साथ है कि वो घर पर हैं. बच्चों का काम करती हैं. पति का ध्यान रखती हैं, तो इन्हें कुछ नहीं आता. किसी को जज नहीं करना चाहिए.

फिल्मी दुनिया में आपकी शुरुआत अभिनेता से हुई फिर लेखक, निर्देशक कैसे बनें?
हां, मैंने शुरुआत अभिनेता के तौर पर की थी, लेकिन एक्टिंग के साथ मैंने राइटिंग भी कि गुलाल फिल्म मैंने भी अनुराग कश्यप के साथ लिखी थी. उसमें लीड रोल भी किया था. उससे पहले मैं ''ब्लैक फ्राइडे में एक्टर भी था, असिसटेंट डायरेक्टर भी था. ''नो स्मोकिंग'' भी मैंने अनुराग के साथ लिखी भी, असिसटेंट भी रहा. मुझे लिखना, एक्टिंग या फिल्म बनाने का ख्वाब पहले से था. मुझे लोगों को कहानी कहनी थी, चाहे किसी भी तरह दिखाऊं, तो मेरे साथ ये चलता रहेगा.

क्या शादीस्थान किसी कहानी से प्रेरित है?
डायरेक्टर राज सिंह ने बताया कि ये मैं बचपन से देखते हुए आ रहा हूं कि जिन लड़कियों का परिवार राजस्थान से बाहर जैसे मुंबई,कलकत्ता में रहते है. वो पहले लड़कियों को पढ़ाते तो हैं लेकिन 18 साल होते ही वो फिर राजस्थान में जाकर परिवार वाले शादी करा देते हैं. लेकिन वो ये नहीं सोचते की लड़की पढ़ना चाहती है. आगे कुछ करना चाहती है लेकिन उसकी शादी अनजान लड़के से अलग शहर में करा दी जाती है. मैंने राजस्थान के गांव से लेकर मुंबई शहर में ऐसा बहुत देखा है तो इसी पर से ये कहानी प्रेरित है 

फिल्म की कहानी लोग क्या कहेंगे', 'समाज क्या सोचेगा' के इर्दगिर्द घूमती है?  समाज तो सिर्फ महिलाओं की स्वतंत्रता पर ही नहीं बल्कि हर चीज पर बोलता है, फिर आपने इसी विषय को क्यों चुना ?
मैंने इस फिल्म को इतने बड़े लेवल पर नहीं सोचा, मैं बस एक चीज को हैंडल कर रहा हूं कि 18 साल होते ही लड़की कि शादी क्यों हो रही है? इस फिल्म में एक सीन है जिसमें बैंड कि साशा अर्शी से पूछती है कि तुम क्या करना चाहती हो? तो अर्शी कहती है जिस हालत में अभी में अभी मैं हूं, मैं आपकी तरह ही बनना चाहती हूं. मतलब अर्शी सिर्फ अपनी पसंद मांग रही है कि कब शादी करूं, क्या काम करूं, किससे करूं. तो मैं सिर्फ इसे ही दिखाना चाह रहा हूं. ये बात सिर्फ अर्शी पर नहीं उसकी मां पर भी लागू होती है कि उनकी क्या पसंद है, उन्हें क्या करना है. 

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इस फिल्म की शूटिंग कई शहरों में हुई, किस शहर में आपको शूट करते वक्त मजा आया?
ये फिल्म तो कई जगह शूट हुई है, इसनें दमन, अजमेर, मुंबई, गुजरात, उदयपुर, विजयनगर पुष्कर शामिल है. मुझे तो हर जगह शूटिंग करना पसंद है. फिल्म की कहानी जहां कि है वहीं पर शूट हो तो अच्छी लगती है. 

कीर्ति कुल्हरी के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
कीर्ति को मैं बहुत पहले से जानता हूं, कीर्ति के साथ बहुत अच्छा अनुभव रहा, क्योंकि कीर्ति कहानी को बहुत अच्छे से समझती हैं, दुनिया को समझती हैं. वो खुद भी राजस्ठान से हैं और मुबंई में पली-बड़ी हैं, तो उनके साथ काम करने में मजा आया और उन्होंने कहानी को पूरा समझा.

आने वाली कोई वेब सीरिज या फिल्म ?
मैं एक फिल्म शूट कर चुका हूं, लेकिन मैं उसके बारें में अभी बता नहीं पाउंगा जब तक फिल्म की घोषणा नहीं हो जाती. अगस्त में इसकी घोषणा हो जाएगी तो बता दिया जाएगा.

जरूर देखें यह कहानी
इसी के साथ राज सिंह चौधरी ने कहा है कि मैं चाहता हूं कि ज्यादा से ज्यादा इस फिल्म को देखें और अपनी जिंदगी में कुछ बदलाव लेकर आएं. ये मेरे लिए बहुत जरूरी है क्योंकि मैनें आजतक जो फिल्म की है, मैं हमेशा कुछ कहने की कोशिश में रहा हूं. अगर समाज में मेरी फिल्मों से कुछ बदलाव आ जाए तो मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी. शादीस्थान लोगों को काफी कनेक्ट कर रही है, गांवों से मुझे फीडबैक आ रहे है. तो मेरा मकसद यहीं है कि मेरी फिल्म से लोगों की जिंदगी में बदलाव आए.

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