जस्टिस संजय द्विवेदी की सिंगल बेंच ने दिवंगत कर्मी की विवाहित पुत्री को अनुकम्पा नियुक्ति के लिए अपात्र ठहराने वाला पुलिस मुख्यालय का आदेश निरस्त कर दिया है.
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जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति प्राप्त करने का अधिकार है. जस्टिस संजय द्विवेदी की सिंगल बेंच ने दिवंगत कर्मी की विवाहित पुत्री को अनुकम्पा नियुक्ति के लिए अपात्र ठहराने वाला पुलिस मुख्यालय का आदेश निरस्त कर दिया है. जबलपुर हाई कोर्ट में सुहागी की रहने वाली प्रीति सिंह ने याचिका दायर किया था, जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह फैसला सुनाया.
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प्रीति ने उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में बताया था कि उनकी मां मोहनी सिंह सतना जिले के कोलगवां थाने में एएसआई पद पर तैनात थीं. 23 अक्टूबर 2014 को ड्यूटी जाते समय उनकी मृत्यु हो गई थी. याचिकाकर्ता केवल दो बहनें हैं और दोनों का विवाह हो चुका है. मां की मृत्यु के बाद प्रीति सिंह ने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था लेकिन पुलिस मुख्यालय ने उन्हें अपात्र माना.
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पुलिस मुख्यालय की ओर से 22 जनवरी 2015 को एक आदेश जारी कर कहा कि अनुकम्पा नियुक्ति नीति के पैराग्राफ 2.4 के अनुसार विवाहित पुत्री को अनुकम्पा नियुक्ति नहीं दी जा सकती. इसके खिलाफ प्रीति सिंह ने कोर्ट का रुख किया था. अब न्यायालय ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया है. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत किसी के साथ भी महिला होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है.
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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की फुल बेंच ने भी अतीत में मीनाक्षी दुबे मामले में स्पष्ट कहा है कि विवाहित पुत्री को भी अनुकम्पा नियुक्ति पाने का अधिकार है. अंतिम सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अनुकम्पा नियुक्ति के लिए अपात्र ठहराने का आदेश निरस्त कर दिया. उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद अब प्रदेश के अन्य मामलों में भी बेटियों को अनुकंपा नियुक्ति का रास्ता साफ होता नजर आ रहा है.
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