24 एकादशियों का फल देने वाली "निर्जला एकादशी" आज, पांडवों से है इसका नाता
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24 एकादशियों का फल देने वाली "निर्जला एकादशी" आज, पांडवों से है इसका नाता

इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित होता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं. इस साल निर्जला एकादशी 21 जून यानी आज है.

निर्जला एकादशी आज

नई दिल्ली: आज निर्जला एकादशी है. आज विश्व भर में रह रहे सनातनी इस दिन दान पूजा जरूर करते है. सनातन धर्म में भगवान विष्णु को प्रमुख देवता माना गया है. हिंदू पंचांग के अनुसार पूरे साल में कुल 24 एकादशियां मनाई जाती हैं जो प्रत्येक महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आती हैं.

शुरुआत महाभारत काल से हुई
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को सर्वोत्तम माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत की शुरुआत महाभारत काल से हुई थी. कहा जाता है कि महाबली भीमसेन ने इस व्रत को किया था. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ कथा का पाठ करने का भी विधान है.

सारी एकादशियों का पुण्य फल मिलता है
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है. धार्मिक शास्त्रों की माने तो साल की सभी 24 एकादशियों में निर्जला एकादशी का सबसे ज्यादा महत्व होता है. इस एकादशी व्रत में पानी पीना वर्जित होता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं. इस साल निर्जला एकादशी 21 जून यानी आज है.कहा जाता है कि निर्जला एकादशी के दिन बिना जल के उपवास रहने से साल की सारी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है. इस दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की अराधना की जाती है.

व्रत कथा भी जाने
माना जाता है कि एकादशी का दिन भगवान विष्णु को अति प्रिय है. इसलिए इस दिन निर्जल व्रत रहने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है.पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडव परिवार एकादशी व्रत श्रद्धा-भाव से करते थे. मगर भीमसेन व्रत करने में असमर्थ रहते थे. इसकी वजह यह थी की वह एक समय का खाना भी खाए बिना नहीं रह पाते थे. अपने भाईयों को व्रत करता देख उनका भी व्रत करने का मन करता था लेकिन वह मजबूर थे. वह भगवान विष्णु का निरादर नहीं करना चाहते थे इसलिए एक बार उन्होंने अपनी व्यथा महर्षि व्यास जी को बताई और इस समस्या का हल पूछा. वेदव्यास जी ने उनकी चिंता दूर करते हुए निर्जला एकादशी व्रत का महत्व बताया और कहा कि इस व्रत के नियम बेहद कठिन हैं मगर जो यह व्रत करता है उसे समस्त एकादशियों का फल मिलता है. उसके सारे पाप मिट जाते हैं. यह एकादशी वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच में पड़ती है और इस दिन अन्न और जल ग्रहण नहीं किया जाता है. वेदव्यास जी के कहने पर महाबली भीमसेन भी इस व्रत को करने लगे इसीलिए इस एकादशी को भीमसेन एकादशी या भीम एकादशी भी कहा जाता है. पांडव भ्राता भीम ने एक मात्र इसी उपवास को रखा था और मूर्छित हो गए थे. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. निर्जला एकादशी के दिन निर्जल रहकर भगवान विष्णु की आराधना करने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है.

शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ-  20 जून 2021 को शाम 4 बजकर 21 मिनट से(4:21)
एकादशी तिथि समाप्त- 21 जून 2021 को दोपहर 1 बजकर 32 मिनट तक(1:32)
व्रत पारण का समय- 22 जून,  सुबह 5 बजकर 24 मिनट(5:24) से सुबह 8 बजकर 12 मिनट तक(8:12)

क्या नहीं करना चाहिए
निर्जला एकादशी पर जल पीना वर्जित होता है. इसलिए व्रत समाप्ति के बाद ही जल ग्रहण करना चाहिए.
इस दिन व्रत करते समय किसी के प्रति मन में बुरे विचार नहीं रखने चाहिए.
इस दिन वाद-विवाद से बिल्कुल दूर रहना चाहिए.
हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी का बहुत महत्व है. इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए.

क्या करना चाहिए
आज पूरे दिन 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मन्त्र का जाप मन में करते रहे.
आज के दिन दान का बहुत महत्व होता है. आज एकादशी के दिन पंखे, घड़ा, मटका, शरबत, फल, चीनी, चप्पल आदि दान का विशेष महत्व होता है.
आज के दिन ब्राह्मणों को भोजन भी कराया जाता है.

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