Birthday Special: MP के इस जिले में है 'बिस्मिल' का मंदिर, रोज होती है आरती, प्रदेश से है खास नाता
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh917964

Birthday Special: MP के इस जिले में है 'बिस्मिल' का मंदिर, रोज होती है आरती, प्रदेश से है खास नाता

'बिस्मिल' का पैतृक गांव बरबई, मुरैना जिले का हिस्सा है. इतना ही नहीं बिस्मिल का एकमात्र मंदिर भी मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में ही बना है.

मुरैना में है राम प्रसाद 'बिस्मिल' का मंदिर

अश्विन सोलंकी/मुरैना: Birthday Special Ram Prasad Bismil: स्वतंत्रता सेनानी, कवि, शायर, अनुवादक, इतिहासकार या साहित्यकार, इन्हें जिस भी उपलब्धि से पुकारा जाए वो कम है. आज 11 जून 2021 क्रांतिकारी राम प्रसाद 'बिस्मिल' की 124वीं जयंती है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ. अब आप सोच रहे होंगे उत्तर प्रदेश में जन्म हुआ तो फिर मध्य प्रदेश से उनका क्या नाता? तो हम आपको बताते हैं 'बिस्मिल' का पैतृक गांव बरबई, मुरैना जिले का हिस्सा है. इतना ही नहीं बिस्मिल का एकमात्र मंदिर भी मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में ही बना है. 

'बोलिए अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की...'
मुरैना से लगे हाईवे पर सुबह 6 बजे मंदिर के द्वार खुलते हैं. पुजारी पूजा की थाल लेकर आरती की तैयारी करते हैं और भक्त उस आरती में शामिल होने की. आरती की थाली में रखे दीप को जलाकर पुजारी घंटी उठाकर जयकारा लगाते हैं- 'बोलिए अमर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल की...' सभी भक्त एक आवाज में कहते हैं- 'जय.'

मुरैना जिले में ये नजारा बिस्मिल के जन्मदिन पर नहीं, बल्कि हर दिन सुबह 6 बजे देखने को मिलता है. क्रांतिकारी बिस्मिल का एकमात्र मंदिर मुरैना शहर में हाईवे किनारे बने जिला शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र परिसर में स्थित है. 

यह भी पढ़ेंः- Monsoon in MP: तय समय से एक हफ्ते पहले एमपी पहुंचा मानसून, मौसम विज्ञानियों ने बताई ये वजह

बिस्मिल भक्त करेंगे प्रबोधन यात्रा
फरवरी 2009 में बिस्मिल भक्तों ने मुरैना शहर में इस मंदिर का निर्माण करवाया. तब से ही हर दिन सुबह 6 बजे मंदिर में उनकी आरती होती है. बिस्मिल के बलिदान व जन्म दिवस पर उनके भक्त मुरैना स्थित मंदिर से लेकर 5 किलोमीटर दूर उनके पैतृक गांव बरबई तक पैदल यात्रा करते हैं. इस बार भी वे प्रबोधन यात्रा करेंगे.
 
बिस्मिल का पैतृक गांव MP में!
बिस्मिल का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ, लेकिन बहुत कम लोगों को इस बारे में जानकारी है कि बिस्मिल का पैतृक गांव मुरैना जिले से 5 किलोमीटर दूर स्थित बरबई है. उनके दादा जी नारायण लाल ने यहीं बीहड़ों में अपना जीवन यापन किया. बरबई के बारे में एक खास बात है कि यह चंबल की घाटियों में है, जहां से कई बागी प्रवृत्ति के व्यक्ति निकले. जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. 

यह भी पढ़ेंः- 3 मिनट में देखिए मध्य प्रदेश की दिनभर की बड़ी खबरें, फटाफट अंदाज में

पिता बेचते थे स्टाम्प, 1997 में बना बिस्मिल का स्टाम्प
बताया जाता है कि पारिवारिक विवाद के बाद नारायणलाल अपनी पत्नी और दो बेटों को लेकर उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर आ गए. बिस्मिल के पिता मुरलीधर, जिनका जन्म बरबई में ही हुआ, इसी दौरान अपने पिता के साथ यूपी में बस गए. वो कचहरी में स्टाम्प पेपर बेचा करते थे. वहीं भारत सरकार ने 1997 में बिस्मिल के सम्मान में स्टाम्प कार्ड निकाला था.

19 दिसंबर को दी गई फांसी
बिस्मिल को मिले इस सम्मान की मुख्य वजह अंग्रेजों के खिलाफ किए गए उनके क्रांतिकारी कारनामे हैं. 19 दिसंबर 1927 को मात्र 30 साल की उम्र में उन्हें अंग्रेजों ने उन्हें गोरखपुर जेल में फांसी पर लटका दिया. वो मैनपुरा षडयंत्र से लेकर काकोरी कांड जैसी कई घटनाओं का हिस्सा रहे. इसके साथ ही वो हिन्दुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन के सदस्य भी रहे. 

यह भी पढ़ेंः- BSP नेता की मारपीट के बाद हत्या, एसपी ने की शरीर पर चोट के निशानों की पुष्टि

मुरैना से 'बिस्मिल' का नाता

  • 1918-19 में मैनपुरी षडयंत्र के बाद बिस्मिल अपने पैतृक गांव बरबई आए. यहां गेंदालाल दीक्षित के मार्गदर्शन में वह अंग्रेजों से बचते रहे. 
  • बरबई में ही 1920 में उन्होंने अंग्रेजी किताब 'ग्रैंडमदर ऑफ रसियन रिवॉल्यूशन' का हिंदी अनुवाद किया.
  • बिस्मिल की शादी नहीं हुई, लेकिन उनका परिवार व वशंज आज भी बरबई में ही रहते हैं. 

यह भी पढ़ेंः- सरकारी हॉस्टल में प्याज रखने वाले सुपरिटेंडेंट पर गिरी गाज, कलेक्टर ने किया सस्पेंड

WATCH LIVE TV

Trending news