Ram Navami 2021: भगवान श्रीराम के इन आदर्शों को उतार लें अपने जीवन में, तभी बन सकते हैं आप श्रेष्ठ पुरुष
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh887821

Ram Navami 2021: भगवान श्रीराम के इन आदर्शों को उतार लें अपने जीवन में, तभी बन सकते हैं आप श्रेष्ठ पुरुष

आज देशभर में श्रीराम नवमीं मनाई जा रही हैं. हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान श्रीराम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा जाता है. 

Ram Navami 2021: भगवान श्रीराम के इन आदर्शों को उतार लें अपने जीवन में, तभी बन सकते हैं आप श्रेष्ठ पुरुष

नई दिल्ली: आज देशभर में श्रीराम नवमीं मनाई जा रही हैं. हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान श्रीराम को 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कहा जाता है. यानी पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ पुरुष, और विद्वानों का भी मानना है कि अगर आप जीवन में महान बनना चाहते हैं तो श्रीराम द्वारा दी गई नैतिक शिक्षाओं को अपने जीवन में उतार लें. त्रेता युग में भगवान विष्णु का अवतार होने के बावजूद श्रीराम ने कहीं भी ईश्वरत्व का प्रदर्शन नहीं किया. आपको बता दें कि उनमें अहंकार, कामी, लोभी, अथवा शाही ठाठ-बाट जैसी बातें कभी कहीं सुनी या पढ़ी नहीं गयीं. लेकिन क्या आप जानते है? प्रभु श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम क्यों कहा जाता है? अगर नहीं जानते तो आइए जानते है...

हमीदिया से रेमडेसिविर के चोरी होने की बात निकली झूठी, अस्पताल में ही मिले 400 इंजेक्शन

1. शौर्य का प्रतीक थे श्रीराम
हमने रामायण में देखा है कि श्रीराम किशोरावस्था में थे तो विश्वामित्र ने राजा दशरथ से विनय किया कि उनके आश्रम में राक्षस यज्ञों में खलल डाल रहे हैं, और श्रीराम को हमारी सुरक्षा के लिए आश्रम भेजें. राजा दशरथ ने विश्वामित्र से कहा कि ये बच्चे अभी नाजुक उम्र के हैं, महाबलवान राक्षसों से कैसे आपकी रक्षा कर सकेंगे, तब श्रीराम ने शौर्य के साथ पिता से कहा कि उन्हें आश्रम जाने की इजाजत दें, हम क्षत्रिय का जन्म आतताइयों से पृथ्वी को मुक्त कराना है. इसके बाद श्रीराम महाबलशाली राक्षसों का संहार कर ऋषि-मुनियों की रक्षा की.

2. पिता का हमेशा सम्मान करें
प्रभु श्रीराम से एक बात और सीखी जा सकती है कि उन्होंने अपने पिता की हर आज्ञा को सर झुकाकर स्वीकारा किया. जब उनके राजतिलक की तैयारी चल रही थी, तो पति दशरथ से मिले वरदान स्वरूप माता कैकेयी ने भरत को सिंहासन और श्रीराम को वनवास भेजने की मांग की तो राजा दशरथ किंकर्तव्य विमूढ़ हो गए. पुत्र श्रीराम पिता के मूक आदेश का सम्मान करते हुए पत्नी सीता और लक्ष्मण के साथ खुशी-खुशी वनवास के लिए चले गए.

3. गुरुजनों का सदैव सम्मान करें
श्री राम से सीखा जा सकता है कि गुरु का सम्मान ही व्यक्ति को महान बनाता है. भगवान श्रीराम की विश्वामित्र से लेकर महर्षि वशिष्ठ तक के प्रति अपार भक्ति और आस्था की कहानियां सुनने को मिलती है. श्रीराम ने उन्हें हमेशा भगवान की तरह पूजा और सम्मान किया है. रामायण में भी लिखा है कि श्रीराम ने एक बार लक्ष्मण से कहा था कि गुरु की जीवन में वही भूमिका होती है जो अंधेरे में रोशनी की होती है.

4. सर्वधर्म सम्मान श्रीराम से सीखें
श्रीराम ने हमेशा हर जाति धर्म के लोगों का सम्मान किया. श्रीराम कथा में दो बहुचर्चित प्रसंग है एक केवट के प्रति प्रेम और दूसरी सबरी की भक्ति का. वनवास के समय जब मार्ग में गंगा नदी मिलीं, तो केवट से उसकी नाव से गंगा पार कराने का आग्रह किया. यही नहीं निचली जाति की भीलनी सबरी के जूठे बेर भी उसकी भक्ति का सम्मान देते हुए श्रीराम ने ग्रहण किया था. 

परीक्षा में फेल हुई तो बन गई फर्जी SI, पिता से ऐंठती रही पैसा, 3 साल बाद जब खुलासा हुआ तो परिजन और पुलिस हैरान रह गई!

5. विपरीत माहौल में संयम बरतना
श्रीराम के जीवन में कई ऐसे अवसर आए जब उन्होंने विपरीत माहौल में भी अपनी संयम का बांध नहीं टूटने दिया. धनुष भंग के पश्चात परशुराम द्वारा बार-बार शब्दों की प्रताड़ित झेलने के बाद भी वे गुस्सा नहीं हुए. 

6. वनवास काल में राजसुख भोग सकते थे
श्रीराम ने अयोध्या से लंका तक की अपनी यात्रा में कभी अतिक्रमण नहीं किया. राम चाहते तो यहां तक कि रावण का संहार करने के बाद वे लंका नरेश भी बन सकते थे, लेकिन यह उनके मर्यादा के विपरीत बात थी, जिसका उन्होंने पालन करते हुए विभीषण को राजपाट सौंपकर अयोध्या लौट आए.

WATCH LIVE TV

Trending news