मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक ऐसा ही गांव है, जिसका नाम है बघुवर. इस गांव नें देशव्यापी स्वच्छ भारत अभियान के शुभारंभ से 7 साल पहले यानी 2007 में खुले में शौच से मुक्ति पा ली थी.
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नरसिंहपुर: महात्मा गांधी ने कहा था ''भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है.'' भारत की लगभग 70% आबादी आज भी गांवों में रहती है. लेकिन देश के गांव शहरों की तुलना में अब भी जरूरी सुविधाओं से वंचित हैं. धीरे-धीरे बदलाव शुरू हुआ है. बिजली 24 घंटे तो नहीं मिलती लेकिन अच्छी खासी मिलने लगी है. दूर संचार सेवाओं के साथ ही हाई स्पीड इंटरनेट की सुविधा भी गांवों में पहुंचनी शुरू हो गई है. सड़कें बन रही हैं. हालांकि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में अभी बहुत ज्यादा काम करने की जरूरत है.
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इन सबके बीच देश के कई गांवों ने दिखाया है कि बेहतर कल के लिए सामुदायिक भागीदारी से क्या किया जा सकता है. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में एक ऐसा ही गांव है, जिसका नाम है बघुवर. इस गांव नें देशव्यापी स्वच्छ भारत अभियान के शुभारंभ से 7 साल पहले यानी 2007 में खुले में शौच से मुक्ति पा ली थी. लगभग 2500 की आबादी वाले इस गांव के हर घर में शौचालय है. गांव में स्वच्छता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है.
भोजन पकाने के लिए गोबर गैस प्लांट
बारिश में जल निकासी की व्यवस्था भी इतनी है कि गांव में कभी पानी नहीं रुकता. सभी नालियां अंडरग्राउंड हैं. इतना ही नहीं गांव पूरी तरह मच्छर मुक्त भी है. गांव में गोबर गैस प्लांट में भी आगे है. छोटी सी आबादी के इस गांव नें 55 से अधिक बायोगैस संयंत्र हैं. खाना पकाने, घरों को रोशन करने के लिए बायागैस का इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए गांव के 25 गड्ढों में गोबर इकट्ठा कर बायोगैस बनाया जाता है. बघुवर गांव के ज्यादातर घरों में गोबर गैस की मदद से ही खाना बनता है.
बघुवर गांव का हर बच्चा जाता है स्कूल
बघुवर की एक और पहचान इसकी 100% साक्षरता दर है. गांव इस सिद्धांत का सख्ती से पालन करता है कि हर बच्चा शिक्षा का हकदार है. ग्रामीणों ने ही सुनिश्चित किया कि छात्र स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए प्रोत्साहित हों इसके लिए दोपहर का भोजन स्कूल में ही उपलब्ध कराया जाए. बच्चों के विकास में खेल के महत्व को समझते हुए ग्रामीणों ने धामनी नदी के बगल में एक मिनी स्टेडियम, एक इनडोर हॉल और एक स्विमिंग पूल का भी निर्माण किया है. इन सभी प्रयासों ने बघुवर गांव के स्कूल में छात्रों की अटेंडेंस 100% है.
गांव में कभी नहीं हुए चुनाव
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि साल 2014 में सरपंच पद के चुनाव को अपवाद मान लें तो बघुवर ने कभी स्थानीय चुनाव नहीं देखा. ग्राम पंचायत के सभी सदस्यों और सहकारी समितियों को आम सहमति से नियुक्त किया जाता है. गांव में सामूहिक रूप से निर्णय लिए जाते हैं.
गांव के बीच है हरिजन बस्ती
इस गांव की सबसे खात बातों में एक है यहां की हरिजन बस्ती, जिसे गांव के बीच में बसाया गया है. गांव में सभी जातियों कि बस्तियां अलग अलग हैं. लेकिन हरिजन बस्ती को गांव की सबसे सुंदर बस्ती का दर्जा हासिल है. लोग सुबह-शाम इसी बस्ती में सैर करने जाते हैं. हर बस्ती के बाहर प्रवेशद्वार है जिसे ग्राम पंचायत ने बनवाया है.
गांव पर बनी है शॉट फिल्म
इस गांव में जाने के लिए पहले सड़क नहीं थी. ग्रामीणों ने मिलकर 3 किमी लंबी सड़क बनवा दी. बाद में सरकार की मदद से सीमेंटेड सड़क बन गई. सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद जो व्यक्ति गांव लौटता है, वह गांव के विकास में आर्थिक योगदान देता ही है. भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक माया विश्वकर्मा साल 2016 में बघुवर गांव पर "स्वराज मुमकिन है'' है नाम से एक शॉर्ट फिल्म बना चुकी हैं. इस फिल्म के लिए माया ने सैन फ्रांसिस्को में ग्लोब फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ क्रिएटिव प्रोड्यूसर का पुरस्कार जीता था.
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