मध्यप्रदेश: BJP ने कांग्रेस से पहले चली सियासी चाल
Advertisement
trendingNow1/india/madhya-pradesh-chhattisgarh/madhyapradesh392722

मध्यप्रदेश: BJP ने कांग्रेस से पहले चली सियासी चाल

 भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सियासी बिसात पर शुरुआती चालें चलकर अपने अनुरूप माहौल बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं.

भाजपा ने पहला स्ट्रोक नया प्रदेशाध्यक्ष बदलकर मारा है.(फाइल फोटो)

भोपाल: मध्यप्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में लगातार चौथी बार जीत हासिल करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सियासी बिसात पर शुरुआती चालें चलकर अपने अनुरूप माहौल बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं. वहीं, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अभी तक अपनी चुनावी रणनीति तय नहीं कर पाई है. राज्य में इस बार का विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए उतना आसान नहीं माने जा रहा है, जितने पिछले तीन विधानसभा चुनाव थे. इसकी वजह किसान गोलीकांड सहित विभिन्न घटनाओं से पार्टी के खिलाफ बना माहौल और अंदरखाने चल रही खींचतान है. इसे पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी जान चुका है. 

राजनीतिक विश्लेषक और समीक्षक शिव अनुराग पटैरिया का कहना है, "भाजपा ने अध्यक्ष बदलकर और चुनाव प्रबंध समिति बनाकर प्रारंभिक लीड तो ले ली है, अब सवाल यह उठता है कि भाजपा के स्थापित नेता नए प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह उर्फ घनश्याम सिंह को कितना स्वीकार करते हैं. खतरा यह भी है कि कहीं स्थापित नेता उनसे छिटक न जाएं और पार्टी को नुकसान न उठाना पड़ जाए."

भाजपा ने पहला स्ट्रोक नया प्रदेशाध्यक्ष बदलकर मारा है. पार्टी ने अध्यक्ष की कमान सांसद राकेश सिंह को सौंपी है, जो जमीनी राजनीति करते हुए सांसद बने. प्रदेश की राजनीति में उनका किसी से मतभेद नहीं है और न ही उनकी पहचान किसी खास गुट से रही है. हालांकि महाकौशल क्षेत्र के बाहर उनकी बड़े नेता के तौर पर पहचान नहीं है. इतना जरूर है कि वे पहले कभी प्रहलाद पटेल और उमा भारती के नजदीकी हुआ करते थे. 

भाजपा के प्रदेश महामंत्री वी.डी. शर्मा का कहना है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के फैसले से पार्टी का कार्यकर्ता उत्साहित है, नई रणनीति बनेगी और उस पर अमल होगा, जो विधानसभा के 2018 के चुनाव के साथ लोकसभा के 2019 के चुनाव में पार्टी का परचम फहराने में सफल होगी. 

भाजपा ने एक तरफ जहां लचर और कमजोर साबित हो रहे अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान को हटाकर राकेश सिंह को कमान सौंपी है, वहीं चुनाव प्रबंध समिति का भी गठन कर दिया है. इस समिति का संयोजक केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को बनाया गया है. तोमर की मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से खूब पटती है, वहीं राकेश सिंह भी उनके नजदीकियों में हैं. भाजपा में हुए बदलाव से इतना तो साफ हो गया है कि उसने गंभीरता से चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. 

वहीं मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही चाहे जितना नजदीक होने की बात करें, मगर हकीकत किसी से छुपी नहीं है. दिग्विजय की छह महीने बाद नर्मदा परिक्रमा यात्रा पूरी हुई है और अब वे राजनीतिक यात्रा की बात कह रहे हैं. 

कांग्रेस के निवर्तमान सांसद और राजनीति से संन्यास का ऐलान कर चुके सत्यव्रत चतुर्वेदी का कहना है कि कांग्रेस को जल्दी फैसला करना चाहिए, प्रदेश में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में माहौल है, लिहाजा, हाईकमान को फैसला लेने में देरी नहीं करनी चाहिए. 

कांग्रेस अभी न तो मुख्यमंत्री के तौर पर किसी चेहरे का फैसला कर सकी है और न ही चुनाव प्रबंध समिति के बारे में कोई निर्णय कर पाई है. एक तरफ सिंधिया और दूसरी ओर प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह जरूर ताबड़तोड़ दौरे और सभाएं कर रहे हैं. पिछले चार विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव में जीत से कांग्रेस उत्साहित जरूर है, मगर कार्यकर्ताओं को इस बात का इंतजार है कि हाईकमान स्थिति कब स्पष्ट करता है. राज्य में चुनाव की गर्माहट नजर आने लगी है, भाजपा को सत्ता में रहते 15 वर्ष हो गए हैं, और वह आगे यह सिलसिला जारी रखना चाहती है, जबकि कांग्रेस की कोशिश सत्ता में वापसी की है . मगर कांग्रेस फिलहाल चुनावी चौसर पर नजर नहीं आ रही है. 

Trending news