महाराष्ट्र के नागपुर (Nagpur) में भी महामारी का प्रकोप बढ़ा है और मृतक संख्या बढ़ रही है, ऐसे में सामान्य तौर पर लोग अंतिम संस्कारों में शामिल होने से बच रहे हैं. यहां तक कि उन मामलों में भी जहां मृतक कोविड-19 (Covid-19) के मरीज नहीं हैं.
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नागपुर: कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित होने के खतरे के कारण इस वक्त जब लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों के अंतिम दर्शन तक नहीं कर रहे हैं, उस वक्त नागपुर (Nagpur) के कुछ लोग हैं जो शवों को अर्थी पर रखा श्मशान घाट ले जा रहे हैं और सामाजिक दायित्व मानते हुए उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं.
महाराष्ट्र के अन्य जिलों की ही तरह नागपुर में भी महामारी का प्रकोप बढ़ रहा है और मृतक संख्या बढ़ती जा रही है, ऐसे में सामान्य तौर पर लोग अंतिम संस्कारों में शामिल होने से बच रहे हैं, यहां तक कि उन मामलों में भी जहां मृतक कोविड-19 (Covid-19) के मरीज नहीं हैं.
हालांकि, छोटे परिवारों को डर के मनोविकार का दंश झेलना पड़ रहा है जो अपने प्रियजनों के अंतिम संस्कार के लिए लोगों को जुटा पाने में संर्घष कर रहे हैं.
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ऐसे समय में, इको फ्रेंडली लिविंग फाउंडेशन (EFLF) विजय लिमाय ऐसे लोगों की मदद के लिए सामने आए हैं जो प्रियजनों के अंतिम संस्कार के संकट में फंसे हैं. EFLF के सदस्य मृतकों की अर्थी उठाकर शवदाह गृह ले जा रहे हैं और अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं.
विजय लमाय ने बताया कि संगठन नागपुर नगर निगम (NMC) के साथ मिलकर पर्यावरण अनुकूल अंतिम संस्कार करने को बढ़ावा देता है जिसके तहत लकड़ियों की बजाय कृषि अपशिष्टों एवं कृषि अवशेषों से चिता बनाई जाती हैं. यह परियोजना वर्तमान में नागपुर के छह श्मशानों में चल रही है.
लिमाय ने बताया कि 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 के बीच पर्यावरण अनुकूल तरीके से 5,040 अंतिम संस्कार कर चुके हैं. हालांकि, इस महीने, संगठन ने अब तक 1,350 शवों का अंतिम संस्कार किया है. उन्होंने बताया कि जिन लोगों का अंतिम संस्कार किया गया है उनमें कोविड-19 (Covid-19) से जान गंवाने वाले लोग भी शामिल हैं.
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