DNA Analysis: एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे में हो सकती है डील, महाराष्ट्र को मिलेगी नई सरकार?
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DNA Analysis: एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे में हो सकती है डील, महाराष्ट्र को मिलेगी नई सरकार?

DNA Analysis: ऐसी खबरें हैं कि एकनाथ शिंदे और MNS के नेता राज ठाकरे के बीच जल्द कोई डील हो सकती है, जिसके तहत शिवसेना के बागी विधायकों का विलय MNS पार्टी में हो सकता है.

DNA Analysis: एकनाथ शिंदे और राज ठाकरे में हो सकती है डील, महाराष्ट्र को मिलेगी नई सरकार?

DNA Analysis: सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की किसी भी प्रक्रिया पर रोक लगा दी है. मुम्बई में अब इस राजनीति की फिल्म का एक नया अध्याय शुरू हो चुका है, जिसमें Action भी है, Drama भी है, Tragedy भी है और Comedy भी है. Comedy ये है कि शिवसेना में ठाकरे परिवार का साथ देने वाले नेताओं की संख्या ऐसे घट रही है, जैसे पिछले दिनों तक देश में कोरोना के केस तेजी से कम हो रहे थे. हम आपको बताएंगे कि एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार क्यों नहीं गिरी? दूसरी तरफ ऐसी खबरें हैं कि एकनाथ शिंदे और MNS के नेता राज ठाकरे के बीच जल्द कोई डील हो सकती है, जिसके तहत शिवसेना के बागी विधायकों का विलय MNS पार्टी में हो सकता है. क्या इस डील से महाराष्ट्र को नई सरकार मिलेगी?

सुप्रीम कोर्ट में इन तीन मुद्दों पर सुनवाई

सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ. सुप्रीम कोर्ट को तीन मुद्दों पर सुनवाई करनी थी. पहला ये कि महाराष्ट्र के डिप्टी स्पीकर शिवसेना के बागी विधायकों को अयोग्य ठहरा सकते हैं या नहीं. दूसरा.. क्या डिप्टी स्पीकर के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को वो खुद खारिज कर सकते हैं. तीसरा क्या एकनाथ शिंदे की जगह अजय चौधरी को शिवसेना के विधायक दल का नेता नियुक्त करना असंवैधानिक है.

बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से राहत

एकनाथ शिंदे के गुट ने इन तीनों ही मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार को चुनौती दी थी, जिस पर अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि 11 जुलाई तक शिवसेना के किसी भी बागी विधायक की सदस्यता रद्द नहीं की जाएगी. इस दौरान अगले पांच दिनों में महाराष्ट्र के डिप्टी स्पीकर और शिवसेना द्वारा नियुक्त किए गए. नए विधायक दल के नेता अजय चौधरी को इस मुद्दे पर जवाब देना होगा. संक्षेप में कहें तो अब महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे समेत जिन 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने की बात कही जा रही थी, उस पर 11 जुलाई तक के लिए रोक लग गई है.

संजय राउत पर कार्यकर्ताओं को भड़काने का आरोप

दूसरा बड़ा मुद्दा ये है कि अदालत ने इन सभी बागी विधायकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कहा है. कोर्ट ने 16 विधायकों को केन्द्र सरकार द्वारा दी गई Y Security के फैसले को भी सही माना है. असल में शिवसेना के नेता संजय राउत पर पार्टी कार्यकर्ताओं को भड़काने के आरोप लगा रहे हैं. कल ही उन्होंने अपने एक बयान में शिवसेना के बागी विधायकों को जिन्दा लाश बताया था और कहा था कि गुवाहाटी से इन विधायकों का शव सीधे मुंबई आएगा, जिन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेजेंगे. संजय राउत के इस बयान के बाद से महाराष्ट्र में हिंसा का माहौल तैयार हो रहा है. पुणे में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने बागी विधायकों के दफ्तर में तोड़फोड़ की है. संजय राउत ने अपने इस बयान पर आज सफाई भी दी है. 

राजीव गांधी सरकरा ने लाया था कानून

भारत में दल-बदल की राजनीति को रोकने के लिए वर्ष 1985 में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने Anti Defection Law कानून बनाया था. शुरुआत में इस कानून में दो प्रावधान स्पष्ट किए गए थे. पहला प्रावधान ये था कि, अगर किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक बगावत करते हैं तो उन्हें किसी और दल में विलय करने का अधिकार होगा. दूसरा प्रावधान ये था कि, अगर बगावत करने वाले विधायकों की संख्या एक तिहाई होती है तो वो पार्टी में रह कर ही अपना एक अलग गुट बना सकते हैं. यानी इस सूरत में एक पार्टी में दो गुट हो सकते थे.

एक नाथ शिंदे बचा लेंगे अपनी सदस्यता?

लेकिन वर्ष 2003 में इस कानून में संशोधन किया गया और दूसरे प्रावधान को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया गया. इस तरह अब बगावत करने वाले विधायकों की सदस्यता तभी बच सकती है, जब उनकी संख्या दो तिहाई हो. एकनाथ शिंदे का दावा है कि उनके पास फिलहाल 48 विधायकों का समर्थन है. जिनमें एकनाथ शिंदे को मिलाकर शिवसेना के कुल 39 विधायक हैं और 9 विधायक निर्दलीय हैं. शिवसेना के कुल विधायकों की संख्या 55 है और इस हिसाब से दो तिहाई विधायकों की संख्या होती है, 36. यानी इसका मतलब ये हुआ कि एकनाथ शिंदे के पास दो तिहाई से तीन विधायक ज्यादा हैं और अगर ये विधायक उनके साथ रहते हैं तो वो अपनी सदस्यता बचा लेंगे.

MNS में शामिल हो सकता है शिंदे गुट

ऐसी सूरत में Anti Defection Law के तहत उनके पास किसी और पार्टी में विलय करने का विकल्प होगा. यानी वो इन विधायकों के साथ मिल कर अपना अलग गुट नहीं बना सकते. बल्कि उन्हें किसी और पार्टी में शामिल होना होगा. ये पार्टी राज ठाकरे की MNS हो सकती है. हमें पता चला है कि एकनाथ शिंदे बागी विधायकों के साथ MNS में विलय करने पर विचार कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है तो महाराष्ट्र का राजनीतिक खेल काफी उलझ जाएगा. क्योंकि ऐसी स्थिति में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए MNS के साथ गठबन्धन करना होगा.

शिंदे विलय का रास्ता नहीं चुनेंगे?

हालांकि एकनाथ शिंदे ने ये कह कर शिवसेना को फंसा दिया है कि वो विलय का रास्ता नहीं चुनेंगे. बल्कि वो शिवसेना पर ही अपना दावा ठोक रहे हैं. यही बात शिवसेना के बागी विधायक दीपक वसंत केसरकर ने भी कही है. एकनाथ शिंदे भले शिवसेना पर अपना दावा ठोक रहे हैं. लेकिन इससे पहले जब भी किसी राज्य में इस तरह का राजनीतिक संकट गहराया है, तब बागी विधायकों ने विलय के विकल्प को ही हमेशा चुना है.

गोवा में हुआ था कुछ ऐसा ही

वर्ष 2019 में गोवा में कांग्रेस के दो तिहाई विधायक पार्टी के खिलाफ हो गए थे. इसके बाद इन विधायकों ने बीजेपी में विलय कर लिया था. इसी तरह 2019 में ही सिक्किम की क्षेत्रीय पार्टी, Sikkim Democratic Front के 15 में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए थे, जिससे बीजेपी सिक्किम की सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी. अब सिक्किम में NDA की सरकार है. इसके अलावा 2019 में ही राजस्थान में बीएसपी के 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इन विधायकों की सदस्यता पर कोई खतरा नहीं आया था.

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