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नई दिल्ली: दुनिया भर में यौन शोषण (Sexual Harassment ) की शिकार करोड़ों महिलाओं की बात करें तो साल 2017 में पहली बार पूरी दुनिया में मी टू (Me Too) आंदोलन की शुरुआत हुई थी. इसका मकसद उन लोगों को बेनकाब करना था, जो अपनी ताकत का इस्तेमाल करके महिलाओं का यौन शोषण करते हैं. तब दुनिया भर की हज़ारों महिलाएं सामने आईं थी और उन्होंने बताया था कि कैसे कार्यस्थल पर उनका शोषण किया गया.
इसके बाद ये आंदोलन भारत भी पहुंच गया और लोगों को पता लगा कि कैसे दफ्तरों से लेकर फिल्मों तक में महिलाओं का शोषण होता है और कैसे शक्तिशाली लोगों के दबाव की वजह से महिलाएं इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती. इसके बाद कुछ एक लोगों को सज़ा हुई, कुछ को अपने पदों से इस्तीफा देना पड़ा. वहीं कुछ को माफी मांगनी पड़ी. लेकिन फिर धीरे धीरे ये आंदोलन ठंडा पड़ने लगा और लोग इसे भूल गए.
अचानक इसी महीने की शुरुआत यानी एक तारीख को दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) में कुछ ऐसा हुआ. जिसने लोगों को इस आंदोलन की फिर से याद दिलाई और महिलाओं का यौन शोषण करने वाले Boses के खिलाफ विद्रोह का नया तरीका भी दुनिया को दे दिया.
दरअसल, दो दिन पहले यानी 1 दिसंबर को Microsoft के Share Holderes की एक मीटिंग हुई, जिसमें ये फैसला लिया गया कि कंपनी को वो रिपोर्ट सार्वजनिक करनी होगी जो महिलाओं द्वारा यौन शोषण के आरोपों के बाद तैयार की गई थी.
आपको याद होगा कुछ महीनों पहले ही Microsoft के Co Founder और दुनिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति बिल गेट्स (Bill Gates) ने अपनी पत्नी मेलिंडा गेट्स (Melinda Gates) को तलाक दे दिया था. दोनों की शादी को 27 वर्ष हो चुके थे. लेकिन कहा जाता है कि Bill Gates की पत्नी ने उन्हें तलाक इसलिए दिया क्योंकि उनकी Jeffrey Epstein (जेफरी ऐप्सटीन) नामक एक अरबपति कारोबारी से गहरी दोस्ती थी. जिस पर बच्चों के यौन शोषण के गंभीर आरोप लगे थे.
2 साल पहले Me Too आंदोलन के दौरान Microsoft के कई बड़े Bosses और पुरुष कर्मचारियों पर भी ये आरोप लगे थे कि वो अपने साथ काम करने वाली महिलाओं का शोषण करते हैं, उनके साथ भेदभाव करते हैं और उन्हें परेशान करते हैं. ऐसे ही आरोप Bill Gates पर भी लगे थे, जिनके मुताबिक वो अपने Office में काम करने वाली महिला कर्मचारियों को परेशान किया करते थे. वो उनका फायदा उठाने की कोशिश करते थे, उन्हें E Mail भेजकर ज़बरदस्ती डिनर पर चलने के लिए कहते थे और जब कोई महिला कर्मचारी उनकी बात मानने से इनकार कर देती थी तो वो उससे कहते थे कि भूल जाना कि मैने कभी तुमसे ऐसा कुछ कहा था.
जब ऐसी तमाम शिकायतें Microsoft के Senior Managment को मिली तो इनकी जांच शुरु हुई और बिल गेट्स (Bill Gates) ने कंपनी के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया. तर्क ये था कि इससे जांच प्रभावित नहीं होगी. अब ये जांच पूरी हो चुकी है. लेकिन किसी को नहीं पता कि इस जांच में क्या निकला, Bill Gates को महिलाओं के यौन शोषण का दोषी पाया गया या नहीं ये भी किसी को नहीं पता. यानी इस जांच को पूरी तरह से दबा दिया गया.
इसी तरह जब Me Too आंदोलन के दौरान भी आरोपों की जांच हुई थी. तब भी किसी को इसके नतीजों के बारे में कुछ नहीं बताया गया. लेकिन अब Microsoft के Investors और Share Holdres ने साफ कह दिया है कि बहुत हुआ. कंपनी को उन सीनियर्स (Bosses) के नाम बताने ही होंगे. जिन्होंने वर्क प्लेस (Work Place) पर महिलाओं का शोषण किया.
इसलिए इसी महीने की एक तारीख़ को जब शेयर होल्डर्स (Share Holders) की सालाना मीटिंग हुई तो उसमें इस जांच को सार्वजनिक करने का एक प्रस्ताव लाया गया. जिसमें 80 फीसदी Share Holders ने इसके पक्ष में वोट किया. अब Microsoft के मैनेजमेंट पर ये दबाव है कि वो ये बताएं कि Bill Gates पर लगे आरोपों की जांच में क्या पाया गया? दूसरे Bosses की जांच में क्या मिला? और Work Place पर महिलाओं का यौन शोषण रोकने के लिए क्या किया गया? Share holders ने कहा है कि उन्हें इन सबके जवाब की विस्तृत रिपोर्ट चाहिए
हालांकि Microsoft का मैनेजमेंट इससे खुश नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि इससे कंपनी की साख को धक्का लगेगा. यही वजह है कि मीटिंग से पहले Microsoft ने Investors पर ये दबाव डाला था कि वो इस प्रस्ताव के विरोध में वोट करें.
लेकिन निवेशकों ने साफ कर दिया कि अब वो Management की नहीं सुनेंगे. ये Microsoft के खिलाफ एक दुर्लभ विद्रोह है और ऐसा पिछले कई दशकों में पहली बार हुआ है.
नोट करने वाली बात ये है कि दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी कंपनी में मैनेजमेंट के खिलाफ निवेशकों का ये विद्रोह, मुनाफे को लेकर नहीं है, कंपनी की भविष्य की रणनीति को लेकर नहीं है बल्कि इस कंपनी में काम करने वाले कर्मचारियों खासकर महिला कर्मचारियों के हितों की सुरक्षा के लिए है.
आपको बता दें कि सिर्फ Microsoft ही नहीं पूरी दुनिया की सैंकड़ों कंपनियों के हज़ारों कर्मचारी और निवेशक अपने मैनेजमेंट पर कुछ ऐसा ही दबाव डाल रहे हैं ताकि कर्मचारियों का शोषण रोका जा सके. इसलिए अब इस आंदोलन को People Over Profit नाम दिया गया है, यानी कंपनियों को अब मुनाफे से ऊपर मानवीय संवेदनाओं को रखना ही होगा.
एक आम आदमी अपने जीवन के 90 हज़ार घंटे दफ्तरों में काम करते हुए बिताता है. जिन कंपनियों में काम करते हुए लोग अपने जीवन के 10 साल खर्च कर देते हैं. उन्हें इस बात की गारंटी तो देनी ही होगी कि उनके यहां किसी भी कर्मचारियों का शोषण नहीं होगा, ताकतवर Bosses कर्मचारियों पर अत्याचार नहीं करेंगे, और महिला और पुरुषों को एक जैसे अधिकार दिए जाएंगे.
दफ्तरों में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जो स्टैंड Microsoft के शेयर होल्डर्स (Shareholders) ने लिया है, वो दरअसल पूरी दुनिया के Corporate जगत के लिए एक संदेश है और एक सबक भी है. संदेश ये है कि भले ही एक कंपनी के तौर पर आप भारी मुनाफा कमा रहे हो, भले ही कोविड 19 का असर भी कंपनी के Growth पर ना पड़ा हो, भले ही आपकी कंपनी हर दिन अपना विस्तार कर रही हो लेकिन अगर इन्हीं कंपनियों में महिलाएं सुरक्षित नहीं है तो इन सब बातों के कोई मायने नहीं हैं.
ऐसा ही एक उदाहरण दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक Tesla का है. Tesla की मार्केट वैल्यू 75 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का है, ये कई देशों की अर्थव्यवस्था से भी ज्यादा है. लेकिन इस कंपनी के निवेशकों ने भी कुछ दिनों पहले ये बता दिया कि कंपनी की साख कितनी बड़ी है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. Tesla में भी जब Annual Share holder meeting हुई तो इसमें भी शेयर धारकों ने ये मांग रख दी कि कंपनी कर्मचारियों के शोषण के आरोपों पर रिपोर्ट बनाकर दें. इस प्रस्ताव के पक्ष में 46 फीसदी Shareholders ने वोट किया था.
अब आप सोचिए जब दुनिया की इतनी बड़ी बड़ी कंपनियों में महिला कर्मचारी सुरक्षित नहीं हैं तो बाकी की कंपनियों का क्या हाल होगा.
Pink Ladder नामक एक संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 53 प्रतिशत महिलाएं दफ्तरों में यौन शोषण का सामना कर चुकी हैं. 56 फीसदी महिलाओं ने माना कि पिछले चार पांच साल में उनके साथ यौन शोषण की घटनाएं बढ़ी हैं. ये सर्वे भारत की 80 कंपनियों में हुआ जिसमें कई मीडिया संस्थान भी शामिल थे.
इसी सर्वे में पता चला कि 33 फीसदी महिलाओं को ये पता है कि यौन शोषण के खिलाफ उन्हें कहां और कैसे शिकायत करनी है. लेकिन इसके बावजूद Bosses के दबाव और नौकरी जाने के डर की वजह से महिलाएं ऐसा नहीं कर पातीं. भारत के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के मुताबिक 2014 से लेकर 2017 के बीच दफ्तरों में महिलाओं के खिलाफ शोषण के मामले 54 फीसदी तक बढ़ चुके हैं.
यानी चाहे कंपनियां किसी भी देश की हो वहां महिला कर्मचारियों की स्थिती बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन कोविड के बाद से अब कंपनियों में काम करने वाले ज्यादातर लोग किसी भी तरह का अत्याचार सहने की स्थिति में नहीं है और निवेशक भी इस बात को अच्छी तरह समझने लगे हैं. इसलिए वो मैनेजमेंट से बैलेंटशीट मागने से पहले अब ये पूछने लगे हैं कि कंपनियां कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए क्या कर रही हैं?
लेकिन भारत में ये बदलाव अभी इतने बड़े पैमाने पर नहीं आया है. इसलिए आज हम देश की तमाम बड़ी कंपनियों के निवेशकों से यही कहना चाहते हैं कि जब आप कंपनी से उसके मुनाफे का हिसाब मांगे तो ये भी ज़रूर पूछें कि वो कंपनी मानवीय रूप से अपने कर्मचारियों के प्रति कितनी संवेदनशील है?