Mughal Emperor Jahandar Shah History: मुगल बादशाह जहांदार औरंगजेब का पोता था. अपने पिता बहादुरशाह के मरने के बाद उसे मुगलिया तख्त पर बैठने का मौका मिला था. यह बात अलग है कि अपने एक साल के शासन में वो हरम और तवायफों से घिरा रहा.
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Mughal Emperor Jahandar Shah News: मुगल बादशाहत के नाम पर जहांदार शाह एक धब्बे की तरह साबित हुआ. कहने को उसमें औरंगजेब का खून दौड़ रहा था लेकिन उसने खुद को हरम और मुजरे तक सीमित कर लिया था. औरंगजेब की मौत के बाद मुगलिया साम्राज्य में दरबारियों का बोलबाला बढ़ गया और बहादुर शाह की मौत के बाद तो मुगल बादशाह कठपुतली बन चुके थे, जहांदार शाह उनमें से एक था.अपने पिता बहादुर शाह की मौत के बात जहांदार शाह को गद्दी जुल्फिकार अली खान के जरिए नसीब हुई थी. वो एक तरह से उसके हाथों का खिलौना बन चुका था.
लंपट के नाम से जाना गया जहांदार शाह
जुल्फिकार अली खान की महत्वाकांक्षा को रौंदने की जगह जहांदार शाह ने एक तरह से समझौता कर लिया और खुद को हरम और मुजरे तक सीमित कर लिया. कभी कभी तो वो लड़कियों के कपड़े पहन या नंगे ही शाही दरबार में दाखिल होता था. उसकी हरकतें भी अजीबोगरीब होती थी, वो बेसिर पैर के फैसले लेता था. उसकी इन्हीं हरकतों की वजह से दरबारियों और लोगों ने लंपट या मुर्ख बादशाह करना शुरू कर दिया. जहांदार शाह के बारे में इतिहासकार बताते है कि उस पर सबसे अधिक प्रभाव लाल कुंवर नाम की एक तवायफ का पड़ा. वो शासन सत्ता के महत्वपूर्ण फैसले को उसकी सलाह पर लेने लगा और उसका असर भी दिखाई देने लगा. दरबारी, मनसबदार उसकी हरकतों से चिढ़ गए थे. लाल कुंवर ना सिर्फ सामान्य फैसलों में दखल देती थी बल्कि वो सैन्य शासन में भी सलाह देने लगी और उसका असर यह हुआ कि ताकतवार सरदारों को लगा ऐसे तो उनके अस्तित्व पर खतरा पैदा हो जाएगा.
तवायफ लाल कुंवर का असर
जहांदार शाह के बारे में कहा जाता है कि उसने कई ऐसे प्रथाओं को छोड़ दिया जो मुगल बादशाही के प्रतीक हुआ करते थे. जब उसे सत्ता हासिल हुई तो उसने अपने कई करीबियों को मरवा दिया. यही नहीं कई शहजादों को मरवाने के बाद खुले में पहले उनके शवों को सड़ने दिया उसके बाद दफनाने का आदेश दिया. उसकी इस हरकतों से शासन सत्ता में बैठे लोग नाराज हुए. यही नहीं तवायफ लाल कुंवर के साथ शादी करना भी दरबारियों को रास नहीं आया. हालांकि लाल कुंवर और जहांदार के रिश्ते के बारे में कुछ इतिहासकार इत्तेफाक नहीं रखते. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि दरअसल मुगल बादशाही की वित्तीय हालत कमजोर हो चुकी थी. सिखों का विरोध चरम पर था और वो खतरों को भांपने में कमजोर साबित हुआ. इसके साथ ही कुछ ऐसे फैसले भी लिए जिसके बाद लोग कहने लगे थे इतना मुर्ख बादशाह गद्दी पर कैसे काबिज है.