Kargil War 25 Years: भारतीय वायु सेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि 1999 में कारगिल युद्ध के चरम पर होने के दौरान 24 जून, 1999 को हमारे एक लड़ाकू पायलट ने अनजाने में पाकिस्तानी सैन्य अड्डे को अपने निशाने पर ले लिया था. वह उस मिलिट्री बेस पर बमबारी करने के लिए तैयार था, लेकिन उसके सीनियर्स ने उसे वापस बुला लिया. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ तब उसी बेस पर या उसके आसपास मौजूद थे.
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Kargil Vijay 25th Anniversary: देश कारगिल विजय की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है. भारतीय सेना के हमारे जांबाजों ने देश को कारगिल युद्ध में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करते हुए एक बार फिर जीत दिलाई थी. भारत पर धोखे से थोपे गए इस युद्ध के दौरान कई ऐसे रोमांचक और ऐतिहासिक वाकए हुए जिनके बारे में बहुत ज्यादा लोगों को पता नहीं है.
कारगिल युद्ध में भारतीय वायु सेना के निशाने पर थे मुशर्रफ-शरीफ
कारगिल युद्ध के चरम पर होने के दौरान एक बार तो भारतीय वायुसेना के लड़ाकू पायलट अनजाने में ही सही पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ दोनों को एक बार में ही उड़ाने वाले थे. हालांकि, कुछ कारणों से ऐसा नहीं हो पाया. भारत सरकार के एक दस्तावेज में पता चला है कि कारगिल युद्ध में भारतीय वायुसेना के जगुआर लड़ाकू विमान का निशाना चूक गया था. वहीं, दूसरे के मुताबिक, सीनियर्स ने उसे वापस बुला लिया था.
जगुआर का निशाना चूक गया और बम टारगेट से बाहर गिरा
जानकारी के मुताबिक, 25 साल पहले कारगिल में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 24 जून 1999 को भारतीय वायुसेना के जगुआर ने पाक सेना के एक फ्रंटलाइन पोस्ट को लेजर गाइडेड सिस्टम से टारगेट करने के लिए नियंत्रण रेखा (एलओसी) के ऊपर उड़ान भरी थी. उसके पीछे एक और जगुआर था, जिसे टारगेट पर बमबारी करनी थी. लेकिन पीछे आ रहे जगुआर का निशाना चूक गया और बम टारगेट से बाहर गिर गया.
नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ दोनों ही निपटने वाले थे
बाद में पता चला कि पाकिस्तानी आर्मी के जिस ठिकाने को टारगेट किया गया था, वहां उस समय नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ दोनों मौजूद थे. रिपोर्ट के मुताबिक, जब जगुआर ने निशाना साधा तब तक पाकिस्तानी पीएम और आर्मी चीफ के वहां मौजूद होने की सूचना भारत के पास नहीं थी. वायु सेना का यह ऑपरेशन गुलटेरी में अंजाम दिया गया था. ये जगह पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर घाटी (पीओके) में एलओसी से महज 9 किलोमीटर अंदर की ओर है.
12 साल पहले ही PAK ने रची थी कारगिल जंग की साजिश
साल 1999 में जम्मू कश्मीर के कारगिल सेक्टर में मुजाहिद्दीनों की शक्ल में घुसपैठ कर पाकिस्तानी सेना के जवानों ने कई चौकियों पर कब्जा कर लिया था. सूचना मिलने के बाद भारतीय सेना के वीर जवानों ने पाकिस्तान को खदेड़ कर कारगिल की चोटियों पर फिर से तिरंगा फहराया था. कारगिल की चोटी पर पहली बार 8 मई 1999 को पाकिस्तानी फौजियों और आतंकवादियों को देखा गया था.
पाकिस्तान ने की धोखेबाजी, हैरान थी भारतीय सरकार और सेना
शुरुआत में भारतीय सेना ही नहीं बल्कि सरकार को भी पाकिस्तानी सैनिकों के इस कब्जे का यकीन नहीं हो रहा था. क्योंकि कुछ ही समय पहले भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ पाकिस्तान जाकर लाहौर में गर्मजोशी के साथ शांति और विकास के कई समझौते किए थे. हालांकि, खुफिया जानकारी सामने आने के बाद भारतीय सेना ने बहादुरी और बेहतरीन प्लानिंग के साथ पाकिस्तानी सेना को वापस खदेड़कर ही दम लिया.
भारतीय वायु सेना के एक जगुआर की एलओसी के ऊपर उड़ान
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, 24 जून 1999 को सुबह करीब 8.45 बजे जब कारगिल युद्ध अपने चरम पर था. उस समय भारतीय वायु सेना के एक जगुआर ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के ऊपर उड़ान भरी. जगुआर का इरादा “लेजर गाइडेड सिस्टम ” से बमबारी करने लिए टारगेट को चिह्नित करना था. उसके पीछे आ रहे दूसरे जगुआर को बमबारी करनी थी. लेकिन दूसरा जगुआर निशाना चूक गया और उसने “लेजर बॉस्केट” से बाहर बम गिराया जिससे पाकिस्तानी ठिकाना बच गया.
पायलट का एलओसी के पार गुलटेरी में लेजर बॉस्केट टारगेट
इसमें पायलट ने एलओसी के पार गुलटेरी को लेजर बॉस्केट में चिह्नित किया था लेकिन बम निशाने पर नहीं लगा. “बाद में इस बात की पुष्टि हुई कि हमले के समय पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ उस समय गुलटेरी ठिकाने पर मौजूद थे.” हालांकि, बम गिराने से पहले इस बात की कोई भी खबर नहीं थी. वहीं, भारतीय वायु सेना के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि 1999 में कारगिल संकट के चरम के दौरान, भारतीय वायु सेना के एक लड़ाकू पायलट ने गलती से पाकिस्तानी सैन्य अड्डे को अपने निशाने पर ले लिया था और उस पर बमबारी करने के लिए तैयार था, लेकिन उसके वरिष्ठों ने उसे वापस बुल लिया था.
24 जून, 1999 की घटना में परमाणु युद्ध शुरू होने की आशंका
रिपोर्ट के मुताबिक, 24 जून, 1999 की घटना में परमाणु हथियारों से लैस दोनों पड़ोसियों के बीच पूरी तरह से युद्ध शुरू होने की आशंका थी. क्योंकि पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, प्रधान मंत्री नवाज शरीफ और तत्कालीन पाकिस्तान सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ बेस पर या उसके आस-पास मौजूद थे. कारगिल युद्ध में शर्मनाक हार के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा था कि इसमें उनके 2700 से ज्यादा सैनिकों की जान गई थी और उन्हें 1965 और 1971 के युद्ध से ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था.
कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि में 1984 की ऑपरेशंस की बड़ी भूमिका
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि में 1984 की सैन्य घटना ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के शासन के दौरान भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत के जरिए सियाचिन पर कब्जा जमा लिया था. सियाचिन ऑपरेशन के बाद 1987 में पाकिस्तान सेना के एक सीनियर ऑफिसर ने जियाउल हक के सामने कारगिल युद्ध को लेकर एक खुफिया प्लान रखा था. हालांकि, तब अफगानिस्तान में पाकिस्तान ने एक मोर्चा खोल रखा था और जिया उल हक भारत के साथ युद्ध करने के पक्ष में नहीं थे.
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जिया उल हक के बाद बेनजीर भुट्टो भी कारगिल युद्ध पर पीछे हटी
जिया उल हक के बाद कारगिल युद्ध का प्रस्ताव बेनजीर भुट्टो के सामने भी रखा गया था. एक इंटरव्यू में पूर्व पाकिस्तान पीएम बेनजीर भुट्टो ने भारतीय पत्रकार वीर सांघवी को बताया था कि तत्कालीन डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स परवेज मुशर्रफ ने मेरे सामने कारगिल युद्ध में जीतने और श्रीनगर पर कब्जे की बात कही थी. बेनजीर को डर था कि इस चक्कर में पाकिस्तान को श्रीनगर से ही नहीं, बल्कि आजाद कश्मीर से भी हाथ धोना पड़ सकता है. उन्होंने इसे तुरंत खारिज कर दिया था.