Kargil War Years: भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध के 25 साल हो रहे हैं. इस जंग से पहले कारगिल में पाक आर्मी की घुसपैठ की मुशर्रफ की साजिश में चीन भी अलग तरह से मदद कर रहा था. हालांकि, मुशर्रफ के फोन टेप के खुलासे के बाद चीन ने शर्मिंदा होते हुए अपने सैटेलाइट लिंक को फौरन बंद कर दिया था.
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Kargil Victory 25th Anniversary: पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान कारगिल में घुसपैठ और सैनिक कार्रवाई के जरिए भारतीय जमीन हड़पने की नापाक साजिश में चीन की मदद भी ले रहा था. कारगिल युद्ध में भारत के विजय के 25 साल पूरे होने वाले हैं. इस मौके पर हम उस दौर से जुड़ी कुछ बेहद अहम कहानियों से आपको रूबरू और उसकी याद ताजा कराने की कोशिश कर रहे हैं.
कारगिल में नापाक साजिश के पीछे मुशर्रफ, चीन से ली मदद
नवाज शरीफ ने ही 1998 में परवेज मुशर्रफ को पाकिस्तान का आर्मी चीफ बनाया था. इसके बाद परवेज मुशर्रफ ने ही भारत के कारगिल इलाके में घुसपैठ की शैतानी चाल चली थी. भारत की ओर से पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सबूत के साथ इसके बारे में विस्तार से बताया गया था, लेकिन वह महज मुंह ताकते रह गए. इसका नतीजा यह हुआ कि कारगिल जंग में शर्मनाक हार के बाद नवाज शरीफ को पाकिस्तान की सत्ता से हाथ धोना पड़ा.
कारगिल में हार के बाद नवाज शरीफ से मुशर्रफ ने छीन ली सत्ता
कारगिल जंग में हार के बाद 1999 में बतौर सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ से पाकिस्तान की सत्ता छीन ली और तानाशाह शासक बन बैठा. नवाज शरीफ को जलील कर परिवार सहित पाकिस्तान से बाहर करवा दिया. हालांकि, कारगिल जंग के खलनायक मुशर्रफ का अंत भी बहुत दर्दनाक और अपमानजनक तरीके से हुआ. बहरहाल, हम आपको यह कहानी बताते हैं कि भारत के खिलाफ जंग की साजिश में पाकिस्तान ने कैसे चीन की मदद ली और मुशर्रफ के टेप से कैसे इस नापाक और घटिया हरकतों का खुलासा हुआ?
मुशर्रफ ने आत्मकथा में नहीं लिखा, लेकिन इंटरव्यू में कबूली सच्चाई
पाकिस्तान से बाहर दुबई में अमाइलॉइडोसिस बीमारी के चलते बेहद बुरी मौत से पहले जनरल मुशर्रफ ने ‘इन द लाइन ऑफ फायर - अ मेमॉयर' नाम से आत्मकथा पब्लिश करवाया था. उसमें लिखा है कि मुशर्रफ ने कारगिल पर कब्जा करने की कसम खाई थी, लेकिन नवाज शरीफ की वजह से ऐसा नहीं कर पाया. चीन की मदद से साजिश रचने और फोन टेप के बाहर आने के पूरे मामले पर उसने कुछ नहीं लिखा. हालांकि, बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के तौर पर भारतीय पत्रकार एमजे अकबर को दिए एक इंटरव्यू में इन टेपों की असलियत को कबूल किया.
26 मई, 1999 को ही भारत को नापाक साजिश का पता चल गया
कारगिल जंग पर बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 26 मई, 1999 की रात भारतीय सेना के प्रमुख वेद प्रकाश मलिक को सेक्योर इंटरनल एक्सचेंज फोन पर रॉ के सचिव अरविंद दवे ने बताया कि उनके सहयोगियों ने पाकिस्तान के दो चोटी के जनरलों के बीच एक बातचीत को रिकार्ड किया है. उनमें से एक जनरल बीजिंग से बातचीत में शामिल था. फिर उन्होंने उस बातचीत की ट्रांसक्रिप्शन के कुछ हिस्से भी पढ़ कर जनरल मलिक को सुनाए. इसमें छिपी जानकारी देश के लिए काफी अहम साबित हुई.
उन दिनों लगातार चीन में थे पाकिस्तान आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ
जनरल मुशर्रफ उस समय चीन में थे. उन्होंने पाकिस्तान के एक बहुत सीनियर जनरल से बातचीत की थी. रॉ के सदस्यों ने इनकी रिकार्डिंग करना जारी रखा और तीन दिनों बाद एक और बातचीत सामने आई. रॉ के अफसरों ने यह जानकारी सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ब्रजेश मिश्र और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भेज दी. इसके बाद प्रधानमंत्री वाजपेयी और ब्रजेश मिश्रा ने इन इंटरसेप्ट्स के बारे में सेना प्रमुख से बातचीत की.
मुशर्रफ और अजीज की बातचीत को रिकार्ड कर नवाज को सुनाया
प्रधानमंत्री वाजपेयी और सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को टेप सुनवाए जाने के बाद सरकार ने चार जून को इन टेपों को उनकी ट्रांस स्क्रिप्ट के साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को सुनवाने का फैसला किया. मुशर्रफ और अजीज की बातचीत को रिकार्ड करना और उन टेपों को नवाज शरीफ को सुनाने के सीक्रेट मिशन के बावजूद भारत में एक अखबार और एक मैगजीन ने इसकी रिपोर्ट छाप दी. हालांकि, बाद में फॉलोअप के जरिए रिपोर्ट की पुष्टि नहीं की जा सकी.
पाकिस्तान का दावा, सीआईए या मोसाद ने की होगी भारत की मदद
नवाज शरीफ को सुनाने के एक सप्ताह बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अजीज भारत आने वाले थे. उससे कुछ पहले भारत की ओर से इस टेप को सार्वजनिक किया गया. दिल्ली स्थित विदेशी दुतावासों और उच्चायोगों को भेजे गए. हालांकि, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इसके बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं कर सकता कि इस मिशन को कैसे अंजाम दिया गया, लेकिन पाकिस्तान का मानना है कि इस काम में अमेरिका की एजेंसी सीआईए या इजरायल की सीक्रेट सर्विस एजेंसी मोसाद ने भारत की मदद की.
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टेप के बाद इस्लामाबाद-बीजिंग का खास सैटेलाइट लिंक बंद
फोन टेप में इस्लामाबाद से आ रही आवाज, बीजिंग की आवाज के मुकाबले ज्यादा साफ थी. इसलिए पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद से ही इसकी रिकॉर्डिंग होने के कयास लगाए जा रहे थे. रॉ के अतिरिक्त सचिव रहे मेजर जनरल वी के सिंह ने अपनी चर्चित किताब 'इंडियाज़ एक्सटर्नल इंटेलिजेंस - सीक्रेटेल ऑफ़ रिसर्च एंड अनालिसिस विंग' में इस बारे में लिखा है कि टेप सामने आने के बाद पाकिस्तान की तमाम एजेंसियों ने इस्लामाबाद और बीजिंग के उस खास सैटेलाइट लिंक, जिसको रॉ ने 'इंटरसेप्ट' किया था को ढूंढा और फौरन बंद कर दिया.
मुशर्रफ के खिलाफ पाकिस्तान में भी पनपा गुस्सा, चीन ने साधी चुप्पी
दूसरी ओर, पाकिस्तानी पत्रकार नसीम जेहरा ने कारगिल पर अपनी बहुचर्चित किताब 'फ्रॉम कारगिल टू द कू ' में मुशर्रफ को लेकर नाराजगी दिखाई है. उन्होंने लिखा,' अपने चीफ ऑफ जनरल स्टॉफ से इतनी संवेदनशील बातचीत खुले फोन पर करके जनरल मुशर्रफ ने ये सबूत दिया कि वो किस हद तक लापरवाह हो सकते हैं. क्योंकि इस बातचीत ने सार्वजनिक रूप से ये साबित कर दिया कि कारगिल ऑपरेशन में पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व का किस हद तक हाथ है." हालांकि, चीन ने इस पूरे मामले में अपनी चुप्पी साधे रखी.
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