DNA with Sudhir Chaudhary: ट्रिपल तलाक से संतुष्ट नहीं मुस्लिम महिलाएं? अभी और कड़े कानून बनाने की उठी मांग
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DNA with Sudhir Chaudhary: ट्रिपल तलाक से संतुष्ट नहीं मुस्लिम महिलाएं? अभी और कड़े कानून बनाने की उठी मांग

DNA Analysis: कोई व्यक्ति अगर तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को छोड़ देता है तो फिर उसकी जगह जेल में है. नए कानून में 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन इस कानून को अधूरा इंसाफ बताते हुए एक बार फिर दो मुस्लिम महिलाएं देश की अदालतों में पहुंचीं हैं. 

DNA with Sudhir Chaudhary: ट्रिपल तलाक से संतुष्ट नहीं मुस्लिम महिलाएं? अभी और कड़े कानून बनाने की उठी मांग

DNA with Sudhir Chaudhary: साल 2019 में केंद्र सरकार ने ट्रिपल तलाक के खिलाफ एक कानून बनाया था. जिसके बाद से अब देश में ट्रिपल तलाक देना एक अपराध है. कोई व्यक्ति अगर तीन बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को छोड़ देता है तो फिर उसकी जगह जेल में है. नए कानून में 3 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

दो मुस्लिम महिलाएं पहुंची कोर्ट

लेकिन इस कानून को अधूरा इंसाफ बताते हुए एक बार फिर दो मुस्लिम महिलाएं देश की अदालतों में पहुंचीं हैं. दिल्ली की बेनजीर हिना की शादी को सिर्फ 16 महीने हुए हैं और उनके पति ने 8 महीने पहले उन्हें तलाक का नोटिस भेज दिया. बेनजीर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर कहा है कि ट्रिपल तलाक पर बना कानून काफी नहीं है और जब तक तलाक के दूसरे फॉर्मेट तलाक-ए-हसन पर रोक नहीं लगती तब तक न्याय अधूरा है. 

दूसरी शादियों पर कानून की मांग

इसी तरह रेशमा को भी उनके पति ने एकतरफा तलाक दे दिया है और अब वो दूसरी शादी करना चाहता है. रेशमा ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दी है और मांग की है कि देश में Polygamy यानी एक से ज्यादा शादियों पर नया कानून बनाया जाए. ये कानून ऐसा हो जिसमें अगर कोई पुरुष दूसरी शादी करना चाहे, तो उसके लिए पहली पत्नी की सहमति जरूरी हो. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांगा है.

इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीके प्रचलित हैं.

  • पहला तलाक-ए-बिद्दत है जिसे आप ट्रिपल तलाक के नाम से जानते हैं. इसमें पति अपनी पत्नी को 3 बार तलाक बोलकर छोड़ सकता है. लेकिन अब ट्रिपल तलाक भारत में जुर्म है. वर्ष 2019 में संसद एक कानून बनाकर इसे गैरकानूनी घोषित कर चुकी है.

  • तलाक का दूसरा तरीका है- तलाक-ए-अहसन. इसमें पति के तलाक देने के 3 महीने बाद तक पत्नी उसी के घर में अलग रह सकती है. तीन महीने में समझौता होता है तो ठीक, वर्ना तलाक हमेशा के लिए हो जाता है.

  • तलाक का तीसरा तरीका है- तलाक-ए-हसन. इसमें पति अपनी पत्नी को एक-एक महीने के अंतर पर तीन बार तलाक देता है. पत्नी उसी के साथ रहती है. तीन महीने पूरे होने तक अगर पति का मन नहीं बदलता तो फिर तलाक को मुकम्मल मान लिया जाता है.

यानी तलाक-ए-हसन एक तरह से तलाक-ए-बिद्दत का ही दूसरा वर्जन है. इसमें एक ही बार में तलाक..तलाक..तलाक ना बोलकर 3 महीने में तीन बार तलाक दिया जाता है. इसमें 3 महीने तक पत्नी वेट एंड वॉच की स्थिति में रहती है. उसे नहीं पता होता कि उसका पति उसे एक्सटेंशन देगा या नहीं?

क्या कहता है भारतीय संविधान?

याचिकाकर्ता बेनजीर हिना ने तलाक-ए-हसन को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के खिलाफ बताया है. भारतीय संविधान के ये चारों अनुच्छेद समानता, बराबरी, जीने के अधिकार और वैचारिक एवं धार्मिक आजादी की बात कहते हैं. इसी के साथ याचिका में The Muslim Personal Law Application Act-1937 और The Dissolution Of Muslim Marriage Act-1939 को भी संविधान के खिलाफ बताकर रद्द करने की मांग की है.

कई धर्मों को मिलाकर बना है अपना भारत

भारत विभिन्न धर्मों से मिलकर बना देश है. यहां सबके शादी करने के अलग तरीके हैं. लेकिन तलाक को लेकर पति-पत्नी में आम सहमति का पैटर्न दिखाई देता है. हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13-B में प्रावधान है कि पति-पत्नी आपसी सहमति से ही शादी खत्म कर सकते हैं. वहीं मुस्लिम मैरिज एक्ट आधा अधिकार देता है. इसमें शादी के लिये तो सहमति की बात कही गई है. लेकिन शादी खत्म करने का अधिकार सिर्फ पुरुष को दिया है.

संबंध तोड़ने के 5 तरीके

The Muslim Personal Law Application Act-1937 में पति और पत्नी के लिए संबंध तोड़ने के 5 तरीके बताए गए हैं. ये तरीके हैं तलाक, इला, जिहार, लियान और पांचवे तरीके का नाम है- खुला या मुबारात. लेकिन इसमें तलाक का अधिकार सिर्फ पुरुषों को दिया गया. इसके बाद वर्ष 1939 में The Dissolution Of Muslim Marriage Act बनाया गया. लेकिन इसमें तलाक की परिस्थितियों और महिलाओं के मुआवजे के बारे में बताया गया. ये विचित्र स्थिति है कि शादी के समय तो लड़की की रजामंदी जरूरी है. लेकिन रिश्ता तोड़ते वक्त उसकी हां या ना के कोई मायने नहीं हैं. इसीलिए याचिका में मांग की गई है कि सरकार एक ऐसा कानून लाए जो सभी धर्मों पर और महिलाओं-पुरुषों पर बराबरी से लागू हो.

शरीयत की बजाए अमल में लाया जाए कानून 

देश में समानता के सिद्धांत की बात होती है तो एक से ज्यादा शादियां करने पर भी सवाल उठते हैं. मुस्लिम समुदाय का कहना है कि 4 शादियों का अधिकार उसे शरीयत में मिला है, तो इसमें शर्तें भी हैं और जिम्मेदारी भी तय की गई है. लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट में जो मामला गया है उसमें कहा गया है कि एक से ज्यादा शादियों की बुनियाद में ही धोखा है और शरीयत की बजाए कानून पर अमल होना चाहिए.

28 साल की रेशमा की शादी को तीन साल ही हुए हैं और उनके पति शोएब ने उन्हें तलाक दे दिया है. शोएब की ये दूसरी शादी थी, और अब रेशमा को पता चला है कि वो तीसरी शादी की तैयारी कर रहा है. इसीलिये रेशमा ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका देकर मांग की, कि POLYGAMY यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखने के खिलाफ देश में जो कानून है, उसके दायरे में मुस्लिमों को भी लाया जाए.

IPC की धारा 494 में एक समय में एक से ज्यादा पत्नियां रखना गैरकानूनी और इसमें 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. ऐसी स्थिति में दूसरी शादी को कानूनन जायज भी नहीं माना जाता है. रेशमा ने इस याचिका में जो मांग की है, पहले वो आपको बताते हैं- 

पहली मांग है- सराकर मुस्लिम पुरुषों के बहुविवाह को रेगुलेट करने के लिये कानून बनाए.

दूसरी मांग है- दूसरी शादी से पहले पहली पत्नी की लिखित इजाजत लेना जरूरी हो.

तीसरी मांग है- सभी मुस्लिम शादियों के लिये रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाए.

और चौथी मांग है- कोई पुरुष पहली पत्नी के भरण-पोषण का इंतजाम किये बिना दूसरी शादी करे, तो वो शादी ग़ैरकानूनी घोषित हो.

बहुविवाह को लेकर विकसित हैं इस्लामिक देश

यहां सबसे महत्वपूर्ण दूसरा प्वाइंट है जिसमें दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की रजामंदी की मांग की गई है. नई पीढ़ी के मुस्लिमों में चार शादियों का रिवाज आपको देखने को नहीं मिलेगा. फिर भी जब हमारे यहां इसपर नए कानून की बात होती है तो इसका विरोध शुरू हो जाता है. इसे धार्मिक आजादी का अतिक्रमण बता दिया जाता है. लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि टर्की और ट्यूनीशिया जैसे इस्लामिक देश भी POLYGAMY पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा चुके हैं. वहां एक से ज्यादा पत्नियां रखना गैरकानूनी है. इसके लिए सजा का प्रावधान है. वहीं पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक देश भी इस मामले में एडवांस हैं. पाकिस्तान में कोई व्यक्ति दूसरी शादी तभी कर सकता है जब उसकी पहली पत्नी उसे इसकी लिखित इजाजत दे दे. सिर्फ सऊदी अरब, ईरान और कतर जैसे कुछ इस्लामिक देश हैं जहां अब भी बहुविवाह का प्रचलन है.

हिंदू धर्म में शादियों को 7 जन्मों का बंधन माना जाता है. सात फेरों के बाद सात वचनों की भी इसमें व्यस्था है. वहीं इस्लाम में शादी एक Contract है. लेकिन इसमें भी शर्तें और जिम्मेदारियां तय की गई हैं. सवाल वही है कि जब बहुत कुछ चीजें एक ही हैं तो फिर एक समान कानून क्यों नहीं होना चाहिए.

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