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DNA with Sudhir Chaudhary: आपको देश में आ रहे एक बहुत बड़े बदलाव के बारे में जानना चाहिए. आपने अक्सर ये सुना होगा कि देश के किसी मदरसे में राष्ट्रगान नहीं गाया जाता. ज्यादातर मस्जिदों में भी यही हाल है. लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने गुरुवार से राज्य के सभी साढ़े 16 हजार मदरसों में राष्ट्रगान को अनिवार्य कर दिया है. ये एक बहुत ही क्रान्तिकारी बदलाव है. आपने देखा होगा कि देश के हर स्कूल में, चाहे वो क्रिश्चियन मिशनरी स्कूल हो, हिन्दुओं का स्कूल हो, सिखों का स्कूल हो या बौद्ध धर्म का स्कूल हो, सभी स्कूलों में राष्ट्रगान गाया जाता है. लेकिन अभी तक सिर्फ मदरसों में ही राष्ट्रगान का विरोध होता था. ऐसे में सवाल है कि क्या बाकी स्कूलों की तरह पूरे देश के मदरसों में भी राष्ट्रगान होना चाहिए?
लेकिन सबसे पहले आपको उत्तर प्रदेश के रामपुर में स्थित एक मदरसे के बारे में जानना चाहिए. इस मदरसे में आज सरकार के आदेश के तहत राष्ट्रगान गाया गया और इस दौरान स्कूल के सभी छात्र, मदरसा प्रबंधन के लोग और शिक्षक भी वहां मौजूद थे. इससे पहले इस मदरसे में केवल इस्लाम धर्म के तहत दुआएं पढ़ी जाती थीं और राष्ट्रगान नहीं गाया जाता था. इसलिए ऐसी तस्वीरों को ऐतिहासिक और क्रान्तिकारी भी माना जा सकता है.
उत्तर प्रदेश के मदरसा शिक्षा परिषद द्वारा जो आदेश जारी किया गया है, उसमें लिखा है कि ये फैसला राज्य के सभी मान्यता प्राप्त मदरसों पर लागू होगा, चाहे उन्हें सरकार से फंडिंग मिलती हो या नहीं. हालांकि इस दौरान इन मदरसों में इस्लाम धर्म के तहत दुआएं पढ़ने की भी इजाजत होगी. इस समय भारत में तीन तरह के मदरसे हैं.
पहले वो जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और जिन्हें केन्द्र और राज्य सरकारों से फंडिंग मिलती हैं. दूसरे वो जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं लेकिन उन्हें फंडिंग इस्लामिक संस्थाओं और मुस्लिम समुदाय के लोगों से मिलती है और तीसरे मदरसे वो जो ना तो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और ना ही इन्हें सरकार से फंडिंग मिलती हैं. उत्तर प्रदेश में पहली और दूसरी श्रेणी के मदरसों की संख्या 16 हजार है, जिनमें 20 लाख बच्चे पढ़ते हैं. इनमें 558 मदरसे ऐसे हैं, जिन्हें सरकार से फंडिंग मिलती है. 2021 में योगी सरकार ने इन मदरसों को 479 करोड़ रुपये दिए थे. यानी औसतन एक मदरसे को 86 लाख रुपये की फंडिंग सालाना होती है और अब इन सभी मदरसों में राष्ट्रगान गाना अनिवार्य होगा.
अगर भारत सरकार की बात करें तो केन्द्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार 2018-2019 में देश में कुल मदरसों की संख्या लगभग 24 हजार थी और तब इनमें लगभग 5 हजार मदरसे ऐसे थे, जो सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थे. हालांकि ये संख्या सिर्फ उन मदरसों की है, जिन्होंने सरकारी मान्यता हासिल करने के लिए आवेदन किया. अनौपचारिक रूप से देश में लगभग एक लाख मदरसे होने की सम्भावना जताई जाती है और इनमें भी 30 से 40 हजार मदरसे केवल उत्तर प्रदेश में बताए जाते हैं.
सरकार जिन मदरसों पर करोड़ों रुपये खर्च करती है, उनका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम बच्चों को इस्लामिक शिक्षा देना है. इन मदरसों में 12वीं कक्षा तक पढ़ाई होती है और सरकार से फंडिंग लेने के लिए इन मदरसों को गणित, विज्ञान, भूगोल और अंग्रेजी के विषय की पढ़ाई भी बच्चों को करानी पढ़ती है लेकिन इसके साथ ही बच्चों की धार्मिक शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया जाता है. मदरसों में बच्चों को छोटी उम्र से ही कुरान में कही गई बातों, इस्लामिक कानूनों और इस्लाम से जुड़े दूसरे विषयों के बारे में पढ़ाया जाने लगता है और इससे कहीं ना कहीं बहुत से बच्चे एक धर्म की शिक्षा तक ही सीमित रहते हैं. यही वजह है कि जब-जब मदरसों में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने की बात आती है तो कुछ खास विचारधारा के लोग इसका विरोध करने लगते हैं.
उदाहरण के लिए वर्ष 2017 में भी उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी तरह का आदेश जारी किया था, जिसके तहत 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मदरसों में तिरंगा फहराने और राष्ट्रगान गाने को अनिवार्य किया गया था. इसके अलावा राज्य सरकार ने तब ये भी कहा था कि सभी मदरसों को इसका वीडियो बनाकर स्थानीय प्रशासन को भेजना होगा और उस समय इस फैसले का काफी विरोध हुआ था. तब मदरसा संचालकों का ये कहना था कि वो 15 अगस्त को तिरंगा फहराने की वीडियो रिकॉर्डिंग नहीं करेंगे. सोचिए, भारत के अलावा किसी और देश में ऐसा हो सकता है कि कुछ लोग देश का राष्ट्रीय ध्वज फहराने से ही इनकार कर दें और उन्हें अपने देश का राष्ट्रगान गाने से भी परेशानी हो. ये सिर्फ भारत में ही हो सकता है, जिसका संवैधानिक स्टेट्स सेकुलर है.
बड़ी बात ये है कि जब आप ईसाई मिशनरी स्कूलों में जाते हैं तो वहां पर भी राष्ट्रगान होता है. हिन्दू, सिख और बौद्ध धर्म के स्कूलों में भी राष्ट्रगान गाया जाता है. लेकिन जिन मदरसों में एक खास धर्म के बच्चे पढ़ते हैं, वहां राष्ट्रगान नहीं होता? तो हमारा सवाल है कि ये डिस्काउंट इन लोगों को किसने दिया? जो राष्ट्रगान है, वो देशभक्ति का प्रतीक माना जाता है और कोई भी धर्म देश के प्रति गद्दारी करने की शिक्षा नहीं देता. फिर ये कौन लोग हैं, जो मदरसों में राष्ट्रगान का विरोध करते हैं?
माना जाता है कि मदरसों की शुरुआत सातवीं शताब्दी में तब हुई थी, जब धार्मिक शिक्षा हासिल करने के इच्छुक लोगों को मस्जिदों में इस्लाम धर्म के विषय में पढ़ाया जाता था. इसके बाद के 400 वर्षों के दौरान मदरसे शिक्षा के अलग केंद्रों के रूप में विकसित होने लगे. 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान जब अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ने लगा और दुनियाभर में ईसाई मिशनरी स्कूलों की स्थापना होने लगी तो इन स्कूलों की स्थापना के पीछे का मकसद भी धर्म का प्रचार करना था लेकिन फर्क सिर्फ इतना था कि अंग्रेजों ने ऐसा करने के लिए विज्ञान, गणित और टेक्नोलॉजी की शिक्षा को आधार बनाया. इससे लोगों को रोजगार मिलने लगा और ज्यादा से ज्यादा लोग ईसाइयों के स्कूलों में आने लगे, जबकि आधुनिक शिक्षा के अभाव में मदरसों से पढ़कर निकलने वाले छात्रों के लिए रोजगार की कमी होने लगी और धीरे-धीरे ये लोग आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ने लगे. भारत में मदरसों की स्थापना 10वीं शताब्दी से होने लगी थी. यानी जैसे ही मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा किया वैसे ही भारत में मदरसों के माध्यम से इस्लाम का प्रचार किया जाने लगा.
भारत में अभी ज्यादातर मदरसे संविधान के अनुच्छेद 30 के आधार पर चल रहे हैं. इसमें भारत के अल्पसंख्यकों को ये अधिकार है कि वो अपने खुद के भाषाई और शैक्षिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और वो बिना किसी भेदभाव के सरकार से ग्रांट भी मांग सकते हैं. भारत कहने के लिए तो एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन यहां धार्मिक शिक्षा देने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है और ऐसा नहीं है कि सिर्फ मदरसों को ही सरकार से फंडिंग मिलती है. देश में संस्कृत स्कूलों को भी सरकार से आर्थिक सहायता मिलती है और कई शिक्षण संस्थानों को भी अलग अलग श्रेणी में मदद दी जाती है. लेकिन इन संस्थानों और मदरसों में फर्क ये है कि मदरसों की मूल भावना में इस्लाम को ही केन्द्र में रखा जाता है जबकि इन संस्थानों में धार्मिक शिक्षा पर ज्यादा जोर नहीं होता और यही वजह है कि आज देश में जो मदरसे हैं, वहां इस्लाम धर्म के तहत दुआएं तो पढ़ी जाती हैं, लेकिन राष्ट्रगान नहीं गाया जाता और इसके पीछे धार्मिक कट्टरवाद सबसे बड़ी वजह है.
इसे कुछ आंकड़ों से समझते हैं. एक अध्ययन के मुताबिक मदरसों में पढ़ने वाले सिर्फ 2 प्रतिशत छात्र ही भविष्य में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं, जबकि 42 प्रतिशत छात्रों का उद्देश्य भविष्य में धर्म का प्रचार करना होता है. 16 प्रतिशत छात्र शिक्षक के रूप में धर्म की शिक्षा देना चाहते हैं. 8 प्रतिशत छात्र इस्लाम की सेवा करना चाहते हैं, जबकि 30 प्रतिशत का मकसद मदरसों से शिक्षा हासिल करने के बाद सामाजिक कार्य करना होता है, जबकि 2 प्रतिशत छात्र भविष्य में धर्म गुरू बनना चाहते हैं. यानी मदरसों से पढ़ने के बाद विज्ञान या टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा नाम मात्र के छात्रों की होती है और यही छात्र जब मदरसों से शिक्षा हासिल करके निकलते हैं, तो इनमें से बहुत सारे छात्र सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान होने पर इसका विरोध करते हैं. राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अपमान करते हैं.
आपको याद होगा पिछले महीने जब दिल्ली के जहांगीरपुरी में हिंसा भड़की थी तो वहां बहुत सारे लोगों ने तिरंगे को भी नहीं बख्शा था और उस पर भी पत्थर बरसाए थे. इसलिए आज हमारी मांग ये है कि उत्तर प्रदेश की तरह देश के दूसरे राज्यों के मदरसों में भी राष्ट्रगान को अनिवार्य किया जाना चाहिए. इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा मदरसे पाकिस्तान में हैं. वहां 60 हजार से ज्यादा मान्यता प्राप्त मदरसे हैं और इन्हीं मदरसों में तालिबान का कट्टर विचार भी जन्मा है. तालिबान का पश्तो में अर्थ छात्र ही होता है, जो मदरसों में सुन्नी इस्लाम की कट्टर मान्यतों की शिक्षा लेते हैं. यानी यहां भारत के लिए सीख ये है कि धार्मिक शिक्षा उस आरी की तरह है, जो धर्मनिरपेक्षता की मजबूत जड़ों को भी काट सकती है.
इस समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में बड़े और क्रान्तिकारी फैसले ले रहे हैं. हाल ही में उन्होंने मन्दिरों और मस्जिदों को ये आदेश दिया था कि वहां लगे लाउडस्पीकर की आवाज धार्मिक स्थल के परिसर से बाहर नहीं आना चाहिए. इसके अलावा उत्तर प्रदेश में अब बिना इजाजत धार्मिक जुलूस निकालने पर पाबंदी लगा दी गई और अब मदरसों में राष्ट्रगान अनिवार्य हो गया है. हमें लगता है कि आज उत्तर प्रदेश से बाकी राज्यों को सीख लेनी है और ये भी सीखना चाहिए कि कैसे प्रशासन निष्पक्ष रह सकता है. यानी सबके लिए बराबर रह सकता है.
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