OPINION: नीतीशे सरकार.. जनता का सम्मान या विश्वासघात का कीर्तिमान!
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OPINION: नीतीशे सरकार.. जनता का सम्मान या विश्वासघात का कीर्तिमान!

Nitish Kumar: नीतीश क्यों पलट जाते हैं? इस सवाल ने कई सवालों को जन्म दे दिया है. क्या नीतीश को सत्ता की लालच है? क्या नीतीश बिहार की जनता के हित में पलट जाते हैं? क्या नीतीश को मुख्यमंत्री बने रहने का वरदान चाहिए?

OPINION: नीतीशे सरकार.. जनता का सम्मान या विश्वासघात का कीर्तिमान!

Nitish Kumar: नीतीश क्यों पलट जाते हैं? इस सवाल ने कई सवालों को जन्म दे दिया है. क्या नीतीश को सत्ता की लालच है? क्या नीतीश बिहार की जनता के हित में पलट जाते हैं? क्या नीतीश को मुख्यमंत्री बने रहने का वरदान चाहिए? क्या नीतीश फिर पलटेंगे? क्या पलटने वाले नीतीश जनता की पसंद बने रहेंगे? क्या नीतीश को किसी पर भरोसा नहीं है? क्या अब नीतीश भरोसे के ही काबिल नहीं हैं? ये नीतीश की आखिरी पलटी है? इन सवालों के मध्य में नीतीश भी खुद को आंक रहे होंगे. अगर नहीं, तो अब उनके सोचने का वक्त आ चुका है. क्योंकि जब जनता पलटेगी तो नीतीश को पलटी मारने का मौका ही नहीं मिलेगा.

नीतीश के पलटने का सिलसिला 1994 से ही जारी है. 1994 तक वे लालू प्रसाद यादव के सियासी साथी थे. अनबन के बाद उन्होंने पलटी मारी और लालू से अलग होकर जॉर्ज फर्नांडिस के साथ समता पार्टी बनाई. 1995 में लालू से करारी हार मिली तो वे नया साथी खोजने लगे. फिर समता पार्टी और भाजपा का गठबंधन हुआ. 2003 में समता पार्टी जेडीयू यानी जनता दल यूनाइटेड हो गई और इसके मुखिया सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार थे.

भाजपा के साथ ने नीतीश कुमार को 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री पद की गद्दी दिलाई. कुछ साल तक नीतीश कुमार पलटी नहीं मारे. बिहार की जनता को भी भाजपा और जेडीयू का साथ पसंद आ रहा था. 2005 से लेकर 2014 तक नीतीश जनता के हिसाब से चले. फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आया और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एनडीए का पीएम चेहरा बनाया गया. फिर नीतीश को भाजपा से नफरत होने लगी. नफरत की वजह अलग विषय है, अभी पलटने वाली फितरत की बात ही आगे बढ़ाई जाए तो फ्लो बना रहेगा. भाजपा-एनडीए से नफरत इतनी कि नीतीश ने पलटी मार दी और फिर लालू के साथ हो गए.

यहीं से नीतीश कुमार की पलटी मारने वाली 'भयंकर' छवि उभर कर सामने आने लगी. राजनीति और आम लोगों की चर्चा में भी नीतीश को लेकर 'पलट' वाला फार्मूला गूंजने लगा. लालू के साथ नीतीश 2015 का चुनाव लड़े और जीते, मुख्यमंत्री भी बने. लेकिन अब नीतीश को पलटने की आदत लग चुकी थी. 2017 में नीतीश फिर पलट गए और भाजपा के साथ हो गए. इतना पलटे कि.. उनका नाम ही पलटूराम रख दिया गया. शायद ये नाम उन्हें बुरा भी नहीं लगा होगा.. क्योंकि वे तब तक कई पलटी मार चुके थे. 2020 का विधानसभा चुनाव उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा और जीत भी गए. जीत नहीं गए जनता ने भरोसा जताकर उन्हें जिताया. फिर पलटने वाला सीजन आया और नीतीश पलट गए. 2022 में महागठबंधन में चले गए. अब लेटेस्ट में आज ही (28 जनवरी 2024) पलटी मारकर फिर एनडीए में आ गए हैं.

एनडीए में आते ही उन्होंने अपने एक दिन पहले के सहयोगियों को नकारा बताना शुरू कर दिया है. 9वीं बार मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि इंडि अलायंस और महागठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं था. इन दोनों से हाथ मिलाने से पहले वे एनडीए को कोसते रहते थे. अब एनडीए ही उनका सहारा बना है. एनडीए के लिए उन्होंने यहां तक कह दिया था कि 'मर जाएंगे लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाएंगे...' वही भाजपा इतनी सगी कैसे हो गई? नीतीश को लेकर सवालों की कमी नहीं है. सवाल तो बहुत हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जनता किस नीतीश के साथ है...?

एनडीए वाले नीतीश के साथ या फिर महागठबंधन और इंडि अलायंस वाले नीतीश के साथ. जनता का मन पढ़ने के लिए फिर 2020 का फ्लैशबैक करना होगा. वही वाला सीन, जब नीतीश ने भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव जीता था. यानी जनता ने नीतीश को भाजपा के साथ पसंद किया था. ये भी कह सकते हैं कि बिहार की जनता को लग रहा था कि भाजपा के साथ नीतीश बिहार को विकास की पटरी पर दौड़ा देंगे. लेकिन नीतीश तो पलट गए.. फिर पलट गए..! लालू जी के साथ हो गए. अब वर्तमान में पलट कर एनडीए के हो गए हैं. इसमें बिहार की जनता का फायदा कितना है? अंदाजा ही लगाते रहिये और उम्मीद करिये कि नीतीश अब ना पलटें. अब लेख के शीर्ष का भी जिक्र कर लेना जरूरी है, जो नीतीश के पलटी मारने पर सोच-विचार कर लिखा गया है.

सीधे मुद्दे पर आते हैं... बिहार का मतदाता जब 2025 में राज्य का मुख्यमंत्री चुनेगा तो नीतीश की पलटमारी जरूर याद रखेगा. नहीं याद रखने का तो कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि बदलाव प्रकृति का नियम है. हमें अपनी प्रवृत्ति को बदलना होगा.. सॉरी, हमें नहीं नीतीश जी को! 'हमें' फ्लो-फ्लो में आ गया.., 'बिहार की जनता' के लिए. प्रवृति.. प्रकृति के नियम वाली बात सही साबित हुई तो... नीतीश जी के पास पलटने का ऑप्शन शायद होगा ही नहीं! तब जनता ही नीतीश के बारे में डिसाइड करेगी कि वे जनता का सम्मान कर रहे हैं या विश्वासघात का कीर्तिमान बनाने में अपनी मेधा खपाए जा रहे हैं.

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