पूरे देश में एक साथ हुए चुनाव तो खर्च घटेगा या बढ़ेगा? वन नेशन वन इलेक्शन पर ये बोले एक्सपर्ट
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पूरे देश में एक साथ हुए चुनाव तो खर्च घटेगा या बढ़ेगा? वन नेशन वन इलेक्शन पर ये बोले एक्सपर्ट

One Nation One Election:  सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के प्रमुख राव ने अनुमान लगाया था कि अगर 2024 में भारत में सभी स्तरों पर चुनाव होते हैं, तो इस पर 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होंगे. उन्होंने कहा कि ये अनुमान संसदीय चुनावों से पहले लगाए गए थे और भविष्य के चुनावों में वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है. 

पूरे देश में एक साथ हुए चुनाव तो खर्च घटेगा या बढ़ेगा? वन नेशन वन इलेक्शन पर ये बोले एक्सपर्ट

Pros of One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने पर चुनाव खर्च में कम से कम 30 प्रतिशत की कमी आ सकती है. यह दावा किया है चुनाव खर्च पर नजर रखने वाले एक एक्सपर्ट ने. हालांकि उन्होंने कहा कि यह निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता और राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करेगा. तीन दशकों से चुनावी खर्च पर नजर रख रहे एन भास्कर राव ने कहा कि 'वोट के बदले नोट' या वोटर्स को लुभाने पर अंकुश लगाए बिना चुनाव खर्च में बड़े स्तर पर कमी नहीं आएगी. 

इस साल हुए लोकसभा चुनावों से पहले, सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के प्रमुख राव ने अनुमान लगाया था कि अगर 2024 में भारत में सभी स्तरों पर चुनाव होते हैं, तो इस पर 10 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होंगे. उन्होंने कहा कि ये अनुमान संसदीय चुनावों से पहले लगाए गए थे और भविष्य के चुनावों में वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा हो सकता है. 

क्या बोले एक्सपर्ट?

राव ने साफ किया कि इन आंकड़ों में राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव आयोग को बताए गए आधिकारिक खर्च के आंकड़ों और चुनाव कराने में सरकार के खर्च के अतिरिक्त बेहिसाबी व्यय भी शामिल हैं. 

राव ने कहा, 'वन नेशन वन इलेक्शन के विचार को अपनाने से अनुमानित 10 लाख करोड़ रुपये के चुनाव खर्च में से 3-5 लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है, जो निर्वाचन आयोग की कार्यकुशलता और राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करेगा.'

EC के लिए कही बात

उन्होंने कहा, 'वन नेशन वन इलेक्शन पहल से चुनाव खर्च में कोई खास कमी नहीं आएगी. जब तक राजनीतिक दलों की ओर से उम्मीदवारों के चयन, प्रचार और वर्तमान पदाधिकारियों की सुविधाओं के संबंध में अपनाए जाने वाले मौजूदा तौर-तरीकों पर लगाम नहीं लगाई जाती, जब तक चुनाव आयोग ज्यादा कार्यकुशल नहीं हो जाता, उसकी आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों की तरफ से नहीं अपनाया जाता और चुनाव कार्यक्रम अधिक तर्कसंगत नहीं हो जाता, तब तक चुनाव खर्च में खासी कमी की उम्मीद नहीं की जा सकती." 

उन्होंने बताया कि 10 लाख करोड़ रुपये के अनुमान में पांच वर्ष के कार्यकाल के आधार पर लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं व पंचायतों (तीन स्तरों) के चुनाव खर्च शामिल हैं. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक साथ चुनाव कराने को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को बुधवार को मंजूरी दे दी. राव ने कहा, 'साल 2014 (36 दिन) और 2019 (38 दिन) के बजाय एक सप्ताह में चुनाव कराने से चुनाव खर्च में काफी कमी आने की संभावना है.' 

(PTI इनपुट के साथ)

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