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नई दिल्ली: अब तक आपने चुनावों के तमाम नतीजे देख लिए होंगे और उनका विश्लेषण भी देख लिया होगा. हमारे देश में चुनावों का मतलब है, किसने कितनी सीटें जीती और किसे कितने वोट मिले. यानी ये सब वोटों का खेल है. लेकिन वोटों के इन आंकड़ों से आगे एक और विश्लेषण भी है. वो है, देश के लोगों के मन का विश्लेषण. क्योंकि लोग वोट वहीं डालते हैं, जहां उनका मन कहता है. हम वोटों की बात तो करते हैं लेकिन मन की बात नहीं करते.
आज हम आपको बताएंगे कि पांच राज्यों के 18 करोड़ 30 लाख वोटर्स का मन क्या कहता है. पिछले दो साल में हमारे विपक्षी नेताओं ने और हमारे मीडिया ने कोविड के खिलाफ भारत की लड़ाई पर गुमराह किया, भारत में बनी वैक्सीन पर गुमराह किया, किसान आन्दोलन को लेकर भड़काया, कोविड के बाद आर्थिक मंदी और बेरोजगारी को बहुत बड़ा मुद्दा बनाया और ऑपरेशन गंगा में भी यूक्रेन से आए छात्रों के मन में जहर भरा. लेकिन उसके बावजूद इन करोड़ों लोगों ने फिर भी मोदी को ही वोट दिया. आज हम इसी बात का विश्लेषण करेंगे कि क्या देश की मर्जी जानने के बावजूद, हमारे देश के विपक्षी नेता और वो मीडिया जो लगातार नकली खबरें दिखाता रहा है, क्या अब सुधरने का नाम लेंगे?
चुनावों का मतलब केवल किसी पार्टी की जीत और हार से नहीं होता. चुनाव हमें देश के लोगों की मनोस्थिति के बारे में भी बताते हैं और ये देश के लिए एक रिएलिटी चेक की तरह होते हैं. इन चुनावों ने देश को कौन सा सच बताया है, आज आपको वही समझना है.
ये चुनाव आपको ये बताते हैं कि, जिन लोगों ने कोविड को लेकर भारत सरकार की नीतियों को कमजोर और दिशाहीन बताया, उन पर सवाल उठाए, ये नतीजे उनके चेहरे पर एक बहुत बड़ा तमाचा हैं. जिन लोगों ने देश के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई वैक्सीन पर अविश्वास का माहौल फैलाया और ये तक कह दिया कि वो देश में बनी वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. जिन्होंने वैक्सीन की कमी को एक बड़ा मुद्दा बनाया और लोगों को भड़काने की कोशिश की. जिन लोगों ने कोविड के दौरान लॉकडाउन का विरोध किया और देश के नागरिकों को उनसे लॉकडाउन का पालन नहीं करने के लिए कहा. ये कहा कि उन्हें अपने राज्यों में जाने की कोशिश करनी चाहिए.
इसके अलावा आर्थिक मंदी और कोरोना की वजह से गई नौकरियों को भी एक बड़ा मुद्दा बनाया गया. आपको याद होगा, चुनाव के समय बहुत सारे न्यूज चैनल्स और यूट्यूब चैनल ऐसे थे, जो लोगों के मुंह में माइक ठूस कर उनसे ये बुलवाने की कोशिश करते थे कि वो बेरोजगार हैं और उनके बेरोजगार होने का कारण मोदी हैं. ऐसे लोगों के वीडियो विपक्षी नेताओं द्वारा ट्वीट किए जाते थे और एक प्रोपेगेंडा चलाया जाता था.
जिन लोगों ने किसान आन्दोलन के नाम पर देश को भड़काने की कोशिश की और किसान आन्दोलन के दौरान 26 जनवरी को लाल किले पर हुई हिंसा और तलवारबाजी को सही ठहराया. जिन्होंने गलवान में हुए हिंसक संघर्ष के दौरान अपने देश की सेना और सरकार पर भरोसा नहीं किया. जिन लोगों ने भारतीय रेल में नौकरी के लिए छात्रों को भड़का कर उनसे दंगे कराने की कोशिश की. उन्हें ये कहा कि वो सड़कों पर उतर जाए और किसी भी हद तक जाकर अपना हक मांगें. जिन लोगों ने यूक्रेन में फंसे छात्रों को भड़काया, उनके परिवारों को डराया और ये कहा कि ये देश उनके बच्चों के लिए कुछ नहीं करेगा. जिन्होंने यूक्रेन से आए छात्रों के दिमाग में ऐसा जहर भर दिया कि वो अपने मंत्रियों को भी पहचानने से इनकार कर रहे हैं.
आज ऐसे तमाम लोगों को इन नतीजों से कड़ा सबक मिला है. यानी जिन लोगों ने कदम कदम पर भारत को नीचे दिखाने की कोशिश की, इन नतीजों ने उन सारे लोगों के चेहरे एक बहुत बड़ा तमाचा मारा है. ये नतीजे आज ये बताते हैं कि विपक्षी दल, हमारे देश के डिजायनर पत्रकार और लिबरल्स चाहे स्टूडियो में जितनी मर्जी डिबेट करा लें, जितना मर्जी फेक प्रोपेगेंडा चला लें और जितने मर्जी ट्वीट करा लें, देश के लोग असली और नकली मुद्दों पर फर्क में समझते हैं.
इन चुनावों में इस तरह का नकली माहौल बनाया गया कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव आ रहे हैं. इसके अलावा ये कहा कि अब योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक भविष्य अंधकार में जाने वाला है. जो नेता बीजेपी को छोड़ कर जा रहे हैं, उससे बीजेपी की हार तय है. ये भी कहा गया और आर्थिक मंदी और बेरोजगारी को लेकर भी Fake Narrative गढ़ने की कोशिश हुई. लेकिन इन नतीजों ने इस नकली माहौल की हवा निकाल दी और आज ये नतीजे चार बड़ी बातें कहते हैं.
पहली बात- कोविड रिस्पॉन्स को लेकर भारत सरकार की नीतियां बिल्कुल सही थीं.
दूसरी बात- लोगों को अपने देश में बनी वैक्सीन पर भरोसा है.
तीसरी बात- गलवान में भारतीय सेना ने जो किया, भारत के लोगों को उस पर गर्व है
चौथी बात- यूक्रेन से जिन 18 हजार छात्रों को भारत सरकार मुफ्त में देश सुरक्षित लेकर आई है, उसने हर नागरिक को गौरांवित किया है. ये जो बेरोजगारी और आर्थिक मंदी के मुद्दे हैं, ये नकली हैं. क्योंकि ये लोगों को छू नहीं पाए.
इसलिए आज इन लोगों को और हमारे देश के विपक्षी नेताओं और खास कर कांग्रेस पार्टी को ये समझ जाना चाहिए कि वो जो कर रहे हैं, देश वैसा बिल्कुल नहीं चाहता. अगर इन विपक्षी नेताओं ने इन चुनावी नतीजों से आज भी कोई सीख नहीं ली तो इनकी क्या हालत होगी, उसका आप अन्दाजा ही लगा सकते हैं. आज कांग्रेस उत्तर प्रदेश में केवल दो सीटों पर सिमट कर रह गई है और लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी पहले आसमान में थी, फिर गिरते गिरते जमीन में आ गई और अब वो पूरी तरह अंडरग्राउंड हो गई है यानी जमीन के अन्दर चली गई है. अब अगर कांग्रेस इसके और नीचे चली गई ना तो वो ऐसी जगह पहुंच जाएगी, जहां से तेल निकलना शुरू हो जाएगा.
लोकतंत्र में राजनीति करने का मतलब सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करना नहीं होता. बल्कि इसका मतलब होता है लोगों की इच्छाओं और उनके मन को जानना. ये जानना कि लोग चाहते क्या हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे देश के नेता नकारात्मक राजनीति की वजह से इस बात को कभी समझ ही नहीं पाते.