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नई दिल्ली: पारिवारिक विवाद (Family Dispute) के एक मामले में सेशन कोर्ट ने शख्स को बड़ी राहत दी है और निचली अदालत के फैसले को तर्क-विहीन करार देते हुए कहा है कि पति-पत्नी के विवाद में हर बार पति गलत नहीं होता है. कोर्ट ने कहा कि अदालतों को पुरुष का पक्ष भी सुनना चाहिए और इसके बाद ही कोई फैसला देना चाहिए.
सेशन कोर्ट (Sessions Court) ने निचली अदालत द्वारा पत्नी को प्रतिमाह 25 हजार रुपये के गुजाराभत्ता देने के आदेश को रद्द कर दिया. सत्र अदालत ने कहा कि पति के पास सबूत मौजूद हैं, जिससे पता चलता है कि वह पहले ही पत्नी को एकमुश्त 40 लाख रुपये एलीमनी के तौर पर दे चुका है.
अदालत ने कहा कि पति की तरफ से जमा किए गए सबूतों से पता चलता है कि साल 2014 में उसने पत्नी को 40 लाख रुपये एलीमनी के तौर पर दिए थे और इस रकम पर पत्नी को कई सालों से हर माह 34 हजार रुपये का ब्याज मिलता है. इसके बावजूद निचली अदालत ने 25 हजार रुपये का गुजाराभत्ता देने का आदेश दे दिया. इस तरह पत्नी को हर महीने 59 हजार रुपये गुजाराभत्ते के तौर पर मिल रहे थे, जो पति की मासिक आय से कहीं ज्यादा है.
लाइव हिंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश प्रवीण सिंह की अदालत ने इस मामले को दोबारा विचार के लिए निचली अदालत में भेजा है. सत्र अदालत (Sessions Court) ने निचली अदालत के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर संबंधित अदालत पीड़िता को 25 हजार रुपये गुजाराभत्ता राशि ही दिलाना चाहती थी तो उसे यह निर्देश देना चाहिए था कि एलीमनी के तौर पर मिले 40 लाख रुपये के ब्याज में से 25 हजार अपने पास रखकर बाकी 9 हजार रुपये अपने पति को लौटाए, लेकिन कोर्ट ने ऐसा नहीं किया.
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दरअसल, पति-पत्नी अलग रह रहे थे और साल 2014 में दोनों ने आपसी सहमति से कोलकाता की अदालत में तलाक के लिए याचिका दायर की थी. पहली तारीफ पर पति ने 20 लाख रुपये पत्नी के खाते में जमा करा दिए, जबकि दूसरी तारीफ से पहले 20 लाख रुपए और जमा करा दिए. हालांकि 40 लाख रुपये लेने के बावजूद पत्नी अंतिम सुनवाई पर नहीं पहुंची. इसके बाद अदालत ने कई तारीखें दी, लेकिन महिला नहीं पहुंची तो कोर्ट ने तलाक याचिका को खारिज कर दिया था.
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