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भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद का कारण बने 'Basmati' का 'Heer Ranjha' से है खूबसूरत नाता

भारत और पाकिस्तान की दुश्मनी जगजाहिर है. आतंकवाद, कश्मीर समेत कई मुद्दों को लेकर दोनों देश पिछले कई सालों से कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष युद्ध लड़ रहे हैं. 

अमेरिकन कंपनी ने किया था 'बासमती' पर दावा

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अमेरिकन कंपनी ने किया था 'बासमती' पर दावा

भारत-पाकिस्तान से पहले अमेरिकियों ने चुपके से 'बासमती' का GI टैग (GI Tag) हासिल करने की कोशिश की थी. 1990 के दशक में अमेरिका की चावल कंपनी RiceTec ने बासमती चावल (Basmati Rice) पर अपना दावा करते हुए इसके पेटेंट के लिए आवेदन कर दिया था. इसका पता चलते ही भारत (India) के वैज्ञानिक हैरान रह गए. उन्होंने अमेरिकियों की चाल से निपटने के लिए अपने रिकॉर्ड खंगालने शुरू कर दिए. पाकिस्तान (Pakistan) भी इस मुहिम में भारत के साथ जुड़ गया.

 

भारत-पाकिस्तान के विरोध से दावा हुआ खारिज

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भारत-पाकिस्तान के विरोध से दावा हुआ खारिज

कागजातों की जांच में भारत के कृषि वैज्ञानिकों को पता चला कि 'बासमती' शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले 1776 में भारत के पंजाबी कवि वारिस शाह ने अपनी कविता 'हीर-रांझा' (Heer-Ranjha) में किया था. इसी नाम से बाद में भारत में फिल्म भी बनी, जो सुपरहिट हुई. भारत ने ये सारे तथ्य यूरोपीय संघ में रखे. आखिरकार यूरोपीय संघ को इस रिकॉर्ड को मान्यता देनी पड़ी और दोनों देशों के संयुक्त विरोध की वजह से अमेरिकी कंपनी का दावा खारिज हो गया. 

भारत के आवेदन के खिलाफ पाकिस्तान की याचिका

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भारत के आवेदन के खिलाफ पाकिस्तान की याचिका

भारत ने वर्ष 2018 में 'बासमती' चावल (Basmati Rice) का GI टैग हासिल करने के लिए यूरोपीय संघ में आवेदन किया. उस वक्त तक पाकिस्तान (Pakistan) में कोई पेटेंट कानून लागू नहीं था. इसलिए पाकिस्तान चाहकर भी कुछ नहीं कर पाया और उसने इंतजार करने का फैसला किया. करीब डेढ़ साल बाद उसने अपना पेटेंट कानून बनाया और सितंबर 2020 में यूरोपीय संघ में भारत के आवेदन के विरोध में याचिका दी. पाकिस्तान ने कहा कि वारिस शाह पाकिस्तान पंजाब के रहने वाले थे और उन्होंने उसी प्रांत के झांग इलाके में उगने वाले बासमती चावल के ऊपर कविता लिखी थी. इसलिए इसके GI टैग पर उसका अधिकार है. 

GI टैग से देश को मिलेगा निर्यात का एकाधिकार

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GI टैग से देश को मिलेगा निर्यात का एकाधिकार

'बासमती' चावल (Basmati Rice) पर जिस देश को भी GI टैग मिल गया. वह इस चावल के निर्यात के मामले में दुनिया का राजा बन जाएगा. खासकर यूरोप में उसे चावल मार्केट का बड़ा हिस्सा हासिल हो जाएगा. अगर भारत की बात की जाए तो बासमती चावल (Basmati Rice) का GI टैग मिलने से उसका निर्यात 500 मिलियन डॉलन यानी 50 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा. यानी इस वक्त जितनी राशि का चावल एक्सपोर्ट हो रहा है, भारत उससे दोगुनी धनराशि का चावल निर्यात कर पाएगा. यही वह कारण है कि पाकिस्तान किसी भी हालत में इस मौके को छोड़ना नहीं चाहता. 

बासमती के संयुक्त स्वामित्व पर चल रहा विचार?

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बासमती के संयुक्त स्वामित्व पर चल रहा विचार?

कई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आपसी मुकदमेबाजी खत्म करने के लिए दोनों देश 'बासमती' चावल (Basmati Rice) का संयुक्त GI टैग हासिल करने पर विचार कर रहे हैं. हालांकि इन खबरों की अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है. अगर ऐसा होता है तो भारत-पाकिस्तान दोनों को यूरोपीय संघ समेत दुनिया की किसी भी मार्केट में बासमती चावल बेचने के लिए एकाधिकार हासिल हो जाएगा. साथ ही दोनों देशों में चावल की पैदावार में लगे किसानों की आमदनी भी पहले की तुलना में कई गुना बढ़ जाएगी.

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