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LockDown: नहीं रहेगा कोई भूखा, यहां रोज बांटे जा रहे हैं 5,000 खाने के पैकेट

COVID-19 की वजह से हुए लॉकडाउन के चलते सारे काम-धंधे बंद हो गए हैं

बांटे गए 5,000 खाने के पैकेट

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बांटे गए 5,000 खाने के पैकेट

इस दौरान गरीबों और मजदूरों को प्रतिदिन 5,000 खाने के पैकेट बांटने का संकल्प लिया गया है.

मजदूरों को मिली बड़ी राहत

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मजदूरों को मिली बड़ी राहत

बीते गुरुवार को मजदूरों और सड़क के रास्ते पैदल ही अपने घर जा रहे लोगों में बड़ी संख्या में खाने के पैकेट बांटे गए, जिससे मजदूरों को बड़ी राहत मिली.

खाने के पैकेटों में सब्जी और पुलाव

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खाने के पैकेटों में सब्जी और पुलाव

इन खाने के पैकेटों में सब्जी और पुलाव रखे गए हैं. खाने को लोगों में बांटते समय सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जा रहा है.

आगरा प्रशासन ने भी दिया साथ

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आगरा प्रशासन ने भी दिया साथ

आगरा से संचालित सक्षम फाउंडेशन के संस्थापक पूरन डावर का कहना है कि प्रतिदिन 5,000 खाने के पैकेट बांटे जाएंगे. आगरा प्रशासन ने भी कंधे से कंधा मिलाकर हमारा सहयोग किया है.

खुद खाना बांटने पहुंचे एडीजी

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खुद खाना बांटने पहुंचे एडीजी

गौरतलब है कि इन खाने के पैकेटों को बांटने में आगरा प्रशासन, पुलिस और आगरा जोन के एडीजी खुद भी मदद कर रहे हैं. 

14 अप्रैल तक बांटा जाएगा पैकेट

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14 अप्रैल तक बांटा जाएगा पैकेट

इन खाने के पैकेटों को 14 अप्रैल तक बांटा जाएगा.

झुग्गियों में और नेशनल हाइवे पर बांटा जा रहा पैकेट

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झुग्गियों में और नेशनल हाइवे पर बांटा जा रहा पैकेट

इस काम में पुलिस अधिकारी भी झुग्गियों में और नेशनल हाइवे पर पैकेट वितरित करने में मदद कर रहे हैं.

एडीजी ने ट्वीट कर दी जानकारी

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एडीजी ने ट्वीट कर दी जानकारी

आगरा जोन के एडीजी के ऑफिसियल ट्विटर हैंडल से ट्वीट करके जानकारी दी गई कि आगरा के समाजसेवी पूरन डावर की संस्था 'सक्षम डावर, चेरीटेबल ट्रस्ट' की तरफ से जरूरतमंदों को बांटे जा रहे खाने के पैकेटों को वो खुद बांट रहे हैं. 

सोशल मीडिया पर मिल रही है सराहना

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सोशल मीडिया पर मिल रही है सराहना

जरूरतमंदों के लिए इस समय किए जा रहे काम को सोशल मीडिया पर भी काफी सराहा जा रहा है.

क्या कहना है पूरन डावर का

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क्या कहना है पूरन डावर का

पूरन डावर की मानें तो जरूरतमंदों के लिए कुछ करने की इच्छा जताते हुए कई अच्छे लोग उनके पास आए थे. इसलिए पूरन ने उन्हें भोजन प्रदान करने का फैसला किया, विशेष रूप से उन प्रवासी श्रमिकों को जो भूख से और बिना पैसे के घर जा रहे हैं.

 

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