C-60 कमांडो घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए ट्रेन किए जाते हैं. C-60 कमांडो की ट्रेनिंग देश के बेहतरीन संस्थानों जैसे- नेशनल सिक्योरिटी गार्ड कैंपस, मानेसर, पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, हजारीबाग, जंगल वॉरफेयर कॉलेज, कांकेर और अनकंवेशनल ऑपरेशन ट्रेनिंग सेंटर, नागपुर में की जाती है. (फाइल फोटो/साभार-PTI)
जंगल में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन के अलावा C-60 कमांडो का काम नक्सली लोगों का सरेंडर और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना भी है. इसके लिए C-60 कमांडो की यूनिट नक्सलियों के परिवार से मिलती है और उन्हें पूर्व में नक्सली रहे लोगों के लिए सरकार की स्कीमों के बारे में बताती है. (फाइल फोटो/साभार-PTI)
बता दें कि 1980 के दशक में नक्सलियों की एक्टिविटी पहले महाराष्ट्र और फिर आंध्र प्रदेश में तेजी से बढ़ना शुरू हुई. महाराष्ट्र का गढ़चिरौली जिला इससे सबसे ज्यादा प्रभावित था. यहां नक्सलियों की हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी थीं. फिर साल 1990 में पुलिस ऑफिसर केपी रघुवंशी को नक्सलियों के खिलाफ टीम बनाने की जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने कमांडो फोर्स का गठन किया. (फाइल फोटो/साभार-PTI)
इस प्रकार गढ़चिरौली में 60 कमांडो की एक टीम को तैयार किया गया. इन कमांडो को उसी इलाके से चुना गया था, जहां से नक्सली अपने फाइटर भर्ती करते थे. इन्हें ही C-60 कहा गया. उसी इलाके से होने की वजह से ऑपरेशन के दौरान C-60 कमांडो को राज्य की दूसरी यूनिट के मुकाबले एडवांटेज रहता था क्योंकि वे इलाके से पूरी तरह से वाकिफ थे. C-60 कमांडो जंगल में तेजी से मूवमेंट करते थे और लोकल लोगों से भी उनका अच्छा संपर्क था. (फाइल फोटो/साभार-PTI)
नक्सलियों की बढ़ती गतिविधि को देखते हुए साल 1994 में C-60 कमांडो की दूसरी ब्रांच का गठन किया गया. C-60 कमांडो यूनिट का मोटो है 'वीर भोग्या वसुंधरा.' (फाइल फोटो/साभार-PTI)
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