हम सामान्य जीवन में बहुत सारी चीजें देखते-सुनते या इस्तेमाल करते हैं. आमतौर पर हम इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते कि कोई चीज ऐसी है तो क्यों हैं.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पीतल बैक्टीरिया, वायरस और अन्य सूक्ष्मजीवों से बचाव का काम कर सकता है. यही कारण है कि अधिकतर सार्वजनिक स्थानों पर दरवाजों के हैंडल पीतल के बने होते हैं.
धारीदार शर्ट आपको कैदी या अस्पतालों के मरीज पहनते दिख जाएंगे. ऐसी शर्ट नौसेना में भी पहनते हैं. वर्ष 1858 में नेपोलियन ने नौसेना में धारीदार शर्ट पहनने की अनुमति दी थी. ऐसा कहा जाता है कि शर्ट में धारियों की वजह से डेक पर व्यक्ति की पहचान की जा सकती है. अगर कोई जवान समुद्र में गिर जाता है, तब भी उसकी पहचान कर पाना आसान हो जाता है.
लंदन में वर्ष 1920 में पहला टेलिफोन बूथ लगाया गया था. उस समय उसका रंग क्रीमी हुआ करता था. बाद में वर्ष 1924 में बूथों का नया डिजाइन बनाने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई. उस प्रतियोगिता के बाद बूथ का रंग बदलकर लाल कर दिया गया. जिससे लोग दूर से ही इन बूथों को देख सकें. कोहरे के दिनों में भी लाल रंग की वजह से इन बूथों को आसानी से देखा जा सकता है.
आपने फुटबाल मैच में खिलाड़ियों को चेतावनी देने के लिए अक्सर रैफरी को पीले या लाल कार्ड का इस्तेमाल करते देखा होगा. इन कार्डों के शुरू होने की भी दिलचस्प कहानी है. दरअसल वर्ष 1966 में अर्जेंटीना और इंग्लैंड के बीच फुटबॉल मैच खेला जा रहा था. उस मैच में रैफरी की भूमिका जर्मनी के Rudolf Kreitlein निभा रहे थे. रैफरी ने अर्जेंटीना के एक खिलाड़ी को बाहर जाने का आदेश दिया लेकिन जर्मन भाषा न जानने के कारण उसे रैफरी की बात समझ में नहीं आई और वह वहीं खड़ा रहा. इसकी वजह से मैच काफी देर तक रुका रहा. बाद में वर्ल्ड कप रैफरी प्रमुख Ken Aston ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए फुटबॉल मैच में पीले-लाल कार्ड शुरू करने का सुझाव दिया. जो जल्द ही फुटबॉल का एक अंग बन गया.
इस प्रकार के जूते 17वीं शताब्दी में आयरलैंड और स्कॉटलैंड के मवेशी पालने वालों की ओर से इस्तेमाल किए गए. वे दलदली जगहों पर काम करते थे. उनके जूते जल्दी सूख जाएं. इसलिए वे जूतों में छोटे-छोटे छेद कर देते थे. बाद में इस चीज को डिजाइन के तौर पर ले लिया गया. आज भी ऐसे जूतों का काफी चलन है.
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