केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार जनहित में लोगों को कोविड वैक्सीनेशन के लिए प्रोत्साहित जरूर करती है लेकिन वैक्सीन लगवाना कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. किसी शख्स पर वैक्सीन के बुरे प्रभाव के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये हलफनामा कोविड टीके के चलते अपनी बेटियों को खोने वाले पैरेंट्स की ओर से दायर अर्जी के जवाब में दाखिल किया है.
कोर्ट में दायर अर्जी में मांग की गई थी कि दोनों लड़कियों की मौत की जांच के लिए स्वतंत्र कमेटी का गठन हो और एक समयसीमा में जांच रिपोर्ट तलब की जाए. सरकार वैक्सीनेशन के दुष्प्रभाव से जूझ रहे लोगों के इलाज के लिए दिशा-निर्देश बनाए.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि पहले याचिकाकर्ता की 18 वर्षीय बेटी को मई 2021 में कोविशील्ड की पहली खुराक मिली और जून 2021 में उसकी मौत हो गई. दूसरे याचिकाकर्ता की 20 वर्षीय बेटी को कोविशील्ड की पहली खुराक जून 2021 में मिली और जुलाई 2021 में उसकी मौत हो गई.
सरकार का कहना है कि जैसे हर दवाई का साइड इफेक्ट होता है, वैसे ही हर वैक्सीन के दुष्प्रभाव के बारे में हर जानकारी पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है. वैक्सीन में सारी भूमिका वैक्सीन निर्माताओं की है, लिहाजा केंद्र या राज्य सरकार को किसी दुष्प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराना कानून संगत नहीं है.
सरकार ने कहा कि वैक्सीन के बारे में सारी जानकारी वैक्सीन निर्माताओं और सरकार की ओर से पब्लिक डोमेन पर उपलब्ध है. ऐसे में ये सवाल ही नहीं उठता कि वैक्सीन का टीका लगवाने के लिए अपनी सहमति देने वाले को पूरी जानकारी न हो. जहां तक इस केस में मुआवजे का सवाल है, याचिकाकर्ता इसके लिए सिविल कोर्ट जा सकते हैं.
सरकार का कहना है कि इस साल 19 नवंबर तक 219.86 करोड़ लोगों को वैक्सीन का टीका लगा है. इनमें से सिर्फ 92114 केस (.0042%) में साइड इफेक्ट नजर आया है. इनमें से 89, 332 केस में मामूली साइड इफेक्ट है. महज 2782 केस गंभीर साइड इफेक्ट नजर आए हैं.
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