42 हफ्तों की ये ट्रेनिंग चुनौतियों से भरी होती है. लेकिन इन्हें तैयार कर रहे अफसर मानते हैं कि कश्मीर घाटी के युवा इस इलाके की जमीन को पहाड़ों की मुश्किलों को, घाटी के रास्तों को और जम्मू के मैदानों को देश के बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर समझते हैं.
नए कश्मीर के नए चेहरे को गौर से देख लीजिए. यह मासूम चेहरे अब हाथों में पत्थर नहीं फौज का हथियार उठाने को तैयार हैं.
स्कूलों में पढ़ने वाले ये बच्चे कश्मीर घाटी के अलग-अलग शहरों से हैं जो फौज में भर्ती होने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए बनाए गए इस ट्रेनिंग सेंटर में यह देखने आए हैं कि उन्हें फौज में जाने के लिए क्या सीखने की जरूरत है.
छठी क्लास में पढ़ने वाला हासिर अभी बहुत छोटा है. इसे आगे क्या पढ़ना है, यह अभी तय नहीं किया. लेकिन इस मासूम बच्चे ने ये जरूर तय कर लिया है कि ये बड़ा होकर फौज में भर्ती होगा. यह नए कश्मीर का वह जुनून है जो अब अपनी एनर्जी और अपने बुलंद हौसले के साथ अपनी ताकत को देश की रक्षा में लगाना चाहता है.
बता दें कि श्रीनगर में बने इस ट्रेनिंग सेंटर में 12वीं पास करने के बाद आम युवा फौज में भर्ती की ट्रेनिंग लेने आते हैं. यहां 700 से 800 बच्चों के कोर्स के लिए 20 से 25 हजार युवा आवेदन करते हैं. यह आंकड़ा बताने के लिए काफी है कि कश्मीर की नई पहचान कैसी होने जा रही है.
42 हफ्तों की ये ट्रेनिंग चुनौतियों से भरी होती है. लेकिन इन्हें तैयार कर रहे अफसर मानते हैं कि कश्मीर घाटी के युवा इस इलाके की जमीन को पहाड़ों की मुश्किलों को, घाटी के रास्तों को और जम्मू के मैदानों को देश के बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा बेहतर समझते हैं. इसीलिए ज्यादा बेहतर तरीके से संभाल सकते हैं.
ट्रेन्डिंग फोटोज़