डॉ बीआर आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) के अनुयायी हर साल 6 दिसंबर को ‘महापरिनिर्वाण दिवस’ (Mahaparinirvan Diwas) मनाने मुंबई के दादर में चैत्यभूमि (Chaityabhoomi) जाते हैं. इस बार कोरोना वायरस के चलते लोगों को यहां इकट्ठा होने की अनुमति नहीं मिली है.
डॉ आंबेडकर (Dr BR Ambedkar) का जन्म 1891 में एक दलित महार परिवार में हुआ था. वे रामजी मालोजी सकपाल (Ramji Maloji Sakpal) और भीमाबाई रामजी सकपाल (Bhimabai Ramji Sakpal) की 14वीं संतान थे. उन्होंने समाज में जाति आधारित विभाजन के कारण बढ़ते हुए भेदभाव का सामना किया. हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने वाले अपने समुदाय के वे पहले व्यक्ति थे और फिर उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति में बीए की पढ़ाई करने के लिए बॉम्बे विश्वविद्यालय में एडमीशन लिया.
बॉम्बे यूनिवर्सिटी (Bombay Universigty) में डॉ आंबेडकर (Dr Ambedkar) की मुलाकात बड़ौदा के महाराजा सयाजी राव III से हुई. सामाजिक सुधार और छुआछूत की घृणित प्रथा के विरोधी के रूप में महाराजा ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और बाद में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में डॉ आंबेडकर को शिक्षा दिलाई. डॉ आंबेडकर न केवल विदेश में एक अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की पढ़ाई करने वाले पहले भारतीय बने, बल्कि अर्थशास्त्र में एक डबल डॉक्टरेट धारक होने वाले पहले दक्षिण एशियाई भी बने.
उनके जीवन की सबसे उल्लेखनीय घटनाओं में से एक महाराष्ट्र में दलित मुक्ति के लिए महाड में किया गया सत्याग्रह है. यह आंदोलन पीने के पानी में किए जा रहे भेदभाद के खिलाफ शुरू हुआ. डॉ आंबेडकर ने महाड में चावदार टेल से पानी पीने के लिए लगभग 2500 दलितों के एक समूह का नेतृत्व किया. यह भी पढ़ें: BJP महासचिव Kailash Vijayvargiya का दावा- January से लागू होगा Citizenship Amendment Act
डॉ आंबेडकर को दलित अधिकारों के ‘चैंपियन’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने छुआछूत की प्रथा के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी. 1936 में उन्होंने ‘अननिहिलेशन ऑफ कास्ट’ (Annihilation of Caste) प्रकाशित की. उन्होंने अंतरजातीय विवाह की वकालत की. उन्होंने सार्वजनिक रूप से 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म अपना लिया.
डॉ आंबेडकर ने श्रम अधिकारों के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी. उन्होंने ही 14 से 8 घंटे काम करवाने का नियम बनवाया. उन्होंने ही समान कार्य समान वेतन की वकालत की. कर्मचारी बीमा और महंगाई भत्ते जैसे बड़े सुधारों की शुरुआत कराई. डॉ आंबेडकर ने महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई के दौरान कानून मंत्री के पद से इस्तीफा तक दे दिया था.
डॉ आंबेडकर ने 6 दिसंबर, 1956 को अंतिम सांस ली. उनकी पुण्यतिथि को हर साल महापरिनिर्वाण दिवस (Mahaparinirvan Diwas) के रूप में मानया जाता है. उनकी पुस्तकों, पोस्टर, कैलेंडर, टी-शर्ट, और अन्य सामानों की बिक्री करने वाले सैकड़ों स्टॉलों के साथ मुंबई में चैत्यभूमि में लाखों अनुयायी जुड़ते हैं. इस बार कोरोना के चलते डॉ अंबेडकर के अनुयायियों को यहां जुटने की इजाजत नहीं दी गई.
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