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Netaji Jayanti special: सुभाष चंद्र बोस और गांधी के बीच कैसे रिश्ते रहे? जानें नेताजी की जिंदगी से जुड़ी 10 बातें

30 दिसंबर, 1943 को पहली बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर के रॉस द्वीप में आजाद हिंद फौज का झंडा फहराया था. अब इस स्थान को सुभाष दीप कहा जाता है. पिछले साल 30 दिसंबर, 2018 को 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां ध्वजारोहण किया था.

सुभाष चंद्र बोस और गांधी के बीच कैसे रिश्ते रहे? जानें नेताजी की जिंदगी से जुड़ी 10 बातें

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सुभाष चंद्र बोस और गांधी के बीच कैसे रिश्ते रहे? जानें नेताजी की जिंदगी से जुड़ी 10 बातें

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था. जानकीनाथ कटक के मशहूर वकील थे.

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सुभाष चंद्र बोस और गांधी के बीच कैसे रिश्ते रहे? जानें नेताजी की जिंदगी से जुड़ी 10 बातें

कटक में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने रेवेनशा कॉलिजियेट स्कूल में दाखिला लिया. जिसके बाद उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की. 1919 में बीए की परीक्षा उन्होंने प्रथम श्रेणी से पास की, यूनिवर्सिटी में उन्हें दूसरा स्थान मिला था.

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उनके पिता की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें. उन्होंने अपने पिता की यह इच्छा पूरी की. 1920 की आईसीएस परीक्षा में उन्होंने चौथा स्थान पाया मगर सुभाष का मन अंग्रेजों के अधीन काम करने का नहीं था. 22 अप्रैल 1921 को उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया.

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1934 ई. में सुभाष अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे. उस समय उन्हें अपनी पुस्तक टाइप कराने के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी. उन्हें एमिली शेंकल नाम की एक टाइपिस्ट महिला मिली. 1942 में सुभाष ने इस टाइपिस्ट से शादी कर ली.

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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था. उनका नारा 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा' भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है. 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी. 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में नेता जी ने अपनी सेना को सम्बोधित करते हुए 'दिल्ली चलो' का नारा दिया.

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सुभाष चंद्र बोस की पहली मुलाकात गांधी जी से 20 जुलाई 1921 को हुई थी. गांधी जी की सलाह पर वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने लगे. 18 अगस्त 1945 को वे हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे. इस सफर के दौरान ताइहोकू हवाई अड्डे पर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उनकी मौत हो गई. उनकी मौत भारत के इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य बनी हुई है. उनकी रहस्यमयी मौत पर समय-समय पर कई तरह की अटकलें सामने आती रहती हैं.

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