DNA Analysis: हमारी संस्कृति ये सिखाती है कि बड़ों की इज्जत करो. बड़े बुजुर्गों का सम्मान करो. बुजुर्ग मां-बाप की सेवा करो. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लो. यही हमारी सनातनी परंपरा रही है. लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज बहुत सारी संताने अपने बुजुर्ग माता पिता को बोझ समझने लगे हैं.
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DNA Analysis: हमारी संस्कृति ये सिखाती है कि बड़ों की इज्जत करो. बड़े बुजुर्गों का सम्मान करो. बुजुर्ग मां-बाप की सेवा करो. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लो. यही हमारी सनातनी परंपरा रही है. लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज बहुत सारी संताने अपने बुजुर्ग माता पिता को बोझ समझने लगे हैं. जो बच्चे कभी मां-बाप की आंखों का तारा हुआ करते थे. वो मां-बाप अब उन्हीं बच्चों की आंखों में चुभने लगे हैं. अब Privacy मां-बाप से ज्यादा Important हो चुकी है.
वो खुशकिस्मत होते हैं..
हर माता-पिता की ये इच्छा होती है कि बुढ़ापे में उनके बच्चे उनका ख्याल रखेंगे. जिनकी ये इच्छा पूरी होती है, वो खुशकिस्मत होते हैं. क्योंकि हमारे देश में लाखों बदनसीब बुजुर्ग हैं. जिनके बच्चे उन्हें बुढ़ापे में वृद्धाश्रम में छोड़कर भूल जाते हैं. DNA में हम अपने सामाजिक कर्तव्य को निभाते हैं और समाज को आईना दिखाने वाली खबरें और विश्लेषण दिखाते हैं. अपने इसी Mission के तहत हम आपको एक वृद्धाश्रम के बारे में बताएंगे. जहां के बदनसीब बुजुर्गों ने अपने बच्चों की खातिर अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी, और बदले में उन्हें अपने बच्चों से कुछ मिला तो सिर्फ परायेपन का अहसास. जिसकी टीस उनकी आंखों से आंसू बनकर निकलती है.
अपनापन नहीं मिल पा रहा
उत्तर प्रदेश के ओरैया में स्थित इस वृद्धाश्रम में जीवन गुजार रहे बुजुर्गों को खाना तो मिल जा रहा है लेकिन वो अपनापन नहीं मिल पा रहा होगा. ये भोजन ज़रूर कर रहे हैं लेकिन इनके मन में ये इच्छा होगी कि काश ये भी अपने बच्चों के साथ होते. लेकिन ये मजबूर हैं. यहां रह रहीं बूढ़ी मां राजाबेटी ने बताया कि मेरे पति बीमार थे, क़र्ज़ लिया और फिर मकान बेचकर मुझे क़र्ज़ चुकाना पड़ा. बच्चे ने क़र्ज़ चुकाने से मना कर दिया. मुझसे सारे पैसे बच्चों ने ले लिए. बच्चों ने मुझे कोई रोटी नहीं पूछी 3-4 दिन.
मां ने सुनाया दर्द
उन्होंने कहा कि उनके खूब पकवान होते रहे लेकिन मुझसे नहीं पूछा. बाद में मेरे बेटों ने बोला कि इसे निकालो. सही बता रहे हैं भईय्या…जो हम पर बीती है वही बता रहे हैं (फूट फूटकर रोते हुए). झूठ नहीं बोलेंगे. गुरू हमारे मारेंगे मैंने सोचा कि अब कहां जाऊं. किस कुएं में गिरेंगे. हमने फिर आंख में पट्टी बांध कर निकल ली. मेरे बेटों ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया. किसी ने मुझे नहीं पूछा कि अम्मा मेरी कहां गई हैं. कहां भटक रही हैं, कोई अन्न, कोई पानी नहीं. 2017 में मैं वृद्धाश्रम आई. मुझे सात साल हो गए घर से निकाले हुए.
मुन्नीदेवी की भी यही कहानी
यहां रह रहीं मुन्नीदेवी ने कहा कि हम अभी आए हैं वृद्धाश्रम में. जब हमें निकाल दिया तो हम चले आए. हम बीमार हो गए थे. हमारी लड़की देखती थी. लड़कों ने हमारी कुछ नहीं सुनी. हमारे 4 लड़के हैं. हमारे लिए कोई नहीं है. किसी ने साथ नहीं रखा. लड़कियों ने रखा था बस. बहू कहती है कि सिर्फ हम ही ख़्याल क्यों रखें. बहू ने कहा कि ना रहो, जाओ यहां से. अब हाथ पैर नहीं चल रहे हैं. आंख से दिखता नहीं है.. कान से सुनाई नहीं देता है. अटैक पड़ा तो बेटी ने पैसा लगाया. बेटा और बहू कहते हैं कि चाहे तुम आग लगा लो, बड़ी बहू कहती है कि फांसी लगा लो, चाहे तुम मुकदमा लगवा लो. बहू ने कहा कि स्टेशन पर मांगो जाकर… अब हमारे हाथ पांव नहीं चल रहे हैं. हमको मांग कर खाना पड़ा. झूठ नहीं कहते. हम अपने पति की गद्दी छोड़कर नहीं जाना चाहते थे लेकिन हमारी मजबूरी थी और हमें छोड़कर यहां वृद्धाश्रम में आना पड़ा.
संयुक्त परिवार लगातार टूटते जा रहे
संयुक्त परिवार लगातार टूटते जा रहे हैं. बच्चे जैसे ही तरक़्क़ी कर रहे हैं वो अपने माता पिता को छोड़ देना चाहते हैं. कई ऐसे बच्चे हैं जो लगातार अपने माता पिता से दूर हो जा रहे हैं. उन्हें वृद्धाश्रम में भेज दे रहे हैं, इसके पीछे उनका विदेशी स्वार्थ सबसे ज़्यादा दिखाई दे रहे हैं. क्योंकि कुछ लोग प्रॉपर्टी हड़पना चाहते हैं, कुछ लोग पैसा हड़पना चाहते हैं और कुछ लोग शादी के बाद अकेले रहना चाहते हैं. अपने माता पिता के साथ नहीं रहना चाहते हैं. इन माताओं से बातचीत में अभी तक यही निकलकर सामने आ रहा है. लेकिन कोई कैसे इतना आत्मवादी हो सकता है कि जिस माता पिता ने उंगली पकड़कर उस बच्चे को सहारा दिया, उसका भविष्य संवारा, वही बच्चा कैसे अपने माता पिता को इस हालत में छोड़ दे कि एक बेड पर उन्हें सोने को मजबूर होना पड़ा, यही इतना घर हो, इसी में इनका रहना है, इसी में इनको गुज़ारा करना है. इनके बच्चे इनके पास आते तक नहीं है. कोई आएगा तो दूर के मंदिर पर मिल लेगा लेकिन साथ जाने के लिए नहीं कहेगा. यहां अधिकतर आंखों में आंसू हैं, ये बहुत ही भावुक क्षण है.
..भगा देता है
मां शांति देवी ने बताया कि वृद्धाश्रम में हमारा नाम लिखे तीन साल हो गए. एक बच्चा है, एक ख़त्म हो गया है. कई बार साथ रखता है, फिर भगा देता है. बेटा भगा देता है और कहता है कि वहीं आश्रम में रहो. दारू पी लेता है बेटा, बेटा लड़ाई करता है, गाली देता है. मारपीट कर देता है. घर में बहू है. बस एक बार यहां मिलने आया था. बिटिया और दामाद आते हैं.
घर पर लड़का और बहू हैं..
मां शशि ने बताया कि औरैया की रहनी वाली हूं. करीब साल भर से यहां वृद्धाश्रम में रहती हूं. घर पर लड़का और बहू हैं, नाती हैं. उन्होंने ने नहीं भगाया लेकिन हम उनका रोज का क्लेश नहीं देख पाए. वो आपस में ही लड़ते झगड़ते रहते थे. हमने कहा कि कहीं ज़्यादा लड़ाई में कहीं कोई फांसी पर लटक जाए, मर जाए तो नाम तो सास का ही लगेगा कि सास ने ऐसा किया. अभी तो नहीं, एक बार आए थे. जब मिले तो ये नहीं कहा कि घर चलो. वो बस ये देखने आए थे कि सच में आश्रम में हैं कि नहीं. उन्होंने हमसे ये नहीं कहा कि घर पर रहो चलकर.
ये बेहद ख़राब है..
हमारा समाज श्रवण कुमार के आदर्शों को मानते आया हैं. आज भी उनके आदर्शों को पढ़ते हुए आगे बढ़े हैं. श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को अपने कंधों पर बिठाकर तीर्थयात्रा कराई थी. तब से और अब के समय में काफ़ी परिवर्तन है. आज अगर हम देखें तो जिस हाल में ये माता पिता यहां पर हैं. ये बेहद ख़राब है. इनकी आंखों में आंसू हैं. ये अपने बच्चों से यही अपील कर रहे हैं कि वो इनके पास वापस आ जाएं. ग़लतियां हो जाती हैं. उसे सुधार करने के लिए आगे आना चाहिए. हम भी यही कहेंगे कि जो बच्चे इस वक्त Zee News देख रहे हैं, जिनके माता पिता वृद्धाश्रम में हों, वो अपने माता-पिता के पास जाएं और उन्हें गले लगाएं. उन्हें अपने घर ले आएं. ताकि वो अपने बच्चों के साथ अपने अंतिम समय जरूर बिता सकें.
-इस वक्त देश में कुल 728 वृद्धाश्रम हैं
-इन वृद्धाश्रमों में एक करोड़ 80 लाख बुजुर्ग रहते हैं
चौंकाने वाला आंकड़ा
ये आंकड़ा अपने आप में ये साबित करने के लिए काफी है कि हमारे समाज में अब अपने बुजुर्ग माता-पिता को लेकर बच्चों की सोच कितनी तेजी से बदल रही है. जिसकी वजह से बुजुर्ग अब ना घर के रह गये हैं और ना घाट के. अपने बच्चों के सताये बुजुर्गों के पास दो ही विकल्प होते हैं. या तो वो अपने बच्चों के साथ रहकर पराये जैसा अनुभव करें या फिर वृद्धाश्रम में रहें. Help Age नाम की एक संस्था ने 60 से 90 साल की उम्र की बुजुर्ग महिलाओं पर एक सर्वे किया..इसमें पता चला कि..
-16 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाएं अपने ही बच्चों से प्रताड़ित हुईं.
-इसमें 50 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाओं के साथ मारपीट हुई.
-46 प्रतिशत बुजुर्गों का घर में ही अनादर होता है.
-40 प्रतिशत बुजुर्ग महिलाओं ने माना कि उनके बेटे और बहू उन्हें भावनात्मक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं.
Family का मतलब पति पत्नी और बच्चा
दरअसल हमारे समाज में अब लड़कों और लड़कियों के लिए Family का मतलब है.. पति पत्नी और बच्चा. परिवार की परिभाषा में उनके माता-पिता शामिल ही नहीं होते. आज के युवाओं को अपनी संतान में तो अपना भविष्य दिखता है इसलिए वो अपना टाइम और पैसा उनपर खर्च करना चाहते हैं लेकिन अपने सगे मां-बाप की बीमारी पर पैसा खर्च करना उन्हें फिजूलखर्ची लगती है. ऐसी सोच रखने वाले लोगों से हम सिर्फ एक ही बात कहना चाहते हैं कि आज जैसा बर्ताव वो अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं. उसे उनके बच्चे Note कर रहे हैं और एक मशहूर कहावत भी है- जैसा करोगे, वैसा भरोगे.
DNA : अब मां-बाप से ज्यादा जरूरी है Privacy वृद्धाश्रमों में दम तोड़ते 'पारिवारिक मूल्य' की ग्राउंड रिपोर्ट#DNA #DNAWithSourabh@saurabhraajjain @vishalpandeyk pic.twitter.com/wX5wqiZMkD
— Zee News (@ZeeNews) January 3, 2024