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Qutub Minar Controversy: कुतुबमीनार मामले में दिल्ली के साकेत कोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है. कोर्ट में हिंदू पक्ष के वकील हरिशंकर जैन ने दलील दी है कि वहां 1600 साल पुराना पिलर है. हिंदू पक्ष मे कोर्ट से कुतुब मीनार परिसर में पूजा के अधिकार की मांग की है. हिंदू पक्ष ने कहा है कि कुतुब मीनार में मंदिर ट्रस्ट बनाने की मांग की है. इस मामले में 9 जून को कोर्ट फैसला सुनाएगा.
साकेत कोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को एक हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है. कोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है.
सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष के वकील हरीशंकर जैन ने कोर्ट में दलील दी कि यहां प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू नहीं होता. उन्होंने आगे कहा कि नेशनल मॉन्युमेंट एक्ट कहता है कि किसी संरक्षित स्मारक के धार्मिक स्वरुप को बदला नहीं जा सकता. हमारा ये कहना है कि यहा देवता हमेशा विद्यमान रहे हैं, उनकी मौजूदगी हमेशा से है. उनकी पूजा अर्चना का अधिकार भी कायम है.
हरिशंकर जैन ने कहा कि 800 सालों से भी ज्यादा वक्त से यहां नमाज नहीं पढ़ी गई (यहां सन्दर्भ कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद से है). बता दें कि इस मामले में सिविल कोर्ट ने प्लेसस ऑफ वर्शिप एक्ट के आधार पर याचिका खारिज कर दी थी. ASI के वकील सुभाष गुप्ता ने कहा कि याचिका स्वीकार करने लायक नहीं है. निचली अदालत का आदेश सही था.
ASI के वकील ने कहा कि किसी स्मारक के अधिग्रहण के वक्त जो धार्मिक स्वरूप है, उसे बदला नहीं जा सकता. यहां भी हमारा रुख यही है. किसी स्मारक का स्वरूप वही रहेगा जो अधिग्रहण के वक्त था. ASI के वकीन ने दलील दी कि इसी लिहाज से कुछ स्मारक में पूजा की इजाजत है कुछ में नहीं. ये अधिग्रहण के वक्त की स्थिति से तय होता है. अगर किसी को एतराज है तो 60 दिन के अंदर ही विरोध दर्ज करा सकता है, इसके बाद नहीं.
ASI के वकील ने कहा कि धार्मिक रीतिरिवाज हो या नहीं, इसी आधार पर living या non living monument तय होते हैं. इसके बाद हिंदू पक्ष की तरफ के आर्टिकल 25 का हवाला दिया गया. जिस पर ASI के वकील ने कहा कि जहां तक आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की बात है. ये कोई absolute right नहीं है. यानी असीमित अधिकार नहीं है. इसी लिहाज से सिविल कोर्ट का यहां पूजा का अधिकार न दिए जाने का आदेश सही है.
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