Raisina Hills New Delhi: NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करके रायसीना हिल्स तक सफर कर लिया है. लेकिन कभी आपने सोचा है कि सभी राष्ट्रपति रायसीना हिल्स ही क्यों जाते हैं. आखिर राष्ट्रपति भवन और उस इलाके की इमारतों को रायसीना हिल्स क्यों कहते हैं?
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Rashtrapati Bhavan Raisina Hills: 25 जुलाई को देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी (Droupadi Murmu) मुर्मू शपथ लेंगी. द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति चुनी गई हैं. उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराया. राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद द्रौपदी मुर्मू रायसीना हिल्स (RaisinaHills) में बने राष्ट्रपति भवन में रहेंगी. भारत के सभी राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान यहीं रहते हैं. रायसीना हिल्स राजधानी दिल्ली का एक ऐसा इलाका है, जहां देश की सबसे जरूरी इमारतें हैं. इसमें राष्ट्रपति भवन (भारत के राष्ट्रपति का निवास) और प्रधानमंत्री कार्यालय समेत अन्य मंत्रालय शामिल हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं इस एरिया को ‘रायसीना हिल्स' क्यों कहते हैं. आइए इसके कुछ रोचक फैक्ट्स आपको बताते हैं.
देश का सत्ता का केंद्र है रायसीना हिल्स
रायसीना हिल्स को देश का सत्ता का केंद्र कहा जा सकता है. ये इमारतें अंग्रेजों के राज से ही देश की सत्ता का केंद्र रही हैं. आपको पता होगा कि ब्रिटिश हुकूमत के वक्त राजधानी कोलकाता हुआ करता था, लेकिन साल 1911 में अंग्रेजों ने राजधानी को दिल्ली में शिफ्ट किया. इससे पहले अंग्रेजों ने एक ऐसी इमारत बनाने के बारे में सोचा जो सदियों तक याद रखी जाए. इसके लिए उन्होंने रायसीना की पहाड़ियों को चुना. इसलिए इसका नाम रायसीना हिल्स पड़ गया. अंग्रेजों ने इस इमारत के निर्माण के लिए आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस (Edwin Lutyens) से नक्शा तैयार कराया. इसके बाद इमारत बनने का काम शुरू किया गया.
19 साल में बन पाई इमारत
नक्शा तैयार होने के बाद इस इमारत को बनाने के लिए अंग्रेजी सरकार ने 4 साल का समय तय किया. लेकिन इमारत पूरी होने में 19 साल लग गए. रायसीना हिल्स का काम साल 1912 में शुरू हुआ था और ये 19 साल बाद 23 जनवरी 1931 में पूरा हो पाया. इतिहासकार बताते हैं कि इमारत के निर्माण शुरू होने के 2 साल बाद यानी 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया. इस कारण इमारत बनने का काम 19 साल में जाकर पूरा हो पाया.
70 करोड़ ईटें और 30 लाख पत्थरों का किया इस्तेमाल
सरकारी डेटा के मुताबिक, 340 कमरों वाली इस इमारत को बनाने में 70 करोड़ ईटों और 30 लाख पत्थरों का इस्तेमाल किया गया. वहीं, इस बिल्डिंग को बनाने में 29 हजार कारीगरों लगाए गए. राष्ट्रपति भवन में प्राचीन भारतीय शैली के साथ, मुगल और पश्चिमी शैली की झलक भी देखने को मिलती है. जब 1931 में ये इमारत बनकर तैयार हुई तो यहां 'वॉयसरॉय ऑफ इंडिया' लॉर्ड इरविन यहां रहने आए. 1950 तक इसे 'वॉयसरॉय हाउस' कहा जाता था. लेकिन बाद में इसका नाम लुटियंस रख दिया गया.
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