नागौर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर अजमेर रोड पर स्थित ईनाणा गांव. जहां हर त्यौहार पर लगती है चौपाल और हर चौपाल में होती है सामाजिक सरोकार की पहल.
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Nagaur: भारत में हर एक त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है और जब दिवाली की बात आती है तो कुछ अलग ही माहौल बन जाता है क्योंकि दिवाली का त्योहार भारत देश में सबसे ज्यादा धूम-धाम के साथ मनाया जाता है.
दिवाली के त्योहार को खुशियों का त्योहार के नाम से बुलाया जाता है. तो इस त्योहार को धूम-धाम से मनाना लाज़मी है लेकिन पिछले कुछ सालों से लग रहा है कि दिवाली का त्योहार सिर्फ पटाखों का त्योहार बनकर रह गया है और पटाखे बिना दिवाली मनाने की कोई नहीं सोचता क्योंकि अब दिवाली का महत्व और उसकी परिभाषा ही बदल गई है.
दिवाली का असली मतलब जैसे लोग भूल ही गए हैं. लगता है पटाखे बिना दिवाली लोग मना ही नहीं सकते हैं. साथ ही पटाखों से होने वाले नुकसान को भी भूल गए हैं. दिवाली शांति और खुशियों के साथ मनाई जाती है. घरों को सजाने से लेकर स्वादिष्ट खाना बनाने में दिवाली का असली मजा है.
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लोगों को लगने लगा है कि दिवाली का त्योहार सिर्फ पटाखों के साथ ही मनाया जाता है लेकिन लोगों को यह समझना होगा कि पटाखे बिना दिवाली बेहतर तरीके से दिवाली मनाई जा सकती है. पटाखों से होने वाले नुकसान कई हैं. चिंता करने वाली बात यह है कि लोग दशहरा के त्योहार से ही पटाखों से प्रदूषण करना शुरु कर देते हैं और दिवाली में पटाखे का नुकसान बहुत ज्यादा होता है. पटाखों से नुकसान न केवल इंसानों को दिक्कत होती है. साथ ही पटाखों से पर्यावरण, किसानों की फसलों को नुकसान होता है.
इस इस खबर में हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे, जहां पटाखों के बिना दिवाली मनाई जाती है. इस गांव में बिना पटाखों के दिवाली दिवाली का त्योहार परिवारों और रिश्तेदारों के साथ खुशियां बांटकर मनाई जाती है लेकिन यह रिवाज़ शायद अब सिर्फ किताबों में रह गया है क्योंकि आज की पीढ़ी ने शोर में दिवाली मनाने का आनंद ढूंढ लिया है. युवा पीढ़ी को समझना होगा कि पटाखे बिना दिवाली मनाई जा सकती है.
क्यों खास है यह दिवाली
नागौर जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर अजमेर रोड पर स्थित ईनाणा गांव. जहां हर त्यौहार लगती है चौपाल और हर चौपाल में होती है सामाजिक सरोकार की पहल. यह गांव एकता और भाईचारे के राजस्थान में एक अलग ही पहचान बना चुका है. 2 नवंबर 2016 को दीपावली के दूसरे दिन रामा श्यामा के होने के बाद शुरू हुई गांव की चौपाल और चौपाल में ऐसा निर्णय लिया गया, जो राज्य की सरकारें भी करना चाहती है लेकिन हो नहीं पता. इस चौपाल में गांव के मौजिज लोगो, गांव के सरपंच और युवाओं ने एक बार फिर नई पहल करते हुए गांव में आतिशबाजी नहीं करने का निर्णय लिया. जो आज तक ना दीपावली पर आतिशबाजी होती है और ना ही शादी समारोह में किसी प्रकार की कोई आतिशबाजी होती है. इस गांव में दीपावली एक दूसरे को मिठाई बांटकर, मिट्टी के दीपक जलाकर, एक-दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं देकर मनाई जाती है.
क्या कहना है ग्रामीणों का
ग्रामीणों का कहना है कि आतिशबाजी के कारण सबसे बड़ा नुक़सान पर्यावरण को होता है. साथ ही ग्रामीण अंचल में इस समय किसान खेतों से फसल कटाई करके घर लाते हैं और आतिशबाजी से कई दफा आगजनी हो जाती थी. छोटे बच्चे पटाखों से चोटिल हो जाते थे. इसी को देखते गांव के मौजिज लोगों ने गांव में आतिशबाजी पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया. वहीं. इस गांव में सभी जातियों के लोगों रहते हैं और सभी गांव की चौपाल पर होने वाले फैंसले को बखूबी निभाते हैं. वहीं, ग्रामीण इस एकता का प्रतीक ईनाणा गांव के कुल देवता खेडाधणी बाबा को मानते हैं, जिन्होंने समाजिक सरोकार के लिए गांव में सात जाति वर्गों का एक गोत्र ईनाणियां बना कर गांव का नाम ईनाणा रखा.
Reporter- DAMODAR INANIYAN