ब्रम्हाणी माता मंदिर की अनोखी परंपरा, जिसे जान हो जाएंगे हैरान
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ब्रम्हाणी माता मंदिर की अनोखी परंपरा, जिसे जान हो जाएंगे हैरान

ब्रम्हाणी माता मंदिर में कई ओर भी ऐसी परम्पराएं हैं जो बाकी स्थानों से बिल्कुल अलग है. अमावस्या को होने वाली आरती के समय यहां जो लोग उपस्थित रहते हैं.

ब्रम्हाणी माता मंदिर.

Nagaur: दुनियाभर के देवी मंदिरों में नवरात्रि की घटस्थापना प्रथमा को होती है लेकिन नागौर (Nagaur) जिले का एक प्राचीन मंदिर दुनिया का अकेला ऐसा मंदिर हैं जहां नवरात्रि की घटस्थापना अमावस्या को होती है. सनातन धर्म में वर्ष में दो बार नवरात्रि आते हैं. चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि दोनों ही नवरात्रि पर देशभर में देवी की विशेष पूजा होती है.  

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शारदीय नवरात्रि (Navratri 2021) का अपना अलग ही महत्व है. इन नवरात्रि में देवी मंदिरों के अलावा भी दुर्गा पूजा पंडालों की स्थापना होती है. प्रतिपदा के दिन घटस्थापना होती है और लोग 9 दिन तक लोग शक्ति की आराधना करते हैं लेकिन मेड़ता रोड़ का ब्रम्हाणी माता मंदिर (Brahmani Mata Temple) देश का अकेला ऐसा मंदिर है, जहां देश और दुनिया से एक दिन पहले ही घट स्थापना हो जा है और उसके ठीक आठवें दिन इसकी पूर्णाहूति भी हो जाती है. 

जानकर बताते हैं कि पहली बार जब कभी यहां घट स्थापना हुई. उस समय अमावस्या के दिन शतभिषा नक्षत्र होने की वजह से उस वक्त जो परम्परा बनाई गई वह आज भी जारी है. हालांकि किवंदतियां यह भी है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने यहां एकम के दिन हमला किया था, जिसमें 80 पंडित लड़ते-लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गए. उसके बाद से ही प्रथमा को शोक दिवस के कारण घटस्थापना अमावस्या को की जाती है.  स्थानीय लोगों के अनुसार, यहां रहने वाले पुजारी किसानी करते थे और अमावस्या को किसान खेत में काम नहीं करते तो उसी को ध्यान में रखते हुए अमावस्या को घट स्थापना की परंपरा यहां शुरू हो गई. 

ब्रम्हाणी माता मंदिर में कई ओर भी ऐसी परम्पराएं हैं जो बाकी स्थानों से बिल्कुल अलग है. अमावस्या को होने वाली आरती के समय यहां जो लोग उपस्थित रहते हैं. उनमें से कुछ लोगों को माता का भाव आता है और वे लोग गृभगृह में प्रवेश करते हैं और उसके बाद सप्तमी तक बिना कुछ खाए-पिए केवल चरणामृत के सहारे निराहार रहकर गर्भगृह में ही साधना करते हैं.

उसके बाद पंचमी की आरती के दिन गर्भगृह में बैठे श्रद्धालुओं में से किसी एक में माता का भाव आता है और पुजारी परिवार में से किसी एक व्यक्ति का नाम पुकारा जाता है. सप्तमी के दिन उसी व्यक्ति के परिवार का भोग माताजी को लगता है और साधना में बैठे बाकी के लोग बाद में उसी पुजारी के घर का भोजन सात दिन बाद ग्रहण करते हैं. दुर्गा पूजा के इन 8 दिनों में महिलाओं को मंदिर की परिक्रमा वर्जित होती है.

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मंदिर की स्थापना काल के बारे में कहीं कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन शिल्पकला और डेटिंग के आधार पर मंदिर की 1500 से 2000 साल पुराना माना जा रहा है. शिल्पकला के लिहाज से यहां एक तोरणद्वार बना हुआ है, जो शिल्पकारी का बेजोड़ नमूना है. ऐसी भी मान्यता है कि इस तोरणद्वार के ऊपर 9 चरण में 7 द्वार थे, जिनके ऊपर पुराने समय मे नवरात्रि में बड़ी ज्योति जलाई जाती थी, जिसे देखकर ही तात्कालिक जोधपुर महाराजा ज्योति के दर्शन करके व्रत का पालन करते थे.

मेड़ता रोड़ का यह ब्रम्हाणी माता मंदिर (Brahmani Mata Temple) अपनी परम्पराओं और चमत्कारों के कारण देशभर में अपनी अलग पहचान रखता है. यही वजह है कि यहां नवरात्रि में हजारों श्रद्धालु आते हैं लेकिन कोविड (Covid) के चलते मंदिर प्रबंधन द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग और नो मास्क नो एंट्री के आधार पर ही प्रवेश की व्यवस्था की गई है. 

Reporter- Hanuman Tanwar 

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