पति की अर्थी देखकर पत्नी ने भी तोड़ा दम, एक साथ जली चिताएं तो रो पड़े गांववाले
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पति की अर्थी देखकर पत्नी ने भी तोड़ा दम, एक साथ जली चिताएं तो रो पड़े गांववाले

Unique love story: दोनों के एक-साथ मरने की बात को गांववाले सौभाग्यशाली मान रहे हैं. एक साथ दोनों की अर्थियों की विदाई की चर्चा पूरे गांव में हो रही है. लोगों का कहना है कि लाखों में कुछ ही जोड़े होते हैं, जो इतना लंबा दाम्पत्य जीवन जीने के बाद इस तरह से एक-साथ जाते हैं.

बैंड बाजे के साथ अंतिम यात्रा निकाली गई.

Nagaur: कहता है सिंदूर तेरा, तेरी बिंदिया कहती है... लाखों में कोई एक सुहागन, सदा सुहागन रहती है.... साल 1986 में आई फिल्म सदा सुहागन की ये वो लाइनें हैं, जो नागौर में लोगों ने खुद अपनी आंखों से सच होती देखी तो उनके भी आंसू निकल आए.

कहते हैं कि जब किसी की शादी होती है तो वो एक नहीं बल्कि सात जन्मों के लिए एक हो जाते हैं लेकिन फेरों के समय साथ जीने-मरने की कस्में खाने वाला जोड़ा अगर वाकई एक-साथ दुनिया को छोड़े तो प्यार की अलग ही मिसाल कायम हो जाती है. प्यार की अनोखी दास्तां के गवाह नागौर के लोग बने हैं. इसे संयोग माना जाए या सच्चा प्यार... पर जिसने भी यह दृश्य देखा, उसकी आंखें छलक आईं.

दरअसल, राजस्थान में नागौर जिले के रूण गांव में एक जोड़े ने 58 साल लंबा दाम्पत्य जीवन जीने के बाद एक-साथ ही अपनी आखिरी सांसें ली. एकसाथ ही दुनिया को अलविदा कहा. पहले से ही पूरे गांव में इस प्यार के जोड़े की मिसाल दी जाती थी. दोनों ने एक साथ निधन के बाद एक ही चिता पर दोनों का अंतिम संस्कार किया गया. दोनों बेटियों ने ही अंतिम संस्कार की सभी रस्में निभाईं. 

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बता दें कि रूण गांव निवासी वाले 78 साल के राणाराम सेन को सांस से जुड़ी बीमारी थी. इलाज के लिए उन्हें पहले नागौर और फिर जोधपुर भेजा गया. जोधपुर में रविवार सुबह उनकी मौत हो गई. बाद में जब उनका शव घर लाया गया तो यह सब उनकी पत्नी भंवरी देवी बर्दाश्त नहीं कर पाई. पति के शव को देखते ही उन्होंने दम तोड़ दिया और उन्होंने भी दुनिया को अलविदा कह दिया. 

गांव वालों में हो रही चर्चा
दोनों के एक-साथ मरने की बात को गांववाले सौभाग्यशाली मान रहे हैं. एक साथ दोनों की अर्थियों की विदाई की चर्चा पूरे गांव में हो रही है. लोगों का कहना है कि लाखों में कुछ ही जोड़े होते हैं, जो इतना लंबा दाम्पत्य जीवन जीने के बाद इस तरह से एक-साथ जाते हैं. राणाराम सेन शनिदेव के भक्त थे और मंदिर में पूजा पाठ करते थे. दोनों ही पति-पत्नी दोनों में अथाह प्रेम था और 58 साल से एक दूसरे का साथ दे रहे थे. 

दोनों के निधन पर उनकी शादीशुदा बेटियों ने ही माता-पिता के अर्थी को कंधा दिया. बैंड बाजे के साथ अंतिम यात्रा निकाली गई. पूरा गांव इसमें शामिल हुआ. दोनों पति-पत्नी को एक ही चिता पर मुखाग्नि दी गई. दोनों की इस तरह से दुनिया से रुखतसी देखकर कई लोग बोले उठे- हफसफर के साथ जीने-मरने की कस्में इन्होंने सच की हैं.

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