पृथ्वीराज चौहान की जयंती पर युवाओं ने निकाली रैली
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पृथ्वीराज चौहान की जयंती पर युवाओं ने निकाली रैली

अलवर के नीमराना में पृथ्वीराज चौहान की जयंती गांव कांकर में युवा शक्ति ने रैली निकालकर, केक काटकर और दीप प्रज्वलित कर मनाई. युवाओं ने पूरे गांव में डीजे की धुन पर बाइक से और ट्रैक्टर से करतब दिखाते हुए रैली निकाली.

पृथ्वीराज चौहान की जयंती मनाई गई

Mundawar: अलवर के नीमराना में पृथ्वीराज चौहान की जयंती गांव कांकर में युवा शक्ति ने रैली निकालकर, केक काटकर और दीप प्रज्वलित कर मनाई. युवाओं ने पूरे गांव में डीजे की धुन पर बाइक से और ट्रैक्टर से करतब दिखाते हुए रैली निकाली. युवाओं ने रैली के दौरान विभिन्न प्रकार के करतब दिखाए, जिससे ग्रामीणों में खुशी और हर्षोल्लास का माहौल रहा. 

अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का ऐतिहासिक उपलब्धि

पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है. हिंदुत्व के योद्धा कहे जाने वाले चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज हिन्दू शासक भी थे. महज 11 वर्ष की उम्र में उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था. परंतु अंत मे वे विश्वासघात के शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे. लेकन उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया. पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था. पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे. उन्होने युद्ध के अनेक गुण सीखे थे. उन्होने अपने बाल्यकाल से ही शब्द भेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था. 

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पृथ्वीराज चौहान का जन्म 

धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ. पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और कपूरी देवी की संतान थे. पृथ्वीराज का जन्म उनके माता-पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ. यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे. परंतु वे बचते चले गए. परंतु मात्र 11 साल की आयु मे पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था. उसके बाद भी उन्होने अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अन्य राजाओं को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते गए. 

पृथ्वीराज चौहान और कन्नोज की राजकुमारी संयोगिता

पृथ्वीराज की बहादुरी के किस्से जब जयचंद की बेटी संयोगिता के पास पहुचे तो मन ही मन वो पृथ्वीराज से प्यार करने लग गयी और उससे गुप्त रूप से काव्य पत्राचार करने लगी. संयोगिता के पिता जयचंद को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बेटी और उसके प्रेमी पृथ्वीराज को सबक सिखाने का निश्चय किया . जयचंद ने अपनी बेटी का स्वयंवर आयोजित किया. जिसमें हिन्दू वधु को अपना वर खुद चुनने की अनुमति होती थी और वो जिस भी व्यक्ति के गले में माला डालती वो उसकी रानी बन जाती. जयचंद ने देश के सभी बड़े और छोटे राजकुमारों को शाही स्वयंवर में साम्मिलित होने का न्योता भेजा लेकिन उसने जानबुझकर पृथ्वीराज को न्योता नही भेजा. यही नही बल्कि पृथ्वीराज को बेइज्जत करने के लिए द्वारपालों के स्थान पर पृथ्वीराज की मूर्ती लगाई. 

पृथ्वीराज को जयचंद की इस सोची समझी चाल का पता चल गया और उसने अपनी प्रेमिका सयोंगिता को पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई. स्वयंवर के दिन सयोंगिता सभा में जमा हुए सभी राजकुमारों के पास से गुजरती गयी. उसने सबको नजरंदाज करते हुए मुख्य द्वार तक पहुची और उसने द्वारपाल बने पृथ्वीराज की मूर्ति के गले में हार डाल दिया. सभा में एकत्रित सभी लोग उसके इस फैसले को देखकर दंग रह गये क्योंकि उसने सभी राजकुमारों को लज्जित करते हुए एक निर्जीव मूर्ति का सम्मान किया. 

जयंती के अवसर पर देवराज सिंह, सीताराम यादव, जयवीर सिंह चौहान, पवन सिंह चौहान, मुकुल चौहान, सौरभ कुमार, विवेक चौहान, राहुल सिंह, रामवीर सिंह, अंकित, विकास, सौरव, प्रदीप ,अंकित शर्मा, जसवंत ,अरुण, परविंदर, विकास, मनीष सहित सैकड़ों युवा मौजूद रहे. 

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