Ladnun Vidhansabha Seat : राजस्थान में नवगठित डीडवाना-कुचामन जिले में आने वाली लाडनूं विधानसभा सीट से मौजूदा वक्त में कांग्रेस के मुकेश भाकर विधायक हैं. यहां से छह बार हरजीराम ने जीत हासिल की और लाडनूं से सबसे ज्यादा बार विधायक बनने का रिकॉर्ड भी उनके ही नाम है. पढ़े इस सीट का अब तक का पूरा चुनावी इतिहास...
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Ladnun Vidhansabha Seat : पहले नागौर और अब डीडवाना-कुचामन जिले में आने वाली लाडनूं विधानसभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है. यहां 51 साल में 11 बार हरजीराम बुरडक ने चुनाव लड़ा और 6 बार जीत हासिल की. अब यहां एक नया अध्याय शुरू हो चुका है. जहां कांग्रेस से मुकेश भाकर मौजूदा विधायक हैं तो वहीं भाजपा को भी नए चेहरे की तलाश है.
लाडनूं विधानसभा सीट लंबे अरसे तक सिर्फ दो चेहरों के लिए जानी गई. एक हरजीराम बुरडक तो वहीं दूसरा नाम मनोहर सिंह का है. 51 साल के अपने सियासी सफर में हरजीराम बुरडक ने कई बार पार्टी बदली और जीत हासिल की. हालांकि बाद में हरजीराम बुरडक कांग्रेस के विश्वस्त नेता बन गए. हरजीराम बुरडक ने पहला चुनाव 1967 में स्वराज पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 1977 में हरजीराम बुरडक जनता पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और जीते. 1985 में हरजीराम बुरडक ने लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. हालांकि 1990 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले हरजीराम चुनाव हार गए. इसके बाद1993 में हरजीराम बुरडक कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. 1998 और 2003 में भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. जहां उन्होंने 1998 जीत हासिल हुई तो 2003 में हार गए. 2008 में कांग्रेस ने लियाकत अली को टिकट दिया तो हरजीराम निर्दलीय ही चुनाव में उतर गए और जीत हासिल की. इसके बाद 2013 में उनका निधन भी हो गया.
वहीं मनोहर लाल का भी सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा. मनोहर लाल ने 1990 में निर्दलीय ही चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद 2003 में भाजपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे और जीते. हालांकि 2008 के चुनाव में भी बीजेपी के टिकट से उतरे लेकिन चुनाव हार गए. 2013 में फिर से बीजेपी ने ही उन्हें टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल की. हालांकि 2018 में एक बार फिर उन्हें सियासी शिकस्त का सामना करना पड़ा. मनोहर सिंह की साल 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले ही उनका निधन हो गया.
लाडनूं विधानसभा सीट पर जाट समाज का खासा दबदबा माना जाता है. यही कारण रहा कि यहां से हरजीराम बुरडक ने 6 बार जीत हासिल की. वहीं यहां दलित, मुस्लिम और राजपूत मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है, इसके अलावा ओबीसी मूल के भी मतदाता यहां बड़ी संख्या में है.
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर मुकेश भाकर पर दाव खेल सकती है. वहीं बीजेपी में दर्जन भर नेताओं की फेहरिस्त है जो टिकट की दावेदारी जाता रहे हैं. हरजीराम बुरडक और मनोहर सिंह के निधन के बाद लाडनूं में 2023 का चुनाव युवाओं के बीच ही होने की प्रबल संभावना है. वहीं अगर बीजेपी भी जाट उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारती है, तो दलित और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में होंगे.
1957 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से रामनिवास मिर्धा चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं राम राज्य परिषद की ओर से उम्मेद सिंह चुनाव में उतरे तो वहीं सुनील रंजन ने निर्दलिय ही चुनाव लड़ा. इस चुनाव में कांग्रेस के रामनिवास मिर्धा अन्य उम्मीदवारों पर भारी पड़े और उन्हें 57% से ज्यादा समर्थन प्राप्त हुआ. इस चुनाव में रामनिवास मिर्धा को 17,468 वोट मिले जबकि उमेद सिंह के पक्ष में सिर्फ 7,517 वोट डले. इसके साथ ही रामनिवास मिर्धा लाडनूं के पहले विधायक चुने गए.
1962 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से मथुरादास माथुर चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं निर्दलीय के तौर पर कन्हैयालाल ने चुनावी ताल ठोकी. मथुरादास माथुर इससे पहले डीडवाना से 1951 में विधायक चुने गए थे. बाद में माथुर सांसद बने. इस चुनाव में मथुरादास माथुर की जीत हुई और उन्हें 17,127 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ. वहीं निर्दलीय के तौर पर ताल ठोक रहे कन्हैया लाल की हार हुई.
1967 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस से रामनिवास मिर्धा चुनावी मैदान में उतरे तो वहीं स्वराज पार्टी से हरजीराम बुरडक ने ताल ठोकी. इस चुनाव में हरजीराम बुरडक के पक्ष में 20,339 वोट पड़े तो वहीं रामनिवास मिर्धा को 19,067 मतदाताओं का समर्थन मिला और वह कुछ मतों के अंतर से चुनाव हार गए.
1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी रणनीति बदली और रामनिवास मिर्धा की जगह दीपांकर को चुनावी मैदान में उतारा. वहीं इस बार भी स्वराज पार्टी से ही हरजीराम बुरडक चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में हरजीराम बुरडक के पक्ष में 19,191 वोट पड़े तो वही कांग्रेस के दीपांकर को 26,552 मतदाताओं का समर्थन प्राप्त हुआ और इसके साथ ही लाडनूं में कांग्रेस की वापसी हुई और दीपांकर विधायक बने.
1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से दीपांकर को टिकट दिया और चुनावी जंग में उतारा तो वहीं पिछली बार स्वराज पार्टी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतर चुके हरजीराम बुरडक ने अबकी बार जनता पार्टी के टिकट पर चुनावी ताल ठोकी. इस चुनाव में 28,084 मतों के साथ हरजीराम बुरडक की जीत हुई तो वहीं कांग्रेस के दीपांकर को सिर्फ 13,021 वोट मिले. इसके साथ हरजीराम दूसरी बार लाडनूं का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
1977 के विधानसभा चुनाव के 3 साल बाद ही हुए 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जबरदस्त गुटबाजी से जूझ रही थी तो वहीं जनता पार्टी की ओर से हरजीराम बुरडक चुनावी मैदान में उतरे. इस चुनाव में हरजीराम बुरडक को निर्दलीय उम्मीदवार रामधन ने चुनौती पेश की. चुनावी नतीजे आए तो जनता पार्टी के हरजीराम बुरडक को करारी शिकास्त का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार रहे रामधन की जीत हुई और वह विधानसभा पहुंचे.
1985 के विधानसभा चुनाव में हरजीराम बुरडक ने एक बार फिर पार्टी बदली और जनता पार्टी की जगह लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा. उन्हें उस वक्त के तत्कालीन विधायक रामधन से चुनौती मिली. हालांकि इस बार रामधन ने निर्दलीय नहीं बल्कि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. इस चुनाव में रामधन की हार हुई और उन्हें 17,692 मतदाताओं का समर्थन मिला तो वहीं हरजीराम बुरडक को 19,084 मतदाताओं ने अपना समर्थन देकर चुनाव जिताया.
1990 के विधानसभा चुनाव में हरजीराम बुरडक ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ा. जबकि कांग्रेस ने प्रफुल्ल चंद को चुनावी मैदान में उतारा. वहीं जनता दल और कांग्रेस के उम्मीदवार को निर्दलीय उम्मीदवार मनोहर सिंह ने चुनौती दी. इस चुनाव में मनोहर सिंह की 25,497 वोटों से जीत हुई जबकि जनता दल के हरजीराम बुरडक को 25199 वोट मिले. वही कांग्रेस के प्रफुल्ल चंद तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें सिर्फ 18 फ़ीसदी मतदाताओं का ही साथ मिल सका.
1993 के विधानसभा चुनाव में हरजीराम बुरडक ने एक बार फिर पाला बदला और अब हरजीराम बुरडक कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. हरजीराम बुरडक को बीजेपी के छगनलाल से चुनौती मिली. इस चुनाव में हरजीराम के पक्ष में 37,899 वोट पड़े तो वहीं भाजपा के छगनलाल को 30,942 मतदाताओं ने समर्थन दिया. इसके साथ ही हरजीराम चौथी बार विधानसभा पहुंचे.
1998 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला हरजीराम बुरडक बनाम छगनलाल था. इस चुनाव में कांग्रेस के हरजीराम बुरडक को 46,389 वोट मिले तो वहीं छगनलाल को फिर से हार का सामना करना पड़ा और उन्हें 44,525 मतदाताओं का ही साथ मिल सका.
2003 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर एक बार फिर हरजीराम चुनावी मैदान में उतरे जबकि बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदलते हुए 1990 में निर्दलीय विधायक के तौर पर जीतने वाले मनोहर सिंह को टिकट दिया. इस चुनाव में मनोहर सिंह 45,928 वोटों के साथ फिर से चुनाव जीतने में कामयाब हुए. जबकि कांग्रेस के हरजीराम को एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा.
2008 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मुकाबला हरजीराम बुरडक वर्सेस मनोहर सिंह था. इस चुनाव में जहां बीजेपी ने फिर से मनोहर सिंह को उतारा तो वही कांग्रेस ने हरजीराम बुरडक का टिकट काटते हुए लियाकत अली को चुनावी जंग में भेजा. लिहाजा ऐसे में हरजीराम राम ने निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरने की फैसला किया. इस चुनाव में हरजीराम राम को 48875 वोट मिले. जबकि बीजेपी उम्मीदवार मनोहर सिंह 40,677 मतों के साथ दूसरे स्थान पर है, वहीं कांग्रेस के लियाकत अली को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा और वह तीसरे स्थान पर रहे. इसके साथ ही हरजीराम राम एक बार फिर अपना लोहा मनवाने में कामयाब हुए.
2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपनी पिछली हार से सबक लिया और फिर से हरजीराम को टिकट दियाय. जबकि भाजपा ने एक बार फिर मनोहर सिंह पर ही दांव खेलने का ठाना. इस चुनाव में बीजेपी के मनोहर सिंह को जीत मिली और उन्हें 73,345 मतदाताओं का समर्थन मिला तो वहीं हरजीराम को 85,294 मतदाता ने ही वोट दिया. इसके साथ ही मनोहर सिंह एक बार फिर लाडनूं का प्रतिनिधित्व करने राजस्थान विधानसभा पहुंचे.
2018 के विधानसभा चुनाव के बाद ही हरजीराम बुरडक का निधन हो गया और कांग्रेस को एक नए चेहरे की तलाश थी. कांग्रेस की तलाश राजस्थान यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट प्रेसिडेंट रहे युवा नेता मुकेश भाकर पर जाकर खत्म हुई और मुकेश भाकर को चुनावी मैदान में उतारा. जबकि बीजेपी ने अपने पुराने खिलाड़ी मनोहर सिंह को ही रिपीट करते हुए चुनावी मैदान में उतारा. इस चुनाव में 65,041 वोटों के साथ मुकेश भाकर की जीत हुई. जबकि बीजेपी के मनोहर सिंह को 52,094 वोट मिले. इसके साथ ही लंबे अरसे बाद लाडनूं से एक युवा प्रतिनिधि राजस्थान विधानसभा पहुंचा.
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