Shardiye Navratri 2023: राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के उमराई गांव में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में नवरात्रि के महापर्व में मेले सा नजारा देखने को मिल रहा है. मंदिर में नवरात्रि के पहले दिन से मंगला आरती हो रही है.
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Shardiye Navratri 2023: राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के उमराई गांव में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर में नवरात्रि के महापर्व में मेले सा नजारा देखने को मिल रहा है. मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर रोजाना मंगला आरती हो रही है. साथ ही रोजाना रात्रि को गरबा नृत्य का भी आयोजन किया जा रहा है. मां त्रिपुरा के दर्शन के लिए देश के हर कोने से भक्त पहुंच रहे है और मां का नवरात्रि में आशीर्वाद ले रहे हैं.
त्रिपुरा सुंदरी को तरताई माता भी कहा जाता है, यह अपने भक्तो को तुरंत फल देती है इसलिए इन्हें तरतई माता कहा जाता ह. नवरात्रि में रोजाना हजारों लोग यहां दर्शन करने आ रहे है. इतना ही नहीं नवरात्रि में मां का रोजाना विशेष श्रृंगार भी किया जा रहा है. इस नवरात्रि में मां को भक्तों ने 5 किलोमीटर लंबी चुनड़ी भी चढ़ाई हैं. मां से भक्तों का लगाव ऐसा है कि भक्त पैदल चलकर मनोकामना मांगने आते हैं. इतना ही नहीं नवरात्रि में भक्तो की लंबी कतारें भी देखने को मिल रही है. वहीं सुरक्षा की दृष्टि से पूरे परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए है और पुलिस बल भी तैनात है.
मां त्रिपुरा सुंदरी में देश के जाने माने नेताओं की आस्था भी जुड़ी हुई है. मां का आशीर्वाद देश के प्रधानमंत्री,पूर्व राष्ट्रपति ,कई प्रदेश के राज्यपाल,कई प्रदेश के मुख्यमंत्री,पूर्व मुख्यमंत्री,मंत्री,सांसद,विधायक और बड़े राज नेताओं ने किया है. इस मंदिर में राजनीति हवन भी होता है जिस कारण से यहां पर नेताओं की आस्था शुरू से जुड़ी हुई है.
15 अक्टूबर (प्रतिपदा) मां शैलपुत्री की पूजा, घट स्थापना
16 अक्टूबर (द्वितीया) मां बह्मचारिणी
17 अक्टूबर (तृतीया) मां चंद्रघंटा
18 अक्टूबर (चतुर्थी) मां कुष्मांडा
19 अक्टूबर (पंचमी मां स्कंद माता
20 अक्टूबर (षष्ठी) मां कात्यायनी
21 अक्टूबर (सप्तमी) मां कालरात्रि
22 अक्टूबर (अष्टमी) दुर्गा महाअष्टमी पूजा
23 अक्टूबर (नवमी) दुर्गा महानवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा
देश में यह मंदिर अनूठा है, जहां प्रत्येक शिला (पत्थर) को हवन-पूजन कर प्रतिष्ठित किया है। मंदिर में 2224 शिलाएं हैं. मंदिर में त्रिपुरा सुंदरी की मूल प्रतिमा के चारों ओर कुल 8 प्रतिमाएं, 5 स्वर्ण शिखर, 1 ध्वजदंड और शुकनाथ की प्रतिष्ठित प्रतिमा है. देवी के आसन के नीचे चमकीले पत्थर पर श्री यंत्र बना है, जिसका अपना विशेष तांत्रिक महत्व भी है. इस कारण दीपावली पर देवी की विशेष पूजा होती है.
18 भुजाओं वाली महालक्ष्मी रूप में मां त्रिपुरा सुंदरी की हर भुजा में अक्षमाला, कमल, बाण, खड़ग, वज्र, गदा, चक्र, त्रिशूल, परशु, शंख, घंटा, पाश, शक्ति, दंड, चर्म (ढाल), धनुष, पानपात्र और कमंडल जैसे आयुध (हथियार) भी हैं.
जिला मुख्यालय से मंदिर 19 किमी दूर है. इसके निर्माण का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन 1540 विक्रम संवत का एक शिलालेख इस क्षेत्र में मिला है, इससे यह अनुमान है कि यह मंदिर कनिष्क काल के पूर्व का है. इसका मतलब मूल मंदिर का निर्माण 2 हजार साल से भी पूर्व हो चुका होगा. बाद में पंचाल समाज ने दो बार इसका पुनरुद्धार कराया. यह मंदिर सीतापुरी, विष्णुपुरी और ब्रह्मपुरी के बीच होने के कारण त्रिपुर सुंदरी के नाम से जाना जाने लगा.
श्रीयंत्र : मां भगवती संपूर्ण विग्रह यानि श्रीयंत्र पर विराजित हैं। इसलिए यह यंत्र, मंत्र और तंत्र की अधिष्ठात्री देवी व तंत्र पीठ के रूप में विराजित हैं, इसलिए श्रीयंत्र ही त्रिपुरा सुंदरी है और मां त्रिपुरा ही श्रीयंत्र.
नवदुर्गा : मूर्ति के चारों ओर आभामंडल में नव अश्वों पर सवार नवदुर्गा विराजित है.
18 भुजाएं : वैकृति रहस्य के 11वें श्लोक के अनुसार उसी क्रम में मां के प्रत्येक हाथ में आयुध हैं. 9 दाहिनी और 9 बाई तरफ.