अक्षय तृतीया आखातीज: बाड़मेर में शगुन देखने का अजीब रिवाज, साल भर के देखे जाते हैं अकाल या आएगा सुकाल
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अक्षय तृतीया आखातीज: बाड़मेर में शगुन देखने का अजीब रिवाज, साल भर के देखे जाते हैं अकाल या आएगा सुकाल

Akha Teej interesting facts: आखातीज के दिन तथा अमावस्या के दिन राजस्थान के किसानों द्वारा वर्ष भर के शगुन देखें जाने की परंपरा हैं. इस दिन बड़े बुजुर्ग पक्षियों की आवाज तथा दिशा से शगुन देखते हैं. आसमान में बादलों और हवा के रूख से आगामी मानसून और बारिश और  खेती- उपज से जुड़ी भविष्य वाणी करते हैं.

अक्षय तृतीया आखातीज: बाड़मेर में शगुन देखने का अजीब रिवाज, साल भर के देखे जाते हैं अकाल या आएगा सुकाल

Akha Teej interesting facts: बाड़मेर जिले के समदड़ी क्षेत्र में अक्षय तृतीया पर गांवो में प्रेम सभा व शादियों की रौनक देखने को मिल रही है. मारवाड़ में अक्षय तृतीया को आखातीज धरती पुत्र शगुन देखकर खेती करते है. आखातीज के दिन कोई मुर्हूत नहीं होता. पूरा दिन शुभ होता है.अबुजिया सावे के कारण आखातीज के दिन गांवों में अनेकों जोड़े परिणय सूत्र में बंधते है. इस दिन बाड़मेर समेत पूरे राजस्थान के लोगों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता हैं. इस दिन को सबसे बड़ा दिन त्यौहार के रूप में मनाया जाता है.

बाड़मेर में शगुन देखते के अजीब रिवाज 

आखातीज के दिन तथा अमावस्या के दिन राजस्थान के किसानों द्वारा वर्ष भर के शगुन देखें जाने की परंपरा हैं. इस दिन बड़े बुजुर्ग पक्षियों की आवाज तथा दिशा से शगुन देखते हैं. आसमान में बादलों और हवा के रूख से आगामी मानसून और बारिश और  खेती- उपज से जुड़ी भविष्य वाणी करते हैं. यहां के लोगों को इस दिन डोड कौआ दिखाई देना शुभ माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन मिट्टी के मंडले (गीली मिट्टी के कच्चे कुल्हड़) बनाकर उसके फूटने तक इंतजार किया जाता है. फूटने पर पानी के बहाव से भी शगुन देखते के अजीब रिवाज है. यह सभी रीति रिवाज विशेष पश्चिम राजस्थान के बाड़मेर जैसलमेर , जोधपुर तथा बीकानेर जिले में यह रीति रिवाज काफी मनाया जाता है.

आखातीज के दिन खेती बाड़ी की जाती है भविष्यवाणी

अंतर्राष्ट्रीय जूना अखाड़ा महामंत्री व श्रीमठ कनाना मठाधीश महंत परशुराम गिरी महाराज ने बताया की प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा का आज भी बुजुर्गों द्वारा गांवों की चौपाल मठ मंदिर पर पहुचकर प्रेम सभा मे भाग लेते है. इस दिन मानसून के शगुन देखते है मिट्टी के थम बर्तन में पानी भरकर बारिश के संकेत मिलते है. जेठ से भाद्रपद तक इस बार अच्छी बारिश के संकेत मिल रहे है. शुभ संकेतों से धरती पुत्रों में खुशी दिख रही है. अक्षय तृतीया (आखातीज ) प्रेम सभा में संकेतो के बाद ग्रामीण इलाकों में होती है खेती. गांवो में बुर्जग लोग गांवो में सगुन देखा जाता है.

खेती बाड़ी को लेकर चर्चा की जाती है जो सदियों से चली आ रही परंपरा का निर्वहन करते दिखाई देते है, ग्रामीण इलाको में छोटे बड़े बुर्जग महिलाएं मारवाड़ी वेश भूषा में सज धज कर नाचते गाते हुए रौनक देखने को मिलती है. आपसी भाईचारा प्रेम आखातीज के दिन देखने को मिलता है ,अक्षय तृतीया का दिन किसी पर्व से कम नहीं होता है.

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