इनके हाथों के हुनर के मौहताज पूरी दुनिया, बेजान धातु में भी डाल देते हैं जान, पर खुद परेशान
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इनके हाथों के हुनर के मौहताज पूरी दुनिया, बेजान धातु में भी डाल देते हैं जान, पर खुद परेशान

पश्चिमी राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले को हस्तशिल्प का खजाना कहा जाता रहा है. यहां हुनरबाजों की कोई कमी नहीं है, लेकिन हस्तशिल्प से बने उत्पादों की मार्केटिंग नहीं होने के चलते यहां के हुनरबाजों का हुनर अपने तक ही सीमित रह रहा है.

इनके हाथों के हुनर के मौहताज पूरी दुनिया, बेजान धातु में भी डाल देते हैं जान, पर खुद परेशान

Barmer: पश्चिमी राजस्थान के सरहदी बाड़मेर जिले को हस्तशिल्प का खजाना कहा जाता रहा है. यहां हुनरबाजों की कोई कमी नहीं है, लेकिन हस्तशिल्प से बने उत्पादों की मार्केटिंग नहीं होने के चलते यहां के हुनरबाजों का हुनर अपने तक ही सीमित रह रहा है. आज हम आपको बता रहे हैं मांगीलाल गौर बंजारा की कारीगरी के बारे में. जो अपने हाथों की हुनरबाजी की बदौलत जिले में चर्चा का विषय बने हुए हैं. आज भी भारतीय हस्तशिल्प का पूरी दुनिया में अपनी अलग पहचान है.

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लोककला को सहेजकर निरंतर आगे बढ़ाने वाले हाथ अपनी महीन कारीगरी से रचनात्मक वस्तुएं बनाकर मन मोह लेते हैं. यहां दैनिक जीवन की सामान्य वस्तुएं भी कोमल कलात्मक रूप में गढ़ी जाती हैं. ये आधुनिक भारत की विरासत के भाग हैं. ये कलाएं हजारों सालों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी पोषित होती रही हैं और हजारों हस्तशिल्पकारों को रोजगार प्रदान करती हैं. इस प्रकार देखा जा सकता है भारतीय शिल्पकार किस तरह अपने जादुई स्पर्श से एक बेजान धातु, लकड़ी या हाथी दांत को कलाकृति में बदलकर भारतीय हस्तशिल्प को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाते हैं. बाड़मेर शहर के मांगीलाल शीशम और नीम की लकड़ियों से कई तरह की आइटम तैयार करते हैं. अलग-अलग वैरायटी के कंघे-कंघियों के साथ मांगीलाल शीशम की लकड़ी से वाद्य यंत्र खरताल भी बनाते हैं. 

इसके अलावा नीम की लकड़ी से बेलन, मूसल, डंडे समेत कई तरह के उत्पाद अपने हाथों से बनाने के साथ रंग-रोगन और डिजाइनिंग भी देते हैं. बावजूद इसके इतना मेहनताना नहीं मिल पा रहा है. बाड़मेर शहर के बलदेव नगर निवासी 58 वर्षीय मांगीलाल बताते हैं कि लकड़ी पर हाथों से कारीगरी का काम उन्होंने अपने पिता पोकराराम से सीखा था और यह उनका पुस्तैनी काम है. मांगीलाल के अनुसार एक कंघी को तैयार करने में करीब 1 घंटे की मेहनत लगती है, लेकिन मेहनत जितना मेहनताना नहीं मिलने की वजह से उनके बच्चे अब इस काम को सीखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं.

मांगीलाल का कहना है कि सरकार हस्तनिर्मित उत्पादों और हस्त कलाओं, कारीगरी को संरक्षित करने के लिए कोई मंच उपलब्ध करवाएं. अन्यथा ये कलाएं और संस्कृति हमेशा के लिए लुप्त हो जाएगी. आपको बता दें कि सरहदी बाड़मेर के हस्तनिर्मित बेडशीट, कुशन कवर, अजरख देश ही नहीं विदेशों में भी पसंद की जाती रही है. इसी तरह लकड़ी के हैंडीक्राफ्टस की भी विदेशों में बहुत मांग है, लेकिन इन हस्तशिल्पियों को उचित मार्केट ना मिलने के कारण हस्तकला, कारीगिरी अब लुप्त होती जा रही है.

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