राजस्थान: फाइलों में अटकी स्मार्ट विलेज योजना, 33 जिलों में नहीं हुआ कोई काम
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राजस्थान: फाइलों में अटकी स्मार्ट विलेज योजना, 33 जिलों में नहीं हुआ कोई काम

साल 2017-2018 के बजट भाषण में स्मार्ट विलेज की घोषणा हुई थी, लेकिन योजना पर कोई खाका तैयार नहीं हुआ. यह योजना स्वतंत्र बजट के अभाव में अन्य मदों पर निर्भर रही.

स्मार्ट विलेज योजना में कुल 3240 गांवों का चयन किया गया था.

जयपुर: चमचमाती चौड़ी सड़कें, साफ-सुथरी गलियां, सड़क-चौराहों पर सीसीटीवी कैमरे, हर घर में शौचालय, सार्वजनिक वाटर प्यूरिफायर, अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम, सोलर लाइट, स्मार्ट स्कूल स्कूल, ई-प्रशासन, वाई-फाई सुविधा. कुछ इसी तरह का स्मार्ट गांव देखना चाहते थे 3 हजार 240 गांव के ग्रामीण. स्मार्ट सिटी की तर्ज पर गांवों की सूरत-सिरत बदलने के लिए तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने स्मार्ट विलेज योजना शुरू की,लेकिन धरातल पर इस योजना पर काम ही नहीं हुआ. जो कुछ काम शुरू हुआ, उनकी गति बहुत धीमी है. प्रदेश के 33 जिलों में स्मार्ट विलेज की अवधारणा को पूरा करने की दिशा में कुछ नहीं हुआ.

मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल की स्मार्ट सिटी योजना खासी सुखिर्यों में रही. उसी तर्ज पर तत्कालीन प्रदेश की वसुंधरा सरकार ने भी स्मार्ट विलेज योजना के नाम पर ख्वाब दिखाए. दोनों ही सरकारों की योजनाओं का हश्र एक जैसा ही हुआ. न शहर स्मार्ट बने और न ही गांव स्मार्ट बन पाए. सरकार बदलने के बाद स्मार्ट विलेज योजना कागजों में ही अटकी हुई पड़ी है. स्मार्ट विलेज स्कीम के तहत धरातल पर ज्यादातर काम ही नहीं हुआ. जहां शुरू हुआ वहां गति बेहद धीमी. नतीजा, प्रदेश के 33 जिलों में स्मार्ट विलेज की अवधारणा को पूरा करने की दिशा में कुछ भी नहीं हुआ.

वहीं साल 2017-2018 के बजट भाषण में स्मार्ट विलेज की घोषणा हुई थी. जिला परिषदों में इन योजनाओं को लेकर फाइलें व कागज चलाए और बैठकें की. लेकिन योजना पर कोई खाका तैयार नहीं हुआ. यह योजना स्वतंत्र बजट के अभाव में अन्य मदों पर निर्भर रही. बाद में सत्ता परिवर्तन हो गया और योजना कागजों में ही सिमटी रह गई .प्रदेश के 33 जिलों में स्मार्ट विलेज के करीब 2.14 लाख कार्य प्रस्तावित किए गए थे. जिनमें से महज 1713 कार्य ही पूर्ण हुए. स्मार्ट विलेज योजना में कुल 3240 गांवों का चयन किया गया था. इसमें जयपुर से सबसे ज्यादा 233 गांवों को शामिल किया गया. इनमें 10 हजार से ज्यादा आबादी वाले 13, पांच से दस हजार की आबादी वाले 76 और तीन हजार से 5 हजार तक की आबादी वाले 144 गांव शामिल हैं.

जबकि ग्रामीण विकास विभाग ने स्मार्ट विलेज के लिए जिलेवार सूची को अलग-अलग श्रेणी में तैयार किया गया था. जिसमें तीन हजार से 5 हजार, 5 हजार से 10 हजार और दस हजार से ज्यादा आबादी वाले गांवों की श्रेणी बनाई गई. पांच हजार तक की आबादी वाले 2217 गांव, पांच से 10 हजार तक की आबादी वाले 832 गांव और 10 हजार से ज्यादा आबादी वाले 120 गांवों को इस योजना के जरिए स्मार्ट बनाया जाना था. इनमें चयनित स्मार्ट विलेज में गौरव पथ पर स्मॉर्ट लाइट, पार्क, गांवों में दो स्वराज पथ नाली सहित, पशु चिकित्सालय विभिन्न तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी थी.

इसके साथ ही केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी बनाने का वादा किया तो 2017 की बजट घोषणा में राज्य सरकार ने स्मार्ट सिटी की तर्ज पर ही स्मार्ट विलेज बनाने का वादा किया. धरातल पर इसकी हकीकत देखे तो ग्राम पंचायतें ये समझ ही नहीं पाई है कि स्मार्ट विलेज क्या होता है. इन गांवों को स्मार्ट बनाने के लिए महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत काम किए जाने थे और मनरेगा के तहत ही इन गांवों को स्मार्ट बनाना था. लेकिन हकीकत यह है कि अब तक न तो कोई गांव स्मार्ट बना और न ही किसी गांव ने स्मार्ट विलेज का तमगा हासिल किया. 

चयनित गांवों में 7 काम करवाए जाने थे, जिससे गांवों में लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो और उनको बेहतर सुविधाएं मिल सकें. लेकिन इन सात कामों में से एक काम भी नहीं हो पाया. इनमें से एक गांव भी साफ-सुधरा और शहरों की तरह नहीं बन पाया है. इन गांवों के नाम कागजों में स्मार्ट के रूप में तो दर्ज हो चुके हैं. जबकि हकीकत में यदि गांव में प्रवेश कर देखा जाए तो धूल के गुबार, सड़कों पर बहता पानी, सड़ांध मारती नालियां दिखाई देंगी. 

सरकार ने गांवों से पलायन रोकने और वहां भी शहरों की तरह ही वातावरण विकसित करने के लिए स्मार्ट विलेज की घोषणा की थी. चयनित गांवों में जल निकासी प्रबंधन, पक्की नालियों का निर्माण, दो लाख रुपए की लागत से सामुदायिक शौचालय निर्माण, सार्वजनिक पार्क, खेल मैदान का निर्माण, चारागाह विकास के लिए खाई, एलईडी लाइट या सोलर लाइट लगवाने की बात की थी. वहीं गांवों में नियमित स्वच्छता, सफाईकर्मी एवं कचरा परिवहन के लिए किराए के ट्रैक्टर-ट्रॉली या रिक्शा की व्यवस्था करना, दो मुख्य मार्गों को स्वराज मार्ग के नाम पर विकसित करने के काम होने की पातें भी कही गई थी लेकिन अभी तक इन गांवों में एक काम भी नहीं हो पाया.

विकास के लिए सरकार के स्तर पर जानें कितनी योजनाएं बनती हैं और कितनी ही कागजों में दफन होकर रह जाती है. तत्कालीन सरकार ने गांवों को स्मार्ट विलेज बनाने का सपना दिखाया, लेकिन सरकार बदलने के साथ ही ये सपना सरकार की फाइलों में दफन हो गया है. यदि यह ख्वाब साकार हो जाता तो आज गांवों की सूरत बदल जाती. इस योजना का हश्र भी पहले जैसी कई सरकारी योजनाओं की तरह हो गया.

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