राजस्थानके भीलवाड़ा में अफीम की खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्की आदि देशों में मुख्यत: होती है. भारत में ये अफीम की खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में बोई जाती है. अफीम की खेती करने के लिये सरकार के नारकोटिक्स विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है.
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Jahazpur, Bhilwara News: अफीम की खेती भारत, चीन, एशिया माइनर, तुर्की आदि देशों में मुख्यत: होती है. भारत में ये अफीम की खेती राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश में बोई जाती है. अफीम की खेती करने के लिये सरकार के नारकोटिक्स विभाग से अनुमति लेना आवश्यक है.
अफीम के पौधे से अहिफेन यानि अफीम (पौधे का दूध) निकलती है, जो नशीली होती है. अफीम की खेती की ओर लोग सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं. वजह सीधी सी है और वो है बहुत ही कम लागत में अच्छी कमाई होना. वैसे तो देश में अफीम की खेती गैरकानूनी है, लेकिन अगर इसे नारकोटिक्स विभाग से लाईसेंस लेकर किया जाए, तो फिर आपको कोई डर नहीं.
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अफीम की बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक की जाती है. भीलवाड़ा जिले के कोटड़ी उपखंड क्षेत्र के सवाईपुर क्षेत्र के बड़ला, बनकाखेड़ा, ड़साणिया का खेड़ा, सोपुरा, सालरिया, खजीना, होलिरड़ा, जित्यास आदि गांवों में अफीम फसल की बुवाई की गई, इन दिनों किसान अफीम की फसल निराई गुड़ाई कर खरपतवार को मिटाने का कार्य कर रहे हैं.
क्षेत्र के किसानों ने बताया कि इस बार बारिश और तेज धूप की मार देखने को मिला, जिसकी वजह से क्षेत्र के किसानों ने तीन से चार बार तक अफीम फसल की बुवाई की तब जाकर अफीम के पौधे बने. वहीं इस बार जिले में सीपीएस पद्धति से भी अफीम की बुवाई की गई. केंद्रीय नारकोटिक्स विभाग ने इस बार जिले में 5601 पट्टे डोडा पर चिरा और लुवाई के और 287 पट्टे सीपीएस पद्धति के पट्टे जारी किए. भीलवाड़ा जिले में इस वर्ष 560 हेक्टेयर में बुवाई हुई है. भारत सरकार ने देश की आवश्यकता को पूरी करने के लिए सीपीएस पद्धति के ऊपर भी लाइसेंस जारी किए. वह इसकी नीति अलग से जारी की.
पहली बार वह भीलवाड़ा जिले में इस वर्ष 287 किसान जिनको सीपीएस पद्धति पर लाइसेंस मिला है, यह किसान विभाग को और सरकार को टोल केंद्र पर नुकीली चीज से छेद करके डोडा में पोस्ता दाना स्वयं निकाल लेंगे. वह 6 इंच डटल के साथ इसको नारकोटिक्स विभाग को तोलेगे, जिसका किसानों को ₹200 प्रति किलो के हिसाब से पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी भुगतान किया जाएगा. बाकी किसानों का निर्धारित मापदंड के अनुसार, केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो अफीम तू लाई तोल केंद्र पर पूर्व वर्षों की भांति जारी रखेगा.
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आने वाले वर्षों में भारत सरकार की योजना है कि सभी अफीम के किसानों को सीपीएस पद्धति पर लाइसेंस दिए जाएंगे. भारतीय किसान संघ ने मांग की है कि जो भी 1996 से किसान है. अब तक उन सब किसानों को भी पट्टे जारी करें और देश की आवश्यकता की पूर्ति के लिए ज्यादा से ज्यादा अफीम किसानों को अफीम लाइसेंस दिए जाए.
अफीम किसानों को दोहरी मार अफीम फसल की बुवाई में ही पड़ गई है, बहुत से किसानों को दो बार फसल बुवाई करनी पड़ी, तो बहुत से किसान तीन-चार भी फसल की बुवाई कर चुके हैं. 14 और 15 अक्टूबर को बेमौसम बारिश होने की वजह से अफीम फसल उग नहीं पाई थी, जिससे किसानों को बहुत नुकसान हुआ. अतः वित्त मंत्रालय को ज्ञापन भेजकर मांग की जाएगी कि किसानों को इसमें संबल दे. वह राहट प्रदान करें अफीम नीति तो समय पर जारी हो गई. अफीम किसान अपनी फसल को समय पर बुवाई कर चुके थे, पर बेमौसम बारिश होने से वह तापमान ज्यादा होने की वजह से फसल उग नही पाई, पिछले वर्ष वाली स्थिति उससे भी ज्यादा डामाडोल हो गई, अतः सरकार को इस पर विचार करना चाहिए.
जलवायु: अफीम की फसल को समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए 20-25 डिग्री सेल्सियम तापमान की आवश्यकता होती है.
भूमि: अफीम को प्राय: सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है, परन्तु उचित जल निकास एवं पर्याप्त जीवांश पदार्थ वाली मध्यम से गहरी काली मिट्टी जिसका पी.एच. मान 7 हो तथा जिसमें विगत 5-6 वर्षों से अफीम की खेती नहीं की जा रही हो उपयुक्त मानी जाती है.
खेत की तैयारी : अफीम का बीज बहुत छोटा होता है, अत: खेत की तैयारी का महत्वपूर्ण योगदान होता है. इसलिए खेत की दो बार खड़ी तथा आड़ी जुताई की जाती है तथा इसी समय अच्छी प्रकार से सड़ी गोबर खाद को समान रूप से मिट्टी में मिलाने के बाद पाटा चलाकर खेत को भुर-भुरा तथा समतल कर लिया जाता है. इसके उपरांत कृषि कार्य की सुविधा के लिए 3 मी. लम्बी तथा 1 मी. चौड़ी आकार की क्यारियां तैयार कर ली जाती हैं.
निदाई- गुड़ाई तथा छंटाई: निंदाई-गुड़ाई एवं छटाई की प्रथम क्रिया बुवाई के 25-30 दिनों बाद तथा दूसरी क्रिया 35-40 दिनों बाद रोग और कीटग्रस्त एवं अविकसित पौधे निकालते हुए करनी चाहिए. अंतिम छटाई 50-50 दिनों बाद पौधे से पौधे की दूरी 8-10 से.मी. तथा प्रति हेक्टेयर 3.5 और 4 लाख पौधे लगाते हैं.
Reporter- Dilshad Khan