ज्ञापन में महासंघ ने कहा कि राजस्थान सरकार ने 21 सितंबर 2022 को एक सर्कुलर जारी करते हुए राज्य के सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश प्रदान किया है कि प्रदेश के कुछ जिलों में वर्तमान जमाबंदी में जाति कुमावत के स्थान पर प्रजापति / प्रजापत / कुम्हार इत्यादि दर्ज हो गया है.
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Chittorgarh: चित्तौड़गढ़ अखिल भारतीय प्रजापति कुम्भकार महासंघ ने महासंघ के उदयपुर संभाग अध्यक्ष भोलाराम प्रजापत के नेतृत्व में प्रजापति, कुम्हार, कुम्भकार, प्रजापत जाति के लोगों के साथ मिलकर सैकड़ों की संख्या में जिला कलक्टर कार्यालय पहुंच कर मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन सौंपा है. इसमें राजस्थान सरकार के राजस्व विभाग के परिपत्र 21 सितंबर 2022 को वापस लेने का आग्रह किया है.
महासंघ के बैनर तले सैकड़ों की संख्या में लोगों ने शुक्रवार को जिला कलक्टर कार्यालय के बाहर एकत्रित होकर राज्य सरकार के प्रति नाराजगी प्रदर्शित की और मुख्यमंत्री का पुतला दहन किया.
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मुख्यमंत्री के नाम जिला कलक्टर अरविंद पोसवाल को सौंपे गए ज्ञापन में महासंघ ने कहा कि राजस्थान सरकार ने 21 सितंबर 2022 को एक सर्कुलर जारी करते हुए राज्य के सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश प्रदान किया है कि प्रदेश के कुछ जिलों में वर्तमान जमाबंदी में जाति कुमावत के स्थान पर प्रजापति / प्रजापत / कुम्हार इत्यादि दर्ज हो गया है. राजस्व रिकॉर्ड में यदि जाति कुमावत के स्थान पर प्रजापति / प्रजापत / कुम्हार दर्ज हो गया है, तो उसके स्थान पर पुनः जाति कुमावत दर्ज करने की नियमानुसार कार्यवाही सुनिश्चित करावें.
महासंघ ने राज्य सरकार से इस सर्कुलर को वापस लेने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया है. अखिल भारतीय प्रजापत कुम्भकार महासंघ की चित्तौड़गढ़ जिला इकाई की ओर से राज्य सरकार को सौंपे गए ज्ञापन में महासंघ ने कहा है कि हमारी मूल जाति प्रजापति कुम्भकार - कुम्हार ही है. उन्होंने कहा कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सहित विश्व की अन्य सभ्यताओं की खोज में हमारी कला के मिले अवशेष व ऐतिहासिक तथ्य इसका पुख्ता सबूत है.
कुमावत नाम की कोई जाति दर्ज नहीं थी
महासंघ ने कहा कि भारत राजपूताना जयपुर स्टेट की जनगणना सन् 1901, 1911 व 1931 में कुमावत नाम की कोई जाति दर्ज नहीं है. अतः स्पष्ट है कि कुमावत नाम की कोई जाति राजपूताना स्टेट में थी ही नहीं.
महासंघ ने बताया कि राजपूताना के साबिक (पुराना) और वर्तमान राजस्थान के साबिक भू राजस्व रिकॉर्ड में मात्र कुम्हार, प्रजापति का ही अंकन है जबकि कुमावत शब्द का जाति के रूप में कही भी पुराने रिकॉर्ड में अंकन मौजूद नहीं है इसके अलावा प्रथम राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग यानि काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट में भी कहीं कुमावत शब्द का अंकन नहीं है. मात्र कुम्हार प्रजापति का ही अंकन है और द्वितीय राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ( मंडल आयोग) की रिपोर्ट में भी कुमावत शब्द का अंकन नहीं है. मात्र कुम्हार का ही अंकन है और इसी रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी को आरक्षण मिला है. यह रिपोर्ट भी 1931 की जातीय जनगणना के आधार पर है.
कुमावत का कोई अंकन नहीं
महासंघ ने कहा कि केन्द्र और राज्य की प्रथम सरकारी गजट में अधिसूचित पिछड़ा वर्ग की सूची (ओबीसी) माह अगस्त 1993 में मात्र कुम्हार शब्द का ही अंकन है, कुमावत का कोई अंकन नहीं है. जिन काश्तकारों की काश्तकारी भूमि के राजस्व रिकॉर्ड में पीढ़ियों से जाति का अंकन कुम्हार किया हुआ है उसमें विधिक रूप से विधायिका / सक्षम कोर्ट के आदेश के बिना परिवर्तन करने का कानूनी अधिकार सर्कुलर के तहत दिया जाना न्यायोचित नहीं है. भारतीय संविधान किसी भी सरकार को किसी जाति में नव जाति के सृजन का मनमाना अधिकार नहीं देता है.
पहचान आम समाज में उसकी मूल जाति की रहेगी
सुप्रीम कोर्ट ने भी आरक्षण के कई मामलो में यह स्पष्ट कर दिया है कि जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था प्रणाली में निर्धारित होता रहा है. किसी भी सवर्ण के दलित वर्ग में शामिल होने मात्र से उसकी जाति नहीं बदलती है. इस प्रकार किसी के पूर्वज कई पीढ़ियों से कुम्हार थे तो उनकी पीढी के वंशज आज अन्य जाति के नहीं हो सकते भले ही वो अपना उपनाम कितना ही अच्छा लगा लें उनकी पहचान आम समाज में उसकी मूल जाति की रहेगी.
सरकार कुमावत शब्द को क्रीमलीयर घोषित करे
महासंघ के बैनर तले कुम्हार समाज ने सरकार से पुर जोर मांग की है कि सरकार कुमावत शब्द को क्रीमलीयर घोषित करे क्योंकि ओबीसी आरक्षण का लाभ लेने हेतु तो कुम्हार का उपनाम कुमावत बताकर पिछले दरवाजे से उस समय पिछड़े बन गये. जब इनको लाभ नहीं मिल रहा था और आज कुम्हार (प्रजापति) कहलाने में शर्म आती है और अपनी मूल जाति को छिपाने चाहते हैं. महासंघ ने कहा कि जिला कलक्टर, उपखंड अधिकारी और तहसीलदार भू राजस्व रिकॉर्ड में कुम्हार जाति के काश्तकारों के खातेदारी रिकॉर्ड में पूर्वजों के समय से अंकित जाति कुम्हार (प्रजापति) के स्थान पर कुमावत शब्द का अंकन सर्कुलर दिनांक 21 सितंबर 2022 के तहत किसी भी कुम्हार, प्रजापति के काश्तकार के किया जाना विधि के प्रतिकूल है.
राज्य सरकार का कार्य जाति परिवर्तन करने का नहीं
महासंघ ने राज्य सरकार को कहा कि राज्य सरकार का कार्य जाति परिवर्तन करने का नहीं है. महासंघ ने कहा कि भू राजस्व अधिनियम की धारा 136 में सिर्फ किसी लिपिकीय त्रुटि को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत सुधार करने का प्रावधान है जबकि इस आधार पर काश्तकार की पीढ़ियों से भू राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जाति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है.
महासंघ के बताए अनुसार भू राजस्व अभिलेख नियम 1957 के नियम 369 में भी अति प्राचीन रिकॉर्ड में दर्ज सही जाति की प्रविष्ठी को परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है. और किसी काश्तकार के पूर्वजों से चली आ रही खातेदारी भूमि के रिकॉर्ड में जाति कुम्हार दर्ज है तो उसके वारीसान की जाति कुमावत दर्ज किया जाना अवैधानिक है क्योंकि सरकार भू राजस्व अधिनियम 1956 के अस्तित्व आने के समय काश्तकार की जो पहचान व जातिगत प्रविष्ठी थी उसी को यथा स्थिति में रखने हेतु बाध्य है.
राज्य सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
महासंघ ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि फुलेरा के विधायक निर्मल कुमावत के दादाजी की खातेदारी की भूमि में दर्ज जाति कुम्हार के स्थान पर कुमावत किया जाना पूर्णतः अवैधानिक है. क्योंकि कुमावत नाम की कोई जाति सन् 1956 तक अस्तित्व में ही नहीं थी. महासंघ ने आरोप लगाते हुए कहा है कि विधायक निर्मल कुमावत के दबाव में राजस्व मंत्री ने यह विवादित सर्कुलर पारित करवाया है और इसे तुरंत प्रभाव से वापस लिया जाना कुम्हार समाज के अस्तित्व बचाएं रखने के लिए आवश्यक है.
कुमावत समाज से किसी भी प्रकार का मतभेद उत्पन्न ना हो
ज्ञापन में महासंघ ने पहले तो कुमावत समाज के वैधानिक अस्तित्व को ही झूठला दिया लेकिन अंत में राजस्थान सरकार से महासंघ ने कुमावत समाज के लिए अलग से शिल्पकला बोर्ड बनाने की मांग रखी दी ताकि इनका कुमावत समाज से किसी भी प्रकार का मतभेद उत्पन्न ना हो.
अखिल भारतीय प्रजापति कुंभकार महासंघ चित्तौड़गढ़ ने सरकार से मांग की है कि कुम्हार प्रजापति समाज की मूल पहिचान कायम रखने व सन् 1956-57 के राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जाति कुम्हार प्रजापति को यथावत रखते हुए 21 सितंबर के सर्कुलर को तुरन्त प्रभाव से वापस लिया जाए.
Reporter- Deepak Vyas