पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की बात करें तो इसके तहत पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया है और साथ ही पशुओं पर होने वाली क्रूरता पर कार्यवाही करने का भी प्रावधान है.
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Chittorgarh: पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 की बात करें तो इसके तहत पशु कल्याण बोर्ड का गठन किया है. साथ ही पशुओं पर होने वाली क्रूरता पर कार्यवाही करने का भी प्रावधान है, लेकिन गौशालाओं में दिन ब दिन गायों और नंदी की बिगड़ती हालतों पर लगता है कि पशु कल्याण बोर्ड भी मानों चिर निंद्रा में ही सो रहा है.
आपको बता दें कि चित्तौड़गढ़ जिले में जिला पशु क्रूरता निवारण समिति का गठन किया गया है, जिसके अध्यक्ष स्वयं जिला कलक्टर है और उसके सदस्यों में पशु पालन विभाग के सहा निदेशक, वन विभाग से डीएफओ वाइल्ड लाइफ, नगर परिषद के साथ चार अन्य मनोनीत सदस्यगण भी मौजूद हैं और इसी पशु क्रूरता निवारण समिति की पूर्व में एक विशेष बैठक का आयोजन 28 सितंबर 2021 को जिला कलेक्टर चित्तौड़गढ़ के सभागार में किया गया था, जिसमें प्रत्येक पंचायत समिति स्तर पर एक गौ नंदी गौशाला खोले जाने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया था, जिसके तहत प्रत्येक गौ नंदी गौशाला को राज्य सरकार द्वारा अनुमत राशि एक करोड़ सत्तावन लाख रुपए की लागत का 90 प्रतिशत राशि का अनुदान जो कि 1 करोड़ 41 लाख रुपए के करीब होता है, जिसका दिया जाना तय किया गया था.
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चित्तौड़गढ़ जिले में अभी तक तो नगरपरिषद द्वारा आवारा पशुओं और आवारा सांड यानिकि नंदी को पकड़ कर हाईवे पर छोड़ दिया जाता था, जो कि वापस विचरण करते हुए शहर की ओर आ ही जाते थे और उन्हें पकड़ने में नगर परिषद द्वारा खर्च किया गया. लाखों रुपए का बजट भी पानी में चला जाता था, लेकिन जब से राजस्थान में गौ नंदी योजना को राज्य सरकार द्वारा लागू की गई है, तब से आवारा सांड को भी नंदी गौशाला में पालने की पहल का प्रयास देखा जा रहा है, लेकिन राज्य सरकार से अभी तक अनुदान ना मिलने के कारण ये नंदी वंश तथाकथित गौशाला संचालकों के लिए गले की हड्डी बनते नजर आ रहे हैं.
नंदी गौशाला के अनुदान के नियमों के अनुसार नंदी गौशाला नई खोली गई होनी चाहिए और संस्था के पास कम से कम बीस बीघा जमीन होनी भी आवश्यक है. साथ ही उस गौशाला में कम से कम 250 से 500 के लगभग नंदी होने का नियम तय किया गया है, इसलिए सम्भवतया पहली बार चित्तौड़गढ़ के अभयपुर पंचायत के पचुंदल में एक गौशाला का हाल ही में शुभारंभ किया गया था, जिसमें गायों के अलावा भारी मात्रा में नंदी यानिकि आवारा सांडों को लाकर छोड़ दिया गया था, लेकिन सम्भवतया सरकार से अनुदान मिलने की योजना पर अभी तक विफलता मिलने से और नंदी गौशाला योजना को धरातल पर लागू नहीं किए जाने के बाद नंदी गौशाला में गौवंश के लिए उपयुक्त मात्रा में पीने के लिए पानी और चारें की व्यवस्था भी संचालकों द्वारा नहीं की जा सकी है और गौशाला में अचानक से एक के बाद एक कई गायों और नंदी के आज्ञत कारणों से मरने की सूचना मिलने लगी, जिसकी भनक चित्तौड़गढ़ के कुछ संगठनों के पदाधिकारियों को मिलने के बाद मामले ने तुल पकड़ लिया और गायों के भूख प्यास से मरने का विडियो वायरल होने के बाद से अखबारों में चली खबरें और मामले के प्रकाशन के बाद कहीं जाकर स्थानीय प्रशासन सकते में आया और रविवार को जिला कलक्टर ने भी यहां का मौका मुआयना कर आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए और मृत गौवंश का पोस्टमार्टम कराने के भी निर्देश प्रदान किए, ताकि गौवंश के मरने के सही कारणों का पता लगाया जा सके.
साथ ही मामले की विस्तार में बात करें तो चित्तौड़गढ़ जिले के अभयपुर ग्राम पंचायत में पचुंदल के समीप चतुर्भुज जी का खेड़ा स्थित श्रीकृष्ण गौशाला में कई गोवंश के मृत पाए जाने की घटना के बाद जिला कलेक्टर अरविंद कुमार पोसवाल रविवार 27 फरवरी 2022 को गौशाला पहुंचे और स्थिति का जायजा लिया. इस दौरान तहसीलदार विपिन चौधरी सहित अन्य अधिकारी भी मौके पर उपस्थित रहें और जायजा लिया. जिला कलेक्टर ने निर्देश दिए कि गोवंश के संरक्षण में कोई कोताही नहीं बरती जाए.
जिला कलेक्टर ने रोगग्रस्त और स्वस्थ गायों को अलग-अलग रखने और स्वस्थ गोवंश को अन्य गौशाला में शिफ्ट करने के निर्देश दिए. जिला कलेक्टर ने पशुपालन विभाग को रोगग्रस्त गायों का उपचार करने हेतु निर्देशित किया. इसी के साथ उन्होंने गोवंश के चारा पानी की व्यवस्था सुचारु रुप से करने हेतु भी निर्देश प्रदान किए. बता दें कि मृत गायों का पोस्टमार्टम भी कराया जा रहा है, जिससे कि मृत्यु के सही कारणों का पता लगाया जा सके. जिला कलेक्टर अरविंद पोसवाल ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि गोवंश के संरक्षण में कोई लापरवाही न हो. मामले में जिला प्रशासन की ओर से नियमानुसार कार्यवाही जारी है. गौरक्षक महेन्द्र सिंह ने बताया कि विजयपुर घाटे के गांव श्री कृष्ण गौशाला का निरीक्षण किया और गौशाला की व्यवस्था जांचने के साथ ही स्थानीय निवासियों से गौशाला में भारी संख्या में प्रतिदिन हो रही गायों की मौतों पर तथ्यात्मक जानकारी जुटाई.
समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसमे जांच दल ने गौशाला पर आरोप लगाते हुए बताया है कि गौशाला में क्षमता से कई गुना ज्यादा तादाद में गायों को रखा गया है, जबकि उनके लिए पीने के पानी और चारे की कोई माकूल व्यवस्था नहीं होने के कारण गायों की विगत एक माह में भारी संख्या में मृत्यु हो चुकी है साथ ही समिति ने निरीक्षण के दौरान देखा कि गौशाला के पास ही जगह-जगह गड्ढें कर पचासों गायों को दफनाया गया है जो भूख प्यास का शिकार होकर मर गई है और उन्होंने पहले से ही कुछ गड्ढे भी खोदकर रखे है कि जैसे ही गाएं मरे उन्हें तुरंत दफना दिया जाए. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि गौशाला में गायों और नन्दी के लिए उचित छाया, पानी और पर्याप्त चारे की व्यवस्था भी नहीं है और उनके द्वारा प्रशासन से मांग की गई है कि इन गायों को प्रशासन अपनी देखरेख में अन्य गौशालाओं में पहुंचाकर उपयुक्त चारें, पानी और गायों के लिए चिकित्सकीय देखभाल कराए जाने की व्यवस्था सुनिश्चित करें.
गायों के नाम का छ: सौ करोड़ रुपए राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष स्टाम्प ड्यूटी में गौ सेवा के नाम पर जनता से वसूला जा रहा है टैक्स फिर भी गायों को भूखा और प्यासा भटकना पड़ रहा है. दौ सौ गायों को चारा पानी के अभाव में एक गौशाला से दूसरी में स्थानांतरित किया गया था. चित्तौड़गढ़ मुख्यालय के नजदीक आंवलहेड़ा पंचायत में बल्दरगा गौशाला से चारा पानी नहीं होने के कारण और बल्दरगा गौशाला में अधिक गायें हो जाने से उन्हें पचुंडल गौशाला में स्थानांतरित किया गया.
बल्दरगा निवासी बुजुर्ग शंकर लाल ने बताया कि बल्दरगा गौशाला में चारे की व्यवस्था पर्याप्त मात्रा में नहीं होना बताकर गौशाला संचालक और अध्यक्ष के कहने पर गांव के लगभग तीस लोग मिलकर लगभग दौ सौ गायों को पचुंडल गौशाला में पहुंचाने के लिए जा रहे हैं. जब उनसे गायों की गिनती के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि लगभग दौ सौ गायों को चारा पानी की कमी होने से बल्दरगा गौशाला से पचुंडल गौशाला में ले जाया जा रहा है. अभी बल्दरगा गौशाला में और भी दौ सौ के लगभग गाएं शेष बताई जा रही है. बता दें कि गायों की सुरक्षा के नाम पर राज्य सरकार ने स्टाम्प ड्यूटी पर लगने वाले टैक्स के बावजूद गायों को चारा तक नसीब नहीं हो पा रहा है, जबकि प्रति वर्ष सरकार द्वारा टैक्स के रूप में जनता से स्टाम्प ड्यूटी के रुप में छः सौ करोड़ रुपए से अधिक की राशि राजकोष में जमा करा रही है. अब सवाल यह उठता है कि यह पैसा गायों की जगह कहां पर और किसे दिया जा रहा है और गायों के लिए दिया जा रहा है तो गौ माता कहलाने वाली हमारी गायों का चारा कौन खा रहा है और इसमें कौन-कौन से तत्व शामिल हैं यह जन जागरण और एक गम्भीर जांच का विषय है.
गौमाता का कर्ज नहीं चुका पाया हमारा सभ्य कहलाने वाला समाज
यूं तो हमारे सभ्य कहलाने वाले समाज की सुबह की आंख खुलने से लेकर रात को सोने तक की दिनचर्या में नियमित गौ माता के दूध का सेवन करना शामिल है, फिर चाहे वह किसी भी जाति और धर्म का क्यों ना हो सभी लोग चाय, दूध और कई प्रकार के व्यंजनों के रूप में गाय के दूध का सेवन करते ही हैं फिर भी हमारे समाज की दूध की जरूरत पूरी नहीं हो पाती है, इसीलिए की जगहों पर आज कई जगहों पर लालची लोग अधिक धन कमाने के लालच में नकली दूध का जहर तक बेचने से पीछे नहीं रहते, यही नहीं सभ्य कहलाने वाला समाज इसके अलावा गौमाता के गोबर और मूत्र तक का भी ईंधन, खाद और दवाओं के रूप में सेवन कर रहा है, लेकिन आज मानवीय संवेदनाओं को खो चुका हमारा समाज गौवंश को मां समान पूजने का आडम्बर करता नजर आ रहा है, लेकिन जब यही गौ माता दूध देना बंद कर देती है या किसी प्रकार से लोगों को गौ पालन महंगी पड़ती नजर आती हैं तो न जाने क्यों हमारे सभ्य लोगों में से ही कुछ लोग, जिनकी तादाद दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है, इन्हें सड़क पर दर ब दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं.
साथ ही गौ संरक्षण के नाम पर सरकार और कई तथाकथित गौशाला संचालकों का गौशाला में अनुदान और चन्दा खोरों का खेल शुरू कर देते हैं. यूं तो अपने जन्म दिन पर कई छोटे बड़े नेता और तथाकथित गौभक्त अपने फोटो खींचकर गायों को चारा खिलाते हुए अपनी सेल्फी फेसबुक, सोशल मीडिया और अखबार में देना नहीं भूलते, लेकिन वे यह क्यों भूल जाते हैं कि गौ माता को उनके तथाकथित स्वार्थी मालिकों के द्वारा अनुपयोगी होने के बाद उन्हें सड़क पर छोड़ दिया जाता है और इस के बाद नगर परिषद के द्वारा कई प्रकार से आवारा पशुओं को पकड़ने के नाम पर समय समय पर ठेकेदारों को करोड़ों रुपया भुगतान किया जाता रहा है तो वहीं दूसरी तरफ उनमें से कई गौ माताओं जिनके फिर से दूध, मूत्र और गौबर के साथ सरकार से मिलने वाले अनुदान और गौभक्तों से मिलने वाले चन्दे के रुपयों की आशा और दम पर कुछ लोग तथाकथित संस्था प्रधान बन कर समाज में एक ओर तो अपना कद ऊंचा करने का काम करते ही हैं और उन गायों को गौशालाओं में ले जाते हैं, लेकिन उचित प्रबंधन की कमी और देखरेख के अभाव में या फिर कई जगहों पर अपने निजी स्वार्थों की भेंट चढ़ा कर गौशालाओं में भी गौमाताओं को ठगी का शिकार बना दिया जाता है.
हर तरह से कभी सरकारी तंत्र से तो कभी आमजन और समाज के चंदे के रूप में गौ माताओं के नाम पर करोड़ों रुपए का फंड इकट्ठा भी किया जाता रहा है और यही नहीं गौशाला के नाम पर सरकार से कई संस्थाएं सैकड़ों एकड़ जमीन तक आवंटित करा कर उस पर गौशाला का निर्माण किया जाता है. कई जगहों पर तो इस जमीन से कुछ जमीन का उपयोग किसी अन्य काम के लिए या फिर अपने निजी उपयोग में ले लिया जाता है. इसके बाद भी जब हमारे इन संस्थागत गो भक्तों का पेट नहीं भरता है, तो इन गौ माताओं के चारों में से ही कटौती करके अपने कभी ना भरने वाले पेट में डाल दिया जाता है. ऐसे ही वाक्य हमारे चित्तौड़गढ़ में भी आए दिन देखने को मिल रहे हैं, जहां पर तथाकथित गौ सेवक संस्था प्रधान और व्यवस्थापक गौ माता के नाम पर एक और लाखों करोड़ों रुपए का फंड जमा कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर इन्हीं गौ माताओं के नाम पर चल रही सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए भी तरह तरह के जतन करते फिरते हैं, लेकिन फिर भी हमारी गौ माता है की भूख और प्यास को सहन करने के बाद भी यही चाहती है कि हमारे बच्चे किसी भी प्रकार से भूखे नहीं रहें और हर प्रकार से यह कामधेनु कहलाने वाली गौमाता हर तरह से हमारे मानव समाज के लिए सदैव तत्पर रहती है.
Reporter: Deepak Vyas