कहते है कि इंसान का जब वक्त साथ ना दें फिर भी हौंसला जिंदा हो तो सब कुछ आसान हो जाता है. कुछ इस तरह ही कोविड-19 में अपने पति को गंवा चुकी नारायणपुरा विद्यालय की कुक कम हेल्पर रेखा ने अपने हौंसलों को जिंदा रखा है और दुगने जोश के साथ सेवा भाव कर रही हैं.
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Baseri: कहते है कि इंसान का जब वक्त साथ ना दें फिर भी हौंसला जिंदा हो तो सब कुछ आसान हो जाता है. कुछ इस तरह ही कोविड-19 में अपने पति को गंवा चुकी नारायणपुरा विद्यालय की कुक कम हेल्पर रेखा ने अपने हौंसलों को जिंदा रखा है और दुगने जोश के साथ सेवा भाव कर रही हैं. इन्होंने राजस्थान सरकार के मिड डे मील अभियान के अंतर्गत अपनी 5 साल की बेटी के जन्मदिन पर 'उत्सव भोज' का आयोजन किया.
इसमें राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय नारायणपुरा विद्यालय के सभी बच्चों को स्वयं के खर्चे पर भरपेट पूड़ी, सब्जी, स्नैक्स, मिठाई खिलाई. यह राजस्थान सरकार की विद्यालय से बच्चों का लगाव मजबूत करने के लिए उम्मीद भामाशाहों से जताई है कि मिड डे मील में नवाचार के लिए एक दिन के भोज के लिए कोई ना कोई भामाशाह आगे आए. विद्यालय के शिक्षक राहुल शर्मा ने बताया के हमारे विद्यालय में कार्यरत कुक कम हेल्पर रेखा का बच्चों के प्रति इतना लगाव और सेवा भाव है कि वह हर पल बच्चों के लिए तत्पर बनी रहती हैं, जबकि उन्हें 1742 रुपए 1 महीने का मानदेय मिलता है. इसमें ही वह संपूर्ण महीने का गुजारा करती हैं और संपूर्ण महीने ही बच्चों का खाना पकाती है.
कौन है रेखा
नारायणपुरा विद्यालय में कार्यरत कुक कम हेल्पर रेखा, जिनको 1742 रुपये मानदेय मिलता है और कोविड-19 में अपना सब कुछ गंवा चुकी आर्थिक हालात कमजोर होते हुए भी बच्चों के प्रति समर्पण त्याग इतना हैं कि पिछले 1 वर्ष से इन पैसों को बचाकर 1 दिन के लिए उत्सव भोज करना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने करीब 15000 खर्च किए और विद्यालय में मिड डे मील के अंतर्गत ' उत्सव भोज ' का आयोजन किया जिससे बच्चे और अधिक प्रसन्न हो सकें. कुक कम हेल्पर रेखा विद्यालय की छुट्टी होने के बाद 2 घंटे प्रतिदिन संपूर्ण गांव के बच्चे को निशुल्क ट्यूशन की सेवा देती हैं और प्रत्येक काम को भगवान की सेवा मानकर करती है.
क्या है उत्सव भोज
यह सरकार की तरफ से सरकारी विद्यालयों के प्रति रुझान बढ़ाने के लिए किसी भामाशाह के द्वारा एक दिन संपूर्ण बच्चों को भरपेट खाना खिलाया जाता है. इससे मिड डे मील के अंतर्गत उत्सव भोज का नाम दिया गया है. इस दिन का खर्च उस भामाशाह के द्वारा उठाया जाता है और एमडीएम के पैसे को खर्च नहीं किया जाता है. इससे बच्चों का विद्यालय के प्रति रुझान बढ़ता है.
एक दिन उन्हें स्पेशल खाना भी उपलब्ध होता है और सरकारी पैसे की भी बचत होती है. शिक्षक राहुल शर्मा ने भामाशाहो से अनुरोध किया है कि किसी विशेष शुभ अवसर जन्मदिन, एनिवर्सरी या कोई अच्छे शुभ अवसर पर संपूर्ण विद्यालय के बच्चों को खाना खिला कर पुण्य लाभ अर्जित कर सकते हैं और इन नन्हें मुन्ने बच्चों को प्रसन्न कर सकते है.
रेखा पत्नी स्व. रामनिवास मीणा नारायणपुरा डोमई सरमथुरा की मूल निवासी है. रेखा और उनके पति गुजरात में मजदूरी करते थे. रेखा के एक पुत्री है जिसका नाम संध्या है उम्र 5 वर्ष है लेकिन अचानक कोविड-19 से इनके पति की गुजरात में ही मृत्यु हो गई. डेड बॉडी भी हॉस्पिटल में रख ली गई, उसके साथ पति रामनिवास के आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज भी रह गए. रेखा और उनकी बेटी संध्या दोनों वापस नारायणपुरा अपने गांव आ गए, यहां इनके हिस्से में लगभग एक बीघा से भी कम बिना पानी का खेत है.
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रहने को मकान नहीं था तो राजकीय प्राथमिक विद्यालय नारायणपुरा के संस्था प्रधान राहुल शर्मा ने अपने उच्चाधिकारियों की सलाह से इनकी आर्थिक हालात को देखते हुए इनको विद्यालय में कुक कम हेल्पर पद पर लगा दिया जिससे इन मां बेटी का जीवन यापन हो सके और स्टाफ ने आर्थिक मदद करके वह कुछ स्वयं रेखा के सहयोग से एक कमरे का निर्माण करवाया जिससे यह रह सके, क्योंकि इंदिरा आवास में सहायता नहीं मिल सकी.
उसके पास कोई दस्तावेज नहीं थे तो शिक्षक राहुल ने 6 माह में इनके लगभग सभी जरूरतमंद दस्तावेज तैयार करवाएं जिससे इनको राजस्थान सरकार से कोरोना से मृत्यु होने पर पेंशन मिल सके और भारत सरकार से सहायता राशि मिल सके. सभी दस्तावेज पूर्ण करके देने पर भी 6 माह से अधिक वक्त गुजर गया, अभी तक कोई सहायता राशि रेखा को नहीं मिल सकती है. रेखा इतनी धार्मिक और सेवाभावी महिला है कि विद्यालय के बच्चों को छुट्टी के बाद भी 2 घंटे निशुल्क ट्यूशन पढ़ाती है. वह विद्यालय में बच्चों के लिए पूर्ण मनोयोग से सेवा भाव के साथ खाना बनाती है और न्यूनतम मानदेय 1742 में अपना जीवन यापन कर रही है.
Reporter: Bhanu Sharma
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