Ayodhya Ram Mandir: कारसेवकों ने साझा किए 1992 के अयोध्या अनुभव, 31 साल पुराना सुनाया एक- एक किस्सा
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Ayodhya Ram Mandir: कारसेवकों ने साझा किए 1992 के अयोध्या अनुभव, 31 साल पुराना सुनाया एक- एक किस्सा

Ayodhya Ram Mandir : कारसेवा में शामिल हुए दुर्गापुरा निवासी सचिन शर्मा और सन्नी शर्मा ने बताया कि हम दोनों भाई कारसेवा में शामिल हुए. आज मंदिर की स्थापना को लेकर इतनी खुशी है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है.

Ayodhya Ram Mandir: कारसेवकों ने साझा किए 1992 के अयोध्या अनुभव, 31 साल पुराना सुनाया एक- एक किस्सा

Ayodhya Ram Mandir : 22 जनवरी को अयोध्या में भगवान श्रीराम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हो रही है. राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देशवासी खुश हैं. इसके साथ ही उन्हें और भी ज्यादा खुशी हो रही है जो उस समय कारसेवा में शामिल हुए और उस समय का दृश्य देखा.

कारसेवा में शामिल हुए दुर्गापुरा निवासी सचिन शर्मा और सन्नी शर्मा ने बताया कि हम दोनों भाई कारसेवा में शामिल हुए. आज मंदिर की स्थापना को लेकर इतनी खुशी है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है.

दुर्गापुरा निवासी सचिन शर्मा अभी एक निजी स्कूल चलाते हैं. उन्होंने 31 साल पुराना किस्सा सुनाया। जब वह कारसेवकों के साथ अयोध्या पहुंचे. उन्होंने बताया कि में दो बार अयोध्या गया. एक बार1990 में और 1992 में भी गया, पारिवारिक पृष्ठभूमि संघ से जुड़ी हुई है. नियमित शाखा में जाते थे. उस समय राम मंदिर को लेकर कार सेवक अयोध्या जा रहे थे, हम भी चले गए. वहां गोली कांड हुआ वह भी हमने देखा. उस समय कारसेवकों की लाशें पत्थरों से बांधकर सरयू में फेंक दी जाती थी यह सब हम आंखों से देख रहे थे.

1992 में फिर कार सेवक अयोध्या जा रहे थे. घर वालों ने डराया लेकिन भगवान राम को लेकर अलग ही जुनून था और हम फिर चले गए. हम ट्रेन में बैठ गए. उसे समय कोटा के संसद के साथ हम चले गए. ट्रेन में देखा तो पीछे-पीछे छोटा भाई भी आ गया. उसको देखकर मुझे लगा मैं इन्हें तो घर छोड़ कर आया था यह कैसे आ गया तो मेरे लिए उस समय दोहरी जिम्मेदारी थी एक तो कर सेवकों के साथ रहना और छोटे भाई का भी ध्यान रखना, लेकिन आज मंदिर की स्थापना होने से बहुत खुशी हो रही है.

दुर्गापुर के ही रहने वाले सन्नी शर्मा ने बताया कि मैंने कभी हाथ में खाना नहीं खाया लेकिन वहां पर हाथ में एक कागज पर दाल और चावल गरम-गरम लेकर खाना पड़ा. उसका भी एक अलग ही जुनून था वहां औजार थे नहीं, लोहे की एंगल लेकर तोड़ी गई. सीआरपीएफ वाले बड़े-बड़े केन में पानी लेकर पिला रहे थे. वापस लौटे तो ट्रेन में इतनी जगह नहीं थी. लोगों को ट्रेन की छतों पर बैठना पड़ा.

फैजाबाद से पहले ट्रेन को रुकवा कर सबको अंदर बैठाया गया. फैजाबाद में आते ही ट्रेन पर भयंकर पथराव हुआ. अगर लोगों को अंदर नहीं बैठाया जाता तो यह बड़ा हादसा हो सकता था. आज बहुत खुशी हो रही है और अब परिवार सहित वहां जाएंगे.
 

बिलोंची निवासी नंदलाल डागर ने बताया कि में 1984 से आरएसएस, भाजपा, किसान संघ से जुड़ा हुआ. रामजन्मभूमि शिला पूजन में गांव गांव घूमे. 27 अक्टूबर 1990 में कारसेवकों के साथ अयोध्या के लिए रवाना हुए। 31 अक्टूबर को रात में अयोध्या पहुंचे. वहां से 1 नवंबर को सुबह मणिराम छावनी पहुंचे. 2 नवंबर को सुबह 8 बजे मणिराम छावनी पहुंचे. वहां से जयश्रीराम बोलते हुए हनुमानगढ़ी चौराहे की तरफ बढ़ रहे थे. जहां पुलिस की ओर से लाठीचार्ज, आंसुगैस छोड़ी गई. सड़क के दोनों ओर छतों पर माता बहनों ने पानी की बोरियों, कपड़ों को भिगोकर नीचें फेंकती.

कारसेवकों की आंखों पर लेप किया गया. जिससे आंसू गैस का असर नहीं हो, हमें आदेश मिला था कि सुबह 9 बजे राम मंदिर की ओर कूच करना है. रामगढ़ी चौराहे पर पुलिस फायरिंग में मेरे भी जांघ पर पुलिस की गोली लगी. इसके बाद मैंने कारसेवकों से कहा कि जमीन पर लेट जाओ. गोली मेरे पीछे की साइड निकल गई. मुझे पता नहीं चला, थोड़ी सी जलन हो रही थी. लोगों ने कहा खून निकल रहा तब देखा तो पता चला. जालंधर के कारसेवक ने मुझे कार से अस्पताल पहुंचाया, जहां से 8 नवंबर को जयपुर लाया गया.

रेलवे स्टेशन पर भाजपा नेता ओम माथुर ने माला पहनाई और विहिप कार्यालय पहुंचाया. कारसेवा में हमारा 60 लोगों का जत्था गया था. कारपुर में हमारे को पुलिस ने पकड़ लिया, लेकिन में पुलिस की नजरे चुराता हुआ स्टेशन पहुंचा। आज मंदिर की स्थापना से हमें बहुत खुशी है.

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