दिव्यांगता के बावजूद नहीं हारी इन 5 महिलाओं ने हिम्मत, अपने पांव पर खड़े होकर पेश की मिसाल
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दिव्यांगता के बावजूद नहीं हारी इन 5 महिलाओं ने हिम्मत, अपने पांव पर खड़े होकर पेश की मिसाल

सरिता गौरा पैरा सिटिंग बॉल खिलाड़ी हैं. वह अभी जन अभाव अभियोग निराकरण विभाग में कार्यरत हैं. उन्होंने पैरा सिटिंग बॉल में नेशनल खेलकर माता पिता के सपने को पूरा किया.

दिव्यांगता के बावजूद नहीं हारी इन 5 महिलाओं ने हिम्मत, अपने पांव पर खड़े होकर पेश की मिसाल

Jaipur: शारीरिक अक्षम या दिव्यांगों के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा होता है. अगर दिव्यांग महिला हो तो ये चुनौतियां और बढ़ जाती हैं. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सचिवालय की उन 5 दिव्यांग महिला खिलाड़ियों के संघर्ष की कहानी बताते हैं जिन्होंने अपने शारीरिक कमजोरी या अक्षमता को कभी चुनौती नहीं बनने दिया और अपने सपने को पूरा करने के लिए स्पोर्टस को चुना और सफलता हासिल की.

सरिता गौरा पैरा सिटिंग बॉल खिलाड़ी हैं. वह अभी जन अभाव अभियोग निराकरण विभाग में कार्यरत हैं. उन्होंने पैरा सिटिंग बॉल में नेशनल खेलकर माता पिता के सपने को पूरा किया. उनके पिता खेती करते थे. दिव्यांगता के चलते उनके घर वाले परेशान थे. इसके बाद वह कोच पप्पू सिंह के संपर्क में आए तो जीवन को नए तरीके से जीने के बारे में सोचा और मुकाम हासिल किया.

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बाड़ा पदमपुरा की रहने वाली अंजना कुमारी ने भी पैरा सिटिंग बॉल में नेशनल खेला है. वह अभी सचिवालय कला और संस्कृति विभाग में कार्यरत हैं. निर्मला कुमावत भी पैरा सिटिंग बॉल खिलाड़ी हैं और अभी गृह विभाग में कार्यरत हैं. अंजना कुमारी ने बताया कि शुरूआत में स्पोर्टस ज्वॉइन किया तो घरवाले चिंतित थे. इसके बाद जब स्पोर्टस में मेडल जीता तो घरवालों का हौसला बढ़ा. बाद में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. निर्मला कुमावत ने कहा कि पैरा वॉलीबॉल के अलावा स्वीमिंग में नेशनल खेला.

सचिवालय अल्पसंख्यक विभाग में कार्यरत ज्योति शर्मा और मुनिया ने एथलेटिक्स में नेशनल खेला. उन्होंने बताया कि उन्हें सुमन ढाका ने मोटिवेट किया तो खेलों में रूझान बढ़ा. बाद में घरवालों ने भी सपोर्ट करना शुरू कर दिया और मुकाम हासिल किया. हम इसलिए खुश हैं कि घरवालों के ऊपर बोझ नहीं बने और खुद के पैरों पर खड़े हो पाए. सुमन ढाका भी पीडब्यूडी में कार्यरत हैं. उन्होंने बताया कि मैं 2013 से स्पोर्टस में हूं. जब भी मुझे कोई दिव्यांग खिलाड़ी मिलता तो उन्हें मोटिवेट करती थीं. इससे इनकी भी खेलों में रूचि बढ़ी.

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