अमरनाथ गुफा में कैसे हुआ था हादसा, वैज्ञानिकों ने समझाया पीछे का 'रहस्य'
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अमरनाथ गुफा में कैसे हुआ था हादसा, वैज्ञानिकों ने समझाया पीछे का 'रहस्य'

हादसे के बाद भारतीय सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और CRPF के जवानों ने  15 हजार लोगों को इस इलाके से सुरक्षित बाहर निकाला था. त्रासदी ने लोगों को झकझोर कर रख दिया था. 

अमरनाथ गुफा में कैसे हुआ था हादसा, वैज्ञानिकों ने समझाया पीछे का 'रहस्य'

Jaipur: पवित्र अमरनाथ गुफा में पिछले महीने आई भीषण त्रासदी में 18 लोगों की मौत हो गई थी, वहीं 40 से ज्यादा लोग लापता हो गए. अभी तक इनका कोई खुलासा नहीं हो पाया है. हालांकि, भारतीय सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और CRPF के जवानों ने  15 हजार लोगों को इस इलाके से सुरक्षित बाहर निकाला था. त्रासदी ने लोगों को झकझोर कर रख दिया था. अमरनाथ में आई आसमानी आफत एक प्राकृतिक आपदा है या हादसा. इस रहस्य से कुछ एक्सपर्ट्स ने फर्दा उठाया है. हिमालयन वैज्ञानिकों की माने तो  अमरनाथ गुफा के ऊपर मौजूद अमरावती नाला में इस हादसे का रहस्य छिपा है.  

दरअसल, पिछले कुछ दशकों में  ग्लोबल वार्मिंग की वजह से दुनिया में तापमान में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के मुताबिक, साल 1950 के बाद  गर्मी और भारी बारिश की वजह से जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग तेजी से बढ़ रहे हैं. हिमालयी और पहाड़ी इलाकों में भी अचानक बाढ़ आने का दौर शुरू हो गया है. आंकड़ों पर नजर डाले तो बीते पांच दशकों में 50 फीसदी से ज्यादा आपदाए बढ़ी हैं.  

WIHG ने इसपर रिपोर्ट तैयार की

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG)ने इसपर रिपोर्ट तैयार की है. हिमालयन जियोलॉजी संस्था के प्रमुख डॉ. कालाचंद सैन, डॉ. मनीष मेहता और विनीत कुमार की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि अमरनाथ पर ऐसा हादसा होना मुश्किल माना जाता है. क्योंकि ये अर्ध-शुष्क ट्रांस हिमालयन इलाके में है,.गुफा के ऊपर अमरावती नाला है.

चारों तरफ हिमालय के सबसे बड़े रेंज अमरनाथ गुफा और उसके आसपास मई से अक्टूबर तक 300 मिलिमीटर से कम बारिश होती है. अमरनाथ का इलाका उत्तरी गोलार्ध में आता है. दिसंबर से फरवरी के इलाके में यहां पर मध्यम से  भारी बर्फबारी होती है. इसके दक्षिण-पश्चिम में पीर पंजाल और पूर्व में जंस्कार रेंज है. वहीं, उत्तर में काराकोरम रेंज स्थापित है.. 
 
पीर पंजाल अरब सागर के पास है. यहां पर दक्षिण-पश्चिम दिशा की तरफ से बादलों का जमावड़ा होता है. इसकी वजह से गर्मियों में भी यहां अच्छी बारिश होती है. अमरनाथ गुफा में 8 जुलाई को करीब तीन घंटे में 75 मिलिमीटर बारिश दर्ज की गई. गुफा में ऑटोमैटिक वेदर स्टेशन ने बारिश का जो डेटा रिकॉर्ड किया उसमें शाम  4.30 से लेकर 7.30 के बीच 75 मिलिमीटर बारिश दर्ज हुई. इसे बादल फटना नहीं माना जा सकता है. 

ऐसी स्थिति को बादल फटना कहा जाता है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार,  एक घंटे में 100 मिलिमीटर या उससे ज्यादा की बारिश होती है तो उसे बादल फटना कहा जाता है, लेकिन अमरनाथ गुफा के आसपास हुई बारिश सामान्य से भी कम थी.  मौसम विभाग ने यह अलर्ट किया था अमरनाथ के ऊपर भारी मात्रा में बादल जमे हैं. मौसम विभाग ने भारी बारिश की चेतावनी जारी की थी. 

अमरनाथ गुफा और उसके आसपास की भू-आकृति विज्ञान को देखने पर पता चलता है कि इसे यहां पर ग्लेशियर की गतिविधियां काफी होती रही हैं. पिछले कुछ वर्षों में  ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. इसमें मिट्टी और पत्थर बहकर आते हैं. गुफा के 100 मीटर ऊपर मौजूद अमरावती नाले पर यह कचरा जमा हो जाता है. सर्दियों में जमा होने वाली बर्फ गर्मियों में पिघलने लगती है. जिससे कई रास्ते फुल हो जाते हैं और ये सब अमरावती नाला में आकर मिल जाते हैं. बीते महीने 8 जुलाई को भी यही हुआ. अमरावती नाला में ऊपर की तरफ से काफी मिट्टी और पत्थर बहकर आ गए. नाला में क्षमता से अधिक मिट्टी और पत्थर होने से फट गया और 75 मिलिमीटर हुई बारिश और बाढ़ का सैलाब गिर गया. 

दरअसल बर्फ पिछलने से  नाला के ऊपर और नीचे का हिस्सा कमजोर पड़ता जा रहा है. बारिश की वजह से ये टूटने लगते हैं. यही मिट्टी और पत्थर भारी बारिश में बहकर अमरावती नाला तक पहुंच जाते हैं. और नाला जाम होने से फट जाता है. 2021 में भी इस तरह की घटना हो चुकी है.

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