SMS अस्पताल और कैंसर इंस्टिट्यूट बीच की दूरी से जूझ रहे मरीज,जांचों के लिए 3-7 दिन का इंतजार
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SMS अस्पताल और कैंसर इंस्टिट्यूट बीच की दूरी से जूझ रहे मरीज,जांचों के लिए 3-7 दिन का इंतजार

आरयूएचएस और एसएमएस के बीच करीब 13 किलोमीटर की दूरी है. यदि किसी मरीज को एक बार ऑटो से भी जाना पड़े तो कम से कम 300 रु. किराया लगता है. 

SMS अस्पताल और कैंसर इंस्टिट्यूट बीच की दूरी से जूझ रहे मरीज,जांचों के लिए 3-7 दिन का इंतजार

Jaipur: राजस्थान सरकार ने कैंसर के मरीजों को बड़ी राहत देने के लिए प्रताप नगर में स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट की शुरुआत की. सोच थी कि कैंसर मरीजों को एक ही छत के नीचे कैंसर से जुड़ा हर तरीके का इलाज मिल सके लेकिन आज तक ऐसा नहीं हो सका है. बल्कि कैंसर के मरीजों का दर्द और बढ़ चुका है क्योंकि अब कैंसर के मरीज एसएमएस अस्पताल और प्रतापनगर स्थित कैंसर इंस्टिट्यूट के बीच की दूरी से जूझ रहे है . 

कैंसर से जूझ रहे मरीज और उसके परिवार का दर्द बहुत बड़ा होता है लेकिन अगर कैंसर के दर्द के साथ ही उसको सिस्टम भी दर्द देने लगे तो कैसे कोई मरीज कैंसर जैसी बीमारी को हरा सकता है. सिस्टम के दर्द की बानगी राजस्थान की राजधानी जयपुर में देखने को मिल रही है जहां 100 करोड़ रुपए की लागत से सरकार ने आरयूएचएस कैंसर इंस्टीट्यूट (प्रतापनगर) बना तो दिया जहां एक ही छत के नीचे कैंसर का इलाज होना था लेकिन अभी भी प्रतापनगर कैंसर इंस्टिट्यूट और एसएमएस अस्पताल की 13 किलोमीटर लंबी दूरी के बीच कैंसर मरीज फुटबॉल बने हुए हैं. 

परेशानी यह है कि तीन दिन ओपीडी आरयूएचएस और तीन दिन एसएमएस में लगती है. ऑपरेशन के भी तीन दिन बंटे हुए हैं. जांचों के लिए मरीजों को 3-7 दिन का इंतजार करना पड़ता है. कारण कैंसर इंस्टीट्यूट बनने के बाद भी पूरा कैंसर विभाग एसएमएस से शिफ्ट नहीं हो सका.

आरयूएचएस कैंसर इंस्टीट्यूट में सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को ओपीडी चलती है और अन्य तीन दिन एसएमएस में. यही स्थिति ऑपरेशन की भी है. यदि कोई भी मरीज ने आरयूएचएस में दिखाया तो उसे दोबारा दिखाने के लिए 1 हफ्ते का इंतजार करना पड़ता है. आरयूएचएस में पूरी सुविधाएं नहीं हैं, ऐसे में यदि किसी मरीज की हालत ऑपरेशन के बाद गंभीर हो जाए तो उसे एसएमएस भेजना पड़ता है.

आरयूएचएस और एसएमएस के बीच करीब 13 किलोमीटर की दूरी है. यदि किसी मरीज को एक बार ऑटो से भी जाना पड़े तो कम से कम 300 रु. किराया लगता है. एक ओर सरकार 10 रुपए की ओपीडी पर्ची भी निशुल्क कर रही है तो दूसरी ओर अनप्लांड सिस्टम से कैंसर मरीज पीड़ा और पैसे से त्रस्त हो रहे हैं.आरयूएचएस में भले ही गामा जैसी मशीनें लग गई हों लेकिन अभी यहां सामान्य जांचें ही हो रही हैं. सीटी स्कैन, एमआरआई और ब्लड की एडवांस जांच के लिए एसएमएस रेफर किया जाता है. अगर मरीज आरयूएचएस की ओपीडी में दिखाता है और उसे जांचें लिखी जाती हैं तो एसएमएस आना पड़ता है.

 जब तक मरीज एसएमएस पहुंचता है जांच काउंटर बंद हो जाते हैं.ऐसे में अगले दिन जांच करानी पड़ती है. रिपोर्ट लेकर दोबारा दिखाने के लिए फिर आरयूएचएस जाना पड़ता है. यानी दिखाने और सामान्य जांच में ही उसे तीन से चार दिन लग जाते हैं. यदि सीटी, एमआरआई जैसी जांचें करानी हों तो मरीज को छह से सात दिन का समय लगना तय है. ऐसे में परेशानी के साथ-साथ मरीज का दर्द भी बढ़ता है.जांच रिपोर्ट आने और डॉक्टर को दिखाने में हफ्ता बीत जाता है.

पेट स्कैन के लिए आठ से दस दिन लगते हैं क्योंकि जांच पहले आरयूएचएस से लिखी जाती है, फिर एप्रूवल का इंतजार करना पड़ता है. इसके बाद जांच एसएमएस के पास निजी लैब में होती है. रिपोर्ट आने और दिखाने में हफ्ते भर का समय लगना तय है.आरयूएचएस में जिन मरीजों को भर्ती किया जाता है, उन्हें या तो उसी दिन या फिर ओपीडी वाले दिन ही छुट्टी मिल पाती है.जिम्मेदारों से जवाब मांगा गया तो उनका कहना था कि अभी दो जगह ओपीडी है. हम कोशिश कर रहे हैं कि जल्दी ही एक जगह सभी व्यवस्थाएं हो जाएं.

स्थिति बताती है कि स्टेट कैंसर इंस्टिट्यूट में, सर्जन, रेजिडेंट और नर्सिंग स्टाफ की कमी है, जो स्टाफ है वह भी डेपुटेशन पर. यहां के लिए पोस्ट स्वीकृत नहीं हैं.आरयूएचएस में मेजर सर्जरी नहीं होती क्योंकि इमरजेंसी होने पर यहां पूरी व्यवस्थाएं नहीं हैं, केस बिगड़ने पर संभालने वाला नहीं.एंबुलेंस है लेकिन ड्राइवर ही नहीं. इसके अलावा अन्य स्टाफ के भी नहीं होने से मरीजों के इलाज में परेशानी आ रही है.

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