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Nath Sampradaay : यहां स्त्री-पुरुष योगी समान, कान कट जाने पर बनती है जिंदा समाधि

Nath Sampradaay : हिंदू धर्म में कई संप्रदाय और पंथ है. जिनमें जन्म संस्कार से लेकर अंतिम संस्कार तक होने वाले संस्कार अलग अलग तरह के हैं. ऐसा ही एक संप्रदाय है नाथ संप्रदाय जहां योगी जिंदा समाधि लेते हैं.

 

बिना नहाये और बिना नींद के 41 दिन अघोरी जीवन

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बिना नहाये और बिना नींद के 41 दिन अघोरी जीवन

नाथ संप्रदाय का योग बनने के लिए 41 दिन तक पर्दे में रहना पड़ता है और 9 दिन तक बिना नहाए अघोरी क्रिया करनी पड़ती है. इस दौरान जो गुरु खाने को दे वो खाना पड़ता है. जिसके बाद दीक्षा मिलती है. नाथ संप्रदाय के योगियों में दीक्षा के बाद पुरुष और महिला योगी में कोई अंतर नहीं माना जाता है. नाथ संप्रदाय के योगी अग्नि क्रिया से और योग से खुद को पवित्र और शुद्ध मानते हैं. इसलिए इस संप्रदाय के लोगों का दाह संस्कार नहीं होता है. 

 

महिला और पुरुष योगी समान

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महिला और पुरुष योगी समान

नाथ संप्रदाय में एक पुरुष योगी सिर्फ पुरुष को ही दीक्षा दे सकता है और एक महिला योगी एक महिला  को दीक्षा दे सकती है. जो नियमों का पालन नहीं करता उसको संप्रदाय से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है

शिव उपासक

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शिव उपासक

नाथ संप्रदाय भगवान शिव के उपासक हैं. जहां योगी बनने के लिए कर्णभेदन करना जरूरी है. यहीं नहीं इस संप्रदाय में कई कड़े नियम भी हैं.

नाथ संप्रदाय नियम

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नाथ संप्रदाय नियम

साधना में लीन योगी में शिव की काया मानी जाती है. ऐसे में एक गुरु भी अपने शिष्य को 40 दिन तक नमस्कार करता है. कान पर चीरा लगने के बाद योगी को अपने जख्मी कान का ध्यान रखना होता है. अगर कान खंडित हुआ तो साधक नाथ संप्रदाय से बहिष्कृत माना जाता है.

कबूतर के पंख से इलाज

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कबूतर के पंख से इलाज

दीक्षा के लिए पहने कुंडल वाले कान में चीरे की जगह पर हर दिन नीम की पत्तियों में उबले पानी से सफाई और नीम की पत्ती डालकर पकाए गए सरसों का तेल कबूतर के पंख से लगाया जाता है. ताकि घाव भरता रहें.

जिंदा समाधि

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जिंदा समाधि

लेकिन मृत्यु के बाद दोबारा मिट्टी के कुंडल पहना दिये जाते हैं. वहीं नाथ संप्रदाय में एक अनोखी परंपरा है जिसमें अगर कुंडल पहने योगी का कान कट जाए तो उसे जिंदा समाधि दे दी जाती है. 

मिट्टी के कुंडल और कानों में चीरा

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मिट्टी के कुंडल और कानों में चीरा

नाथ संप्रदाय में योगी बनने के लिए कर्णभेदन संस्कार होता है और फिर एक साल तक मिट्टी के कुंडल कान में पहने जाते हैं. एक साल के बाद योगी चाहे तो मिट्टी की जगह पर पीतल या चांदी के कुंडल पहन सकता है. बिना कान फटे साधु  'ओघड़' कहलाते हैं  जिनका आधा मान होता है.