Rajasthan News: आजादी से पहले राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में डाकन, सती, समाधी जैसी प्रथाएं काफी प्रचलित थी. इन सभी प्रथाओं में अंधविश्वास और चलन पर सैकड़ों स्त्रियों को मार दिया जाता था. ऐसे में कुछ लोगों ने कानून बनाकर इन प्रथाओं का अंत किया. ऐसे नें जानिए कब कहां इन कुप्रथाएं पर बैन लगा और कानून बनें.
दहेज प्रथा के तहत, शादी में वधू के परिवार से वर के घरवाले रुपयों, सम्पत्ति आदि मांगते है, जिसे दहेज कहा जाता है. इस प्रथा का अंत साल 1961 में हुआ.
राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में डाकन प्रथा के तहत अपनी जादुई ताकतों के कथित इस्तेमाल से शिशुओं को मारने के आरोप में महिलाओं की पीट-पीट कर हत्या कर दी जाती थी. इसका अंत उदयपुर में 1853 में हुआ.
इस प्रथा में कोई पुरुष या साधु, महात्मा जल में डूबकर या मिट्टी के खड्डे में दबकर मृत्यु प्राप्त कर लेता था. इस कुप्रथा का अंत जयपुर में 1844 में हुआ.
त्याग व टिक प्रथा राजपूतों में निभाई जाती थी, जिसमें शादी के मौके पर राज्य के तथा राज्य के बाहर से चारण-भट, ढोली आते थे और मुंह-मांगी दान-दक्षिणा देने की जिद्द करते थे. इस कुप्रथा का अंत जोधपुर में 1841 में हुआ था.
कन्या वध प्रथा राजपूतों में प्रचलित थी, जिसमें लड़की के जन्म लेते ही उसे मार दिया जाता था. इस प्रथा का अंत कोटा में 1833 किया गया.
सती प्रथा एक ऐसी कुप्रथा थी जिसमें किसी पुरुष की मृत्त्यु के बाद उसकी पत्नी उसके अंतिम संस्कार के दौरान उसकी चिता में आत्मत्याग कर लेती थी. इस कुप्रथा का अंत राजस्थान के बूंदी जिले में साल 1882 में हुआ.
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